Monday, 15 July 2013

विद्रोही की कवितायें


1-

मैं किसान हूँ
आसमान में धान बो रहा हूँ
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूँ पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा.

विद्रोही
2-

औरतें
कुछ औरतों ने अपनी इच्छा से कूदकर जान दी थी
ऐसा पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज है
और कुछ औरतें अपनी इच्छा से चिता में जलकर मरी थीं
ऐसा धर्म की किताबों में लिखा हुआ है
मैं कवि हूँ, कर्त्ता हूँ
क्या जल्दी है
मैं एक दिन पुलिस और पुरोहित दोनों को एक साथ
औरतों की अदालत में तलब करूँगा
और बीच की सारी अदालतों को मंसूख कर दूँगा
मैं उन दावों को भी मंसूख कर दूंगा
जो श्रीमानों ने औरतों और बच्चों के खिलाफ पेश किए हैं
मैं उन डिक्रियों को भी निरस्त कर दूंगा
जिन्हें लेकर फ़ौजें और तुलबा चलते हैं
मैं उन वसीयतों को खारिज कर दूंगा
जो दुर्बलों ने भुजबलों के नाम की होंगी.
मैं उन औरतों को
जो अपनी इच्छा से कुएं में कूदकर और चिता में जलकर मरी हैं
फिर से ज़िंदा करूँगा और उनके बयानात
दोबारा कलमबंद करूँगा
कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया?
कहीं कुछ बाक़ी तो नहीं रह गया?
कि कहीं कोई भूल तो नहीं हुई?
क्योंकि मैं उस औरत के बारे में जानता हूँ
जो अपने सात बित्ते की देह को एक बित्ते के आंगन में
ता-जिंदगी समोए रही और कभी बाहर झाँका तक नहीं
और जब बाहर निकली तो वह कहीं उसकी लाश निकली
जो खुले में पसर गयी है माँ मेदिनी की तरह
औरत की लाश धरती माता की तरह होती है
जो खुले में फैल जाती है थानों से लेकर अदालतों तक
मैं देख रहा हूँ कि जुल्म के सारे सबूतों को मिटाया जा रहा है
चंदन चर्चित मस्तक को उठाए हुए पुरोहित और तमगों से लैस
सीना फुलाए हुए सिपाही महाराज की जय बोल रहे हैं.
वे महाराज जो मर चुके हैं
महारानियाँ जो अपने सती होने का इंतजाम कर रही हैं
और जब महारानियाँ नहीं रहेंगी तो नौकरियाँ क्या करेंगी?
इसलिए वे भी तैयारियाँ कर रही हैं.
मुझे महारानियों से ज़्यादा चिंता नौकरानियों की होती है
जिनके पति ज़िंदा हैं और रो रहे हैं
कितना ख़राब लगता है एक औरत को अपने रोते हुए पति को छोड़कर मरना
जबकि मर्दों को रोती हुई स्त्री को मारना भी बुरा नहीं लगता
औरतें रोती जाती हैं, मरद मारते जाते हैं
औरतें रोती हैं, मरद और मारते हैं
औरतें ख़ूब ज़ोर से रोती हैं
मरद इतनी जोर से मारते हैं कि वे मर जाती हैं
इतिहास में वह पहली औरत कौन थी जिसे सबसे पहले जलाया गया?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी रही हो मेरी माँ रही होगी,
मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी
जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगी
और यह मैं नहीं होने दूँगा.

Saturday, 6 July 2013

संथाल परगना में नक्सलियों की दस्तक


रमेश भगत
-रमेश भगत

  "...अगर सभी खनिज तत्वों का खनन करने का काम शुरू कर दिया गया तो इलाके में व्यापक पैमाने पर विस्थापन होगा जिससे ना सिर्फ सामाजिक असंतुलन बढ़ेगा बल्कि इस इलाके की प्राकृतिक सुंदरता और आदिवासी-गैरआदिवासी के बीच दशकों पुरानी समरसता की भी हत्या हो जाएगी। इस इलाके में मौजूद वर्तमान कोल माइन्स कंपनी से लोगों को जिस तरह का नुकसान उठाना पड़ रहा है। उससे तय है कि यहां के लोग किसी भी हालात में दुसरी कंपनियों को बरदास्त नहीं करेंगे।..."


