
उदास मौसम के ख़िलाफ़
हम लड़ेंगे साथी
गुलाम इच्छाओं के ख़िलाफ़
हम चुनेंगे साथी
ज़िन्दगी के टुकड़े
हम लड़ेंगे साथी
उदास मौसम के ख़िलाफ़
हथोड़ा अब भी चलता है
उदास निहाई पर
हल की लीकें अब भी बनती हैं
चीखती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता
सवाल नाचता है
सवाल के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी
क़त्ल हुए ज़ज्बात की कसम खाकर
बुझी हुई नज़रों की कसम खाकर
हाथों पर पड़ी गाठों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक कि
बीरू बकरिया जब तक
बकरियों की पेशाब पीता है
खिले हुए सरसों के फूलों को
बीजने वाले जब तक नहीं सूंघते
कि सूजी आँखों वाली गाँव की
अध्यापिका का पति जब तक
जंग से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने ही भाइयों का गला दबाने को विवस हैं
कि बाबू दफ्तरों के जब तक
रक्त से अक्षर लिखते हैं
हम लड़ेंगे
जब तक दुनिया में लड़ने की जरूरत बाकी है
जब बन्दूक न हुई तो तलवार होगी
जब तलवार न हुई तो लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ लड़ने की ज़रुरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे कि
लड़ने के बगैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे कि
अभी तक लड़े क्योँ नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वालों की
याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी