Friday, 10 January 2014

भारतीय शाशकवर्गीय पाटियां और केजरीवाल का लोकरंजकवाद।

जो केजरीवाल की गर्वनेंस पर लोकरंजकवाद का इल्जाम लगाने में लगे हैं वो लोग जो अपने 40साल के राजनैतिक जीवन में सही तरीके से न ओछापन कर पाए ना गंभीरता रख पाए।भारतीय राजनीति में 75% नेता बेहद ओछे थे और अब भी हैं कैमरे के आगे संभल के बोलने के इस समय में भी लगातार इनके निकृष्ट बयान इस बात की बानगी हैं,आप रोज ही देखते सुनते हैँ।

कांग्रेस के भीतर चापलूसी पार्टी लाइन है और जनता के बीच में कांग्रेसी सांसद से लेकर वार्ड मेंबर तक की गुंडा संस्कृति ही एकमात्र सांगठनिक ढांचे का उसूल है।इसीलिए आपको यहां एन डी तिवारी और हरीश रावत जैसे चुपड़ी जुबान वाले नेता दिखेंगे या फिर जी न्यूज के स्टिंग मेँ बोलते कांग्रेसी विधायकों की भाषा आपने सुनी और देखी! संजय गांधी के समय से चली यह संस्कृति अब सांगठनिक सिद्वांत बन चुकी है।राहुल गांधी सोनिया अथवा प्रिंयंका चापलूस कांग्रेसी घेरे की न्यूक्लियस है और वे उन तक पहुंचायी गयी बातों से इतर फैसले नहीं ले सकते ना ही ये तीनों कोई राचनैतिक विजनरी हैं।शतायु के उपर की ये पार्टी अब अपनी जड़ों की सफाई नहीँ रख पायी नतीजे में कांग्रेस पार्टी उस कटहल के पुराने पेड़ सी हो गयी है जिसमेँ कटहल लगते तो हैं पर ढंग से फलित नहीं होते बीमार फलित होते हैं।

सुरक्षा एजेंसियों का एक बड़ा हिस्सा इनकी सुरक्षा में लगा हो और उपर से इंदिरा और राजीव गांधी के हादसे के डर से राहुल सोनिया प्रियंका अभी तक उबर न पाए तो ये क्या जनता तक जायेंगे?सच तो ये है कि ये जब कहीं पब्लिक के बीच बात करते हैं तो वहां सारे सुरक्षाकर्मी ही पब्लिक बन जाते हैं।इनको रैली में जनता बुलाने की जरुरत क्या है?एक रैली के बराबर तो सुरक्षा कर्मी होते ही हैं।

रही बात भाजपा की तो ये पार्टी नही ये तो दुनियां का सबसे छिछोरतम और निकृष्टतम जमावड़ा है इनकी गंभीरता फासिवादी घृणा और नस्ली घमंड है। दिखा दिखा के गंभीरता की ओछी नौटंकी करते रविशंकर प्रसाद, सुषमा, राजनाथ ,जेटली,जावड़ेकर की सयास गंभीरता से तो सिद्धू और मुख्तार अब्बास नकवी ही ठीक हैं वो जो हैं बोल बचन में सामने दिखते हैं।

मोदी एक चुनाव दंगों की तैयारी से जीता, एक दंगों के बाद जीता, एक चुनाव परवेज मुर्शरफ और पाकिस्तान को गालियां देकर जीता अचानक इनको विकास और गुड गर्वनेंस याद आ गया और ये विकास विकास गाने लगे हैं, इनकी यूपी में वापसी होगी देख लो अमित शाह आया दंगे हुए!प्रमाण सामने हैं।

लोहिया जेपी राजनारायण के चेले लालू मुलायम जैसों का हश्र आपके सामने है अधिक कहने की जरुरत नहीं हैं कि "हाथ कंगन को आरसी क्या?"

मायावती दलित उभार और राजनैतिक चेतना की गंभीरता को विस्तारित करने के बजाए हाथी की मूर्तियों पार्कों ब्लैक कैट कमांडो में ऐसी घिर गयी कि अब अपने दलित वोटरों को भी बमुशकिल दिखायी पड़ती है।

ठाकरे परिवार भाजपा से अधिक छिछोर और कांग्रेस की संजय गांधी कट गुंडई व अंधक्षेत्रवाद का काकटेल मात्र है।

दक्षिण के जयललिता और करुणानिधि को अधिक समझने की जरुरत नहीं यू पी के माया मुलायम का दक्षिण भारतीय डबिंग संस्करण मानिए।हां पूर्वोत्तर और बंग देश की सरकारें अपनी गंभीरता से प्रभावित करतीं हैं पर वहां से दिल्ली बहुत दूर पड़ता है।

हां तो बात केजरीवाल की हो रही थी हालांकि पूजींवाद में जब संकट और मंदी का दौर हो और इसे टालने के लिए लिमिटेड वार मार्केट( सीमित युद्ध बाजार) ना हो तो झोले से निकाल कर केजरीवाल अन्ना जैसे डायवर्जन टनल खोल दिये जाते हैं।जब मंदिर बनाने के नाम पर भाजपा सरकार बना ले गयी जबकि मंदिर से ना रोजगार मिलना था ना बिजली पानी पर सब्सिटी, तो केजरीवाल पर उम्मीदें तो कशमीर से कन्याकुमारी तक किंतु परंतु करते ही सही बन ही जायेंगी और संजीदगी तो दिख ही रही है ना वो मोदी जैसा बड़बोला है ना राहुल गांधी जैसा आर सी एम और एम वे जैसी कंपनी का मोटिवेटर टाईप है। कुल मिलाकर केजरीवाल फिलवक्त बड़ा खिलाड़ी तो लगता ही है।




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दीप पाठक 
 दीप पाठक सामानांतर के साहित्यिक संपादक है. इनसे deeppathak421@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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