खड़कुआ
ने बचपन से ही भगवान की भक्ति करनी आरंभ कर दी थी वो सबसे प्रणाम करता
मीठा बोलता और खूब मन लगाकर मजदूरी का जो भी काम मिले करता था पैसा बचाता
दो टैम भोजन करता कोई व्यसन न करता सुबह शाम रीठे से नहाता व उबली राख के
गरम ढ़ौले से कपड़े धोता तिमूर की दातुन करता था।
दूर एक गाँव में जहां से लोग अपने घर छोड़ चुके थे वहीं एक पुराने छोटे से पुशतैनी मकान में रहता छोटा साफ सुथरा पुराना मकान था लिपाई पुताई करता सरकारी गल्ले की दुकान से राशन मिटितेल लाकर रखता था सब्जियां खुद उगाता था।बाकी बाजार में बेच आता जो पैसा मिले उससे जरुरत का सामान ले आता था।
अपनी जरुरतें कम से कम रखता खूब मेहनत करता था पढ़ाई लिखाई उसने की नहीं सो भगवान का भजन करता था मां बाप बचपन में ही गुजर गये थे किसी ने अपने होटल में काम पर लगा लिया पर जब हाथ पैर मजबूत हो आये तो वो अपने गाँव लौट आया और कठिन साधना जैसे दिन गुजारने लगा।
खड़कुआ ने अपने खेत खोदे बीज बोये धीरे धीरे अपने खाने भर को अनाज दालें फल सब्जियां उगाने लगा मूली ककड़ी लौकी कद्दू गहत भट्ट राजमा मटर गेहूं धान प्याज आलू धनियां हल्दी अदरक टमाटर शिमला मिर्च गोभी पालक... उसकी मेहनत का सिला मिलने लगा।
जानवरों के नुकसान से फसल बचाने के अनेक तरीके वो खुद सीख गया।धीरे धीरे अपनी मेहनत से खड़कुआ ने एक खच्चर खरीद लिया अपनी फसल बाजार में बेचने लगा तो उसका अच्छा दाम मिलने लगा घर में दो वफादार कुत्ते थे एक जोड़ी बैल और एक दुधारु गाय ।जिंदगी सुबह से शाम तक सातों दिन बारहों महीने लगातार काम मांगती थी और खड़कुआ काम में लगा रहता और भगवान पर गहरी श्रद्धा रखता था।
एक दिन की बात है दिल्ली का एक नौजवान नेता राहुल और मुंबई की एक सिने तारिका कटरीना रात को अपनी जिंदगी के बारे में सोचकर परेशान हो गये भगवान की कृपा से इनके मन में एक ही समय ये विचार आया कि ये अपनी वर्तमान जिंदगी छोड़कर कही दूर पहाड़ों की तरफ चले जायेंगे तो राहुल ने दाढ़ी बढ़ा ली दाढ़ी बढाने में वो माहिर था ही और कटरीना ने आम लड़कियों जैसे कपड़े धारण कर लिए और एक रात चुपचाप ये रेल में बैठकर दिल्ली और मुंबई से भाग गये रेल से उतरे बस में बैठे जहां तक बस जाती थी पहाड़ में वहां तक गये फिर पैदल चल दिये इत्तफाक की बात थी इन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया राहुल को कटरीना के बारे में पता न था ये दोनों चलते चलते जंगल में खड़कुआ के घर पहुंच गये कटरीना ने आम आदमी की तरह दुपट्टा मुंह पे लपेट रखा था और हिंदी टूटी फूटी गंवारों से बदतर उसे आती ही थी और राहुल को गरीबों के घर रात बिताने का अच्छा अभ्यास था।
खड़कुवा ने मेहमानों को भोजन कराया और भगवान को धन्यवाद दिया कि भगवान ने उसे मेहमानों की सेवा का अवसर तो दिया ।रात काफी हो गयी सब थके थे और सो गये कटरीना राहुल और खड़कुवा जमीन में नरम घास भरे सादे बिछौने में गहरी नींद में चैन से सो गये।
उधर देश में टीवी चैनलों में हाहाकार मचा था...सुरक्षा ऐजेंसियां हाई अलर्ट पर थीं यहां खड़कुआ के घर अखबार टीवी रेडियो मोबाइल कुछ न था राहुल और कटरीना यूं तो एक पत्र छोड़कर गये थे पर देश को चिंता थी और कोई भी आला दिमाग उनके यहां होने की बात नहीं सोच सकता था..
