१- आकाश में उड़ता परिंदा.
आकाश में उड़ता परिंदा
छुंता हुआ ऊँचाइयाँ नभ की
वहसी दुनिया से दूर है
परिंदा
पर ओझल नहीं है दुनिया की नज़रों से
और
दुनिया भी ओझल नहीं है उसकी पैनी निगाहों से
देखता है उड़ता हुआ परिंदा
सड़क पर दोड़ते वाहन
फूटपाथ, चौराहों की भीड़
औरत का पर्श छीनता हुआ चोर
भीख मांगते बच्चे
चौराहे पर रोती हुई बच्ची,
औरत को पीटता शराबी,
और वो सब कुछ जो धरती पर हो रहा है
आकाश में उड़ता परिंदा
देखता है सच्चाई दुनिया की
सोचता है
वह न होए कभी पैदा इस जालिम मनुष्य की योनी में
मिलती रहे पक्षी योनी
मोक्ष प्राप्ति तक
आकाश में उड़ता परिंदा
अचानक
गिरता है नीचे
फड़फाड़ाते हुए, खून में लतपथ परिंदा
हो गया है मरणासन्न किसी जालिम मनुष्य की बन्दूक के छर्रे से
करता है प्रार्थना इश्वर से
नीचे किसी छत में गिरा परिंदा
वह न होए कभी पैदा, जालिम मनुष्य योनी में
मोक्ष प्राप्ति तक.
२- पहाड़
पहाड़
लपेटे हुए सफ़ेद, हरी चादर
बुलंद और अडिग दिखता है
पर अन्दर से बिलकुल खाली हो गया है
और भर रहा है बाहर से
करोड़ों साल से पहाड़ खड़ा है अपनी जगह
कभी थका नहीं
लेकिन अब थकने लगा है मनुष्यों के भार की वजह से
अपने ह्रदय में एक टीस लिए इंतजार करता है कि
एक छोटी सी प्लेट उसके भीतर की टूटे
और सरक जाये कुछ आगे
हो सकता है बाँट जाए दो हिस्सों में
कर दे सब कुछ तहस-नहस
पहाड़
कभी ऐसा चाहता नहीं था पर कर दिया है विवस उसे मनुष्यों ने
वह दूर करना चाहता है अपने मन की वेदना
जो दी है मनुष्यों ने उसे
काट के जंगल, काट के पहाड़
छीन के वस्त्र पहाड़ के
पहाड़ जो कभी अदम्य साहस अडिगता की मिसाल था
आज इंतजार कर रहा है अपने अन्दर की
कोई एक प्लेट टूटने का.
३- बादल
आकाश में तैरते बादल
सरकते एक दुसरे के निकट
करते आलिंगन प्रेमियों के जैसे
आकाश की नीलिमा को करते
सफेद-काला
भिगोते अपनी अंश्रुधारा से धरती को
प्यास बुझाते धरती की
टप-टप गिराकर बूँदें
सूर्य की धधकती आग भी
नही टिकती इनके आगे
पल भर में ले लेते हैं आगोश में सूर्य को
देते है चुनोती पहाड़ की ऊँचाइयों को
भीषण अट्टहास के साथ
जाड़ों में फैलाते एक सफ़ेद चादर धरती पर
बनाते हिमालय जैसे पहाड़ और महासागर भी
बादल
जिनके बिना जीवन संभव नहीं है.