त्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं को निशाना बनाने के बाद नक्सलियों ने मंगलवार को झारखंड में बड़ी घटना को अंजाम दिया। नक्सलियों ने घात लगाकर पाकुड़ जिला के एसपी अमरजीत बलिहार समेत 5 पुलिसवालों की हत्या कर दी। इस घटना को दुमका जिला के काठीकुंड प्रखंड में अंजाम दिया गया। यह ना सिर्फ संथाल परगना में अब तक की सबसे बड़ी नक्सली घटना है बल्कि झारखंड बनने के बाद यह पहला मौका है जब नक्सलियों ने एसपी को अपना निशाना बनाया है।

इससे पहले इसी इलाके में सिस्टर वाल्सा जॉन की हत्या की गई थी। उस समय भी यह एक बड़ी खबर बनी थी। सिर्फ खबर। उस पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। कार्रवाई के नाम पर बस खानापूर्ती हुई है। इस इलाके में नक्सलियों की सुगबुगाहट से लेकर एसपी की मौत तक जो बातें सामने आ रही है वो है कोल माइन्स कंपनियां। पाकुड़ जिला के अमड़ापाड़ा प्रखंड में कम से कम 41 वर्ग किलोमीटर में कोयला है। जिसे सरकार ने अपनी सुविधा के लिए कई ब्लॉक में बांट कर रखा है। इन्हीं में से एक ब्लॉक है पचुवाड़ा सेंट्रल ब्लॉक। 13 वर्ग किलोमीटर में फैले पचुवाड़ा सेंट्रल ब्लॉक से कोयला निकालने का काम पेनम नाम की कंपनी करती है, जो प्राइवेट माइनिंग कंपनी एम्टा और पंजाब सरकार का संयुक्त उपक्रम है। यहां से निकलने वाला कोयला पंजाब भेजा जाता है। पेनम ने इस कोल ब्लॉक से 2005 में कोयला निकालना शुरू किया।

पेनम के खुलने से पहले अमड़ापाड़ा में जमीन अधिग्रहण का व्यापक विरोध हुआ था। पेनम के खिलाफ प्रभावित इलाकों के ग्रामीण एकजुट हो गए, जिसका नेतृत्व सिस्टर वाल्सा जॉन ने किया था। इस एकजुटता को तोड़ने में पेनम को ज्यादा पसीना नहीं बहाना पड़ा। वाल्सा जॉन के नेतृत्व की असफलता से ग्रामीण मजबूर होकर कंपनी के रास्ते से हट गए। हालांकि कंपनी ने विस्थापित लोगों के पुर्नवास की व्यवस्था करने के साथ ही कई अन्य सुविधाएं देने का वादा किया था। लेकिन वादे हैं वादों का क्या की तर्ज पर वादा, वादा ही रह गया। कंपनी के वादों के बावजूद पचुवाड़ा सेंट्रल ब्लॉक के कुछ गांव वालों ने आगे भी कंपनी के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। इस दौरान संथाल बहुल इस इलाके के ग्रामीणों का विश्वास राजनेताओं ने खो दिया। ग्रामीणों का रोष इतना बढ़ गया कि उन्होंने एक चुनावी सभा में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन पर तीर से हमला कर दिया। इस घटना के बाद भी राजनेताओं का साथ ग्रामीणों को नहीं मिला। जिससे कोल कंपनी के खिलाफ ग्रामीणों का रोष बरकरार रहा।

ग्रामीणों का यही रोष नक्सलियों के लिए मददगार साबित हुआ। और काफी शांत माना जाने वाला संथाल परगना हिंसा और प्रतिहिंसा का केंद्र बन गया। दरअसल संथाल परगना में कई कोल ब्लॉक है जिनसे कोयला निकालने के लिए सरकार ने बड़ी-बड़ी कंपनियों से एमओयू साइन किया है। इन कंपनियों में पेनम, जिंदल, मित्तल, अभिजीत जैसी प्राइवेट कंपनी है। झारखंड और बिहार सरकार के संयुक्त उपक्रम झार-बिहार को भी पचुवाड़ा में एक कोल ब्लॉक आवंटित किया गया है। इसके अलावा इन इलाकों में मिथेन गैस भी प्रचुर मात्रा में है। अगर सभी खनिज तत्वों का खनन करने का काम शुरू कर दिया गया तो इलाके में व्यापक पैमाने पर विस्थापन होगा जिससे ना सिर्फ सामाजिक असंतुलन बढ़ेगा बल्कि इस इलाके की प्राकृतिक सुंदरता और आदिवासी-गैरआदिवासी के बीच दशकों पुरानी समरसता की भी हत्या हो जाएगी। इस इलाके में मौजूद वर्तमान कोल माइन्स कंपनी से लोगों को जिस तरह का नुकसान उठाना पड़ रहा है। उससे तय है कि यहां के लोग किसी भी हालात में दुसरी कंपनियों को बरदास्त नहीं करेंगे।

