Monday, 16 April 2012

उत्तराखंड में शराब विरोधी आन्दोलन और तस्करी.



हाल ही में कुमायूं, गढ़वाल  की छोटी-बढ़ी जगहों में शराब विरोधी आन्दोलन जोरों पर था और शायद है भी. हमेशा की ही तरह शराब विरोधी मोर्चा की शुरुवात महिलाओं ने ही की है. सभी जगहों पर महिलाएं उग्रता से शराब के ठेकों को बंद करवाने की मांग कर रही हैं. बाकायदा पहल न्यूज़ पेपर इत्यादि में छाई हुई है. महिलाओं में शराब के प्रति रोष फूट-फूट कर बाहर निकल रहा है.

        कहने को तो ये आन्दोलन पूरे  कुमायूं को शराब मुक्त बनाने को है पर इस आन्दोलन को देखते हुए आज से कुछ ६ साल पहले का एक आन्दोलन याद आ जाता है, जो सफल होते हुए भी असफल हो गया. इस घटना से शायद आप सभी परिचित होंगे.

     सन २००६ मई-जून का महिना होगा, गंगोलीहाट जो  पिथोरागढ़ जिले की एक तहसील है में भी शराब की दुकानों को बंद करने के लिए एक उग्र आन्दोलन हुआ. जिसमें गंगोलीहाट की सारी जनता ने बराबर सहयोग दिया, कुछ अप्रिय घटनायें भी इसमें घटी, यहाँ तक कि एक आन्दोलनकारी महिला के साथ बलात्कार की घटना भी सामने आई.

         लोकल और नेशनल न्यूज़ चैनलों और अखबारों में ये आन्दोलन छाया रहा और ज्यादा प्रबल बनता गया. काफी संघर्ष के बाद ये आन्दोलन सफल हो गया. गंगोलीहाट से शराब की सारी दुकानें बंद करवा दी गयी. परन्तु गंगोलीहाट से शराब नहीं हट सकी. "भाई जो आदमी शराब का लती है या जो शराब पिता है उसे तो शराब चाहिए ही चाहिए", और शराब मिलने की अब दो ही सूरतें बची...
१- शराब के ठेके का खुलना जो संभव नहीं.
२- शराब की तस्करी.

          बहरहाल गंगोलीहाट में शराब के तस्कर पाँव पसारने लगे. तस्करी का गोरखधंधा तो चल ही पढना था, सो चल पढ़ा. शुरवात में बेरीनाग और पिथोरागढ़ अदि नजदीकी जगहों से शराब की तस्करी की जाने लगी, तस्करी के पैर जैसे ही पसारने लगे तो शराब की तस्करी हरियाणा और पंजाब से भी होने लगी. सस्ते दामों में शराब को लाकर दुगने दामों में बेचा जाने लगा. कल तक जो लोग दो वक़्त की रोटी के भी मोहताज थे वे शराब तस्करी की बदोलत आज चोपहिया गाड़ियों में घूम रहे हैं.

            तस्करी बढती गयी लेकिन किसी प्रसासनिक अधिकारी ने तस्करी रोकने का प्रयास नहीं किया.
        ख़ास बात तो ये है की किसी भी प्रसासनिक अधिकारी ने तस्करी को लेकर कोई कदम क्यों नहीं उठाया? क्यों ये सब तस्करों के आगे चुप दिखाई देते हैं? देखा जाये तो यहाँ आने वाले प्रसासनिक अधिकारीयों को उनकी निजी ज़िन्दगी के लिए मीडिया में छाया रहना ज्यादा अच्छा लगता है न की तस्करी को रोककर मीडिया और देश में नाम कमाना. सुनने में आ रहा है कि गंगोलीहाट में शराब की दूकान फिर से खुल रही हैं. क्या फायदा ऐसे आन्दोलन का? ये तो आजादी मिलने के बाद भी ग़ुलाम होने कि तरह है.
  
    बात गंगोलीहाट की ही नहीं है, आज जहाँ कहीं भी शराब विरोधी आन्दोलन की बात आती है तो गंगोलीहाट  में होने वाली शराब तस्करी की तस्वीर सामने आ जाती है. हमें ये समझना होगा की केवल शराब के ठेके बंद करवाने से कुछ नहीं होगा, बल्कि प्रशासन और तस्करी के खिलाफ भी खड़ा होना होगा. लोगों को पहले ये सोच लेना होगा कि वे शराब को ख़त्म करना चाहते हैं या तस्करी को बढ़ावा देना चाहते हैं.

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