Saturday, 25 January 2014

दूर घने जंगल के बीच एकांत में बसे गांव के खड़कुआ की कहानी भाग-4

जब से कटरीना दुध दुहने लगी घास काटने लगी और राहुल खेती करने लगा खड़कुआ अपने खेती और घर के कामों को विस्तार देकर व्यवस्थित करने लगा राहुल ने अपना समूचा ज्ञान खड़कुआ को दिया जितना भी राहुल को ज्ञान था और कटरीना ने पर्सनैलिटी डवलैपमेंट सिखाया अधिक ज्ञान और पर्सनैलिटी डवलैप के बाद खड़कुआ और नम्र और सौम्य हो गया राहुल की दाढ़ी खूब बढ़ गयी अब वो सही मायनोँ में "राहुल बाबा" लगने लगा।

कटरीना सब्जियों का खेत सींचती तो सब्जियाँ भी सुंदर सुकुमार होने लगीं खड़कुआ अब अंग्रेजी और राजनीति का ज्ञानी हो गया था पर बाहर सभी उसे अनपढ़ सीधा गंवार समझते थे क्योंकि खड़कुआ कभी ज्ञान का प्रर्दशन नहीं करता था।कटरीना को मेहनती खड़कुआ बेहद पसंद आने लगा था पर अभी इस बात के किसी भी इजहार की जरुरत कटरीना को उचित न लगती थी।

उधर राहुल के अज्ञातवास पर मिडिया की मांग पर राहुल की माँ ने एक बाईट दी तो मीडिया ने उस बाईट पर कई बाइट मारी फिर विशलेषकों ने बाईट मारी कुल मिलाकर उस बाईट का विषलेषण कर मिडिया विद्वानों ने बाडी लेँगवेज आदि मिलाकर हजारों अर्थ निकाले समाचार पत्रों पर कव्वों ने चौंच मारी तो और अर्थ निकल आये। यूं भी नेताओं को पता नहीं होता कि उसकी बात के इतने अर्थ भी होते हैं।ठीक इसी तरह जैसे बाईट के अर्थ निकलते हैं वैसे ही हमारे गांव में मरे बैल की सियार भी आतें निकाल लेते हैं गिद्ध हड़ी तोड़कर मज्जा निकाल लेते हैं और बची खुची लोथें कव्वे निकाल लेते हैं बाकी जो बचा वो मक्खियां निकाल लेतीं हैं।

उधर चाय वाले के खिलाफ सब्जी वाले को खड़ा करने की दिशा में राहुल का रोड मैप बन रहा था कटरीना राहुल और खड़कुआ रोज दो टाईम नहाते पूजा पाठ करते और जमकर काम करते पढ़ते सीखते और गंभीरता से भावी कार्ययोजनाऐं बनाते थे।

उधर भचकती आँख वाला वो कपटी साधु गाँव गाँव घूमता-"काला सोना काला धन स्विटरजलेंड टनाटन" बम भोले तेरी माया !जब तक मिला हराम का खाया। अरख निरंजन! बोलता हुआ गांवों की जासूसी करता था ।अभी तक उसे फेरी वाले कबाड़ी वाले नेपाली शाल कंबल बेचने वाले जो भी पहाड़ के गाँवों में बाहरी आदमी दिखे उनकी अपनी चिलम में लगे कैमरे से फोटो लेता और फीडबैक जमाकर उस एल आई यू वाले को देता था पर अभी तक वो खड़कुआ के गाँव नहीं गया क्योंकि वहां जाने में पूरा दिन लग जाता था और वहां से लौटना एक दिन में संभव न था रास्ते में बाघ भालू का भी डर था।पर एक दिन कपटी साधु ने तय कर लिया कि वो खड़कुआ के गाँव जरुर जायेगा क्योंकि एल आई यू वाले ने उसे खुश होकर 5सौ रुपये दिये और फिर हजार का पत्ता देने का वादा किया मारे खुशी और लालच के कपटी साधु की आँख भचकने लगीं थी।

तो क्या भचकती आँख वाला ये कपटी साधु सदी की बड़ी खबर खोज पाऐगा?
क्या होगा राहुल के रोड मैप का?
कटरीना यहां कब तक यूं ही खेती करेगी ?
क्या कटरीना खड़कुआ से प्रेम करने लगेगी?
क्या होगा आगे? जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें।


(जारी.....)






deep-pathak
दीप पाठक 
 दीप पाठक सामानांतर के साहित्यिक संपादक है. इनसे deeppathak421@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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