हालांकि कई कंपनियां कोल ब्लॉक खोलने के लिए प्रयासरत है। दुमका जिला के शिकारीपाड़ा प्रखंड में जिंदल कंपनी भी कोल ब्लॉक खोलने का प्रयास कर रही है। लेकिन ग्रामीणों के विरोध के कारण अब तक वह सफल नहीं हो सकी है। दुमका जिला के ही रामगढ़ प्रखंड में भी लोग जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। पचुवाड़ा सेंट्रल ब्लॉक में कोयला खनन कर रही पेनम कंपनी अब अपना विस्तार कर पचुवाड़ा नोर्थ ब्लॉक से भी कोयला खनन शुरू करने वाली है। इससे प्रभावित इलाकों के ग्रामीण काफी गुस्से में हैं। नक्सलियों ने उनके गुस्से को अपने पक्ष में करने के लिए ही कहीं ना कहीं पाकुड़ एसपी को अपना निशाना बनाया है। क्योंकि राजनेताओं और पुलिस-प्रशासन से भरोसा उठने के बाद इन इलाकों के युवा बड़े पैमाने पर नक्सली बन रहे हैं। इन्हें प्रशिक्षण भी इन्ही इलाकों के घने जंगलों में दिया जा रहा है। यह काम पिछले 4-5 सालों से हो रहा है। इस तरह नक्सलियों ने एक मजबूत नेटवर्क तैयार कर लिया है। इस नेटवर्क का पहला टारगेट ही एसपी के काफिले पर हमला रहा। अगर वक्त रहते कोल कंपनियों के मंसूबे को नजरअंदाज करते हुए सरकार सिर्फ खनन को ही विकास मानकर कोल कंपनियों को शह देती रही तो इस इलाके को दूसरा बस्तर बनने से कोई नहीं रोक  सकता है।


 रमेश पत्रकार हैं. अभी ईएमएमसी में कार्यरत. 
rameshbhagat11@gmail.com इनकी ई-मेल आईडी है.

Tuesday, 2 July 2013

कॉरपोरेट लूट और सरकारी गठजोड़ ही तबाही का कारण है:आनंद स्वरूप वर्मा

-प्रैक्सिस प्रतिनिधि

"...श्री वर्मा ने कहा कि कॉरपोरेटों की इस घुसपैठ और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ संभावित आंदोलनों के दमन के लिए माहौल बनाने के लिए इसके ठीक बाद देशभर में माओवाद का हल्ला खड़ा किया गया। अचानक से देश के 18 राज्यों को माओवाद प्रभावित घोषित कर दिया गया। इसी कॉरपोरेट लूट के खिलाफ प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न राज्यों के स्थानीय जन को लगातार निशाना बनाया गया और प्राकृतिक संसाधनों की भयंकर लूटपाट मची। उन्होंने कहा कि वर्तमान उत्तराखंड की आपदा भी इसी कॉरपोरेटी लूट का परिणाम रही है। जिसमें उत्तराखंड की नदियों, पहाड़ों को जलविद्युत परियोजनाओं, खनन और संवेदनशील हिमालय में चैड़ी सड़कों के निर्माण आदि के लिए गैरजिम्मेदार कॉरपोरेटों को सौंप दिया गया है।..."

गंभीरता पूर्वक यह सोचने की जरूरत है कि क्यों आज राज्य वही कर रहा है जो कॉरपोरेट घराने चाह रहे हैं और कॉरपोरेट घराने अपने मुनाफे के लिए सारी प्राकृतिक संपदाओं को बेतहाशा लूट रहे हैं। इस लूट के प्रतिकार के लिए जब स्थानीय समुदाय आंदोलित हो रहा है तो उसके दमन के लिए राज्य का सैन्यीकरण किया जा रहा है। देशभर में जनआंदोलनों के लोगों को माओवादी और आतंकवादी बताकर उन्हें जेलों में ठूसा जा रहा है या फर्जी एनकाउंटरों में मार दिया जा रहा है। उक्त बातें वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने तीसरे हेम चंद्र पांडे स्मृति व्याख्यान में कॉरपोरेट लूट, तबाही और पत्रकारिता के उत्तरदायित्व विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा कि राज्य 1990 में जारी जोसेफ स्टैग्लिट्ज के डॉक्यूमेंट ‘री डिफाइनिंग दि रोल ऑफ द स्टेट’ के अनुसार अपनी सारी ही लोककल्याणकारी भूमिकाओं को समेटते हुए अपने सारे उपक्रमों को कारपोरेटों को सौंप रहा है।

उन्होंने कहा कि स्टैग्लिट्ज के इस दस्तावेज को लागू करने के लिए बाजपेई सरकार के दौरान अगस्त 1998 में पीएमस् काउंसिल ऑन ट्रेड एण्ड इंडस्ट्री बनाई गई। इसमें देश के सारे बड़े कॉरपोरेट घरानों के मालिकों को शामिल किया गया और मूलतः राज्य के शिक्षा, स्वास्थ, ग्राