Friday, 10 January 2014

उन आँखों का हंसना भी क्या, जिन आँखों में पानी न हो!

चित्र-हितेश पाठक
शांति का पिता दीवान समय से पहले गरीबी और खुराक की कमी से बूढ़ा हो गया खुशक दम भाबर में लंबी दूरी तक सवारी खींचता तब हल्द्वानी में आटो न थे दो चार सिटी बसें थी दो चार पुरानी माडल की स्टेंडर्ड-20 मैटाडोर चलतीं थीं तांगे थे और साईकल बाकी पैदल।

पहाड़ छूट गया पहाड़ में जीवन आसान होता कमाने का ठिकाना होता तो क्यूं छूटता? भाबर में झौंपड़ी बना ली अपनी उमर से आधी उमर की बीबी थी चार बच्चे थे घर चलाना था तो रिक्शे का चलना लाजिमी था पर बढ़ती जरुरतें और कमजोर शरीर कब तक झेलता दीवान? वो चिढ़चिढ़ा हो गया गालियां बकता था जिंदगी को कोसता पर जिंदगी कोसने से मेहरबान नहीं होती कमाने से चलती है कम खुराक और अधिक मेहनत शरीर को खा जाती है खांसी बलगम और अंत में बलगम में खून... टीबी हो गयी।

टीबी की दवा के साथ खुराक चाहिए अंडा, दूध, मांस और आराम का काम ,पर ये तो गरीब बीमार के साथ एक भद्दा मजाक है बीमारी का भी और हालात का भी।

दीवान अशक्त हो आया घर की बाखड़ी भैंस(वो भैंस जिसे ब्याये लंबा समय बीत गया हो पर गाभिन न हो पायी हो उसे बाखड़ी कहते हैं) पर परिवार की जिम्मेदारी आ गयी बाखड़ी भैंस का दूध गाढ़ा होता है पर दीवानराम के नसीब में ये दूध न था ये बाजार में न बिकता तो घर कैसे चलता?

इस गर्दिश के समय को पहले पहल करीबी पुरुष रिशतेदारों ने ताड़ा, किलो भर आटा, दाल, मसाले, तेल पांच दस नकद का अहसान चढ़ाते,उसी चूल्हे पर खाते और इस परिवार की बेबसी का फायदा उठाने के इरादों से आये थे सो दीवान के बिस्तर-गुदड़ी में भी जा घुसे।अशक्त बीमार दीवान ने देखते जानते आँखें फेर लीं और करता भी क्या? खांसी बलगम खून थूकता वो दुनिंया से विदा हो गया।

गरीब औरत का पति टूटे दरवाजे सा ही हो मगर जब तक हो तब तक एक आभासी सुरक्षा तो देता ही है, ये भी ना रहे तो फिर राहचलतों के भी मन बढ़ आते हैं। पहले रिशतेदार फिर गाँव के मौकाताड़ू लोग बैठने बतियाने लगे और सभ्य लोग हालातों पर, नैतिकता चरित्र आदि पर किस्से बनाने लगे बातें कानों से कानों तक पहुंची और बदनामी बदचलनी करार दी गयीं।बेबसी ने बेबस बनाया और समय ने बेशर्म।

बच्चे बड़े हुए तीनों लड़कियों ने पेट भर सकने वालों को पहचाना और उनके साथ हो लीं किसकी शादी किसकी बरात!
दो लड़कियां तो आज भी अपने घरों में हैँ पर शांति का पति ठीक न था वो फिर से अपने पेट में बच्चा लिये पति का घर छोड़ मां के पास आ गयी इधर बहुत कुछ बदल गया था जवान भाई की बहू आ गयी थी घर में मां ने थोड़ा जमीन दे दी थी उसपे शांति रहती थी।कमाने जाती थी नौकरी करती थी जवान शरीर था ही शकल सूरत भी ठीक थी।

जाने कितने काम किये एस टी डी बूथ पे काम होटल में रिशेप्सनिष्ट और अंत में चूड़ी पाउडर बिंदी लिपिस्टिक का खोखा खोल लिया जाने कब हालातों ने सैक्स रैकैट में पहुंचा दिया एक दिन पकड़ी गयी बरेली में अखबार में नाम छपा छूटकर आयी तो लोग हंसते थे चरित्रहीन ** कहने लगे वही मसल हुई "बेबसी ने चोर रास्ते खोले हालात ने बेशर्मी सिखायी" तो सफर यहां तक पहुंचना ही था....।

आज भी बेहया नजरें उसे लांछित करती हैं, तिरस्कृत फिकरे कसे जाते हैं ये आंखे जो उस पर हंसती हैं उसके हालातों को नहीं देखतीं, तो एक हिंदी फिलम का गाना याद आता है-
"उन आंखों का हंसना भी क्या जिन आंखों में पानी ना हो....।"

अब आप खुद सोचिए आखिर यहां किसका जमीर मर गया ?और किन आँखों का पानी मर गया?कामरेड लेनिन ने सेक्स पर 'थ्योरी आफ वाटर ग्लास' पर कहा था- "कोई भी व्यक्ति सामान्य हालात में नाली का पानी नही पीऐगा!" नालियां हों या नाबदान उनमें गंदगी इसी समाज की बहती हैं, वे तो केवल वाहक हैं।



deep-pathak
दीप पाठक 
 दीप पाठक सामानांतर के साहित्यिक संपादक है. इनसे deeppathak421@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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