दूर एक गाँव में जहां से लोग अपने घर छोड़ चुके थे वहीं एक पुराने छोटे से पुशतैनी मकान में रहता छोटा साफ सुथरा पुराना मकान था लिपाई पुताई करता सरकारी गल्ले की दुकान से राशन मिटितेल लाकर रखता था सब्जियां खुद उगाता था।बाकी बाजार में बेच आता जो पैसा मिले उससे जरुरत का सामान ले आता था।
अपनी जरुरतें कम से कम रखता खूब मेहनत करता था पढ़ाई लिखाई उसने की नहीं सो भगवान का भजन करता था मां बाप बचपन में ही गुजर गये थे किसी ने अपने होटल में काम पर लगा लिया पर जब हाथ पैर मजबूत हो आये तो वो अपने गाँव लौट आया और कठिन साधना जैसे दिन गुजारने लगा।
खड़कुआ ने अपने खेत खोदे बीज बोये धीरे धीरे अपने खाने भर को अनाज दालें फल सब्जियां उगाने लगा मूली ककड़ी लौकी कद्दू गहत भट्ट राजमा मटर गेहूं धान प्याज आलू धनियां हल्दी अदरक टमाटर शिमला मिर्च गोभी पालक... उसकी मेहनत का सिला मिलने लगा।
जानवरों के नुकसान से फसल बचाने के अनेक तरीके वो खुद सीख गया।धीरे धीरे अपनी मेहनत से खड़कुआ ने एक खच्चर खरीद लिया अपनी फसल बाजार में बेचने लगा तो उसका अच्छा दाम मिलने लगा घर में दो वफादार कुत्ते थे एक जोड़ी बैल और एक दुधारु गाय ।जिंदगी सुबह से शाम तक सातों दिन बारहों महीने लगातार काम मांगती थी और खड़कुआ काम में लगा रहता और भगवान पर गहरी श्रद्धा रखता था।
एक दिन की बात है दिल्ली का एक नौजवान नेता राहुल और मुंबई की एक सिने तारिका कटरीना रात को अपनी जिंदगी के बारे में सोचकर परेशान हो गये भगवान की कृपा से इनके मन में एक ही समय ये विचार आया कि ये अपनी वर्तमान जिंदगी छोड़कर कही दूर पहाड़ों की तरफ चले जायेंगे तो राहुल ने दाढ़ी बढ़ा ली दाढ़ी बढाने में वो माहिर था ही और कटरीना ने आम लड़कियों जैसे कपड़े धारण कर लिए और एक रात चुपचाप ये रेल में बैठकर दिल्ली और मुंबई से भाग गये रेल से उतरे बस में बैठे जहां तक बस जाती थी पहाड़ में वहां तक गये फिर पैदल चल दिये इत्तफाक की बात थी इन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया राहुल को कटरीना के बारे में पता न था ये दोनों चलते चलते जंगल में खड़कुआ के घर पहुंच गये कटरीना ने आम आदमी की तरह दुपट्टा मुंह पे लपेट रखा था और हिंदी टूटी फूटी गंवारों से बदतर उसे आती ही थी और राहुल को गरीबों के घर रात बिताने का अच्छा अभ्यास था।
खड़कुवा ने मेहमानों को भोजन कराया और भगवान को धन्यवाद दिया कि भगवान ने उसे मेहमानों की सेवा का अवसर तो दिया ।रात काफी हो गयी सब थके थे और सो गये कटरीना राहुल और खड़कुवा जमीन में नरम घास भरे सादे बिछौने में गहरी नींद में चैन से सो गये।
उधर देश में टीवी चैनलों में हाहाकार मचा था...सुरक्षा ऐजेंसियां हाई अलर्ट पर थीं यहां खड़कुआ के घर अखबार टीवी रेडियो मोबाइल कुछ न था राहुल और कटरीना यूं तो एक पत्र छोड़कर गये थे पर देश को चिंता थी और कोई भी आला दिमाग उनके यहां होने की बात नहीं सोच सकता था..
(जारी....)
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दीप पाठक |
दीप पाठक सामानांतर के साहित्यिक संपादक है. इनसे deeppathak421@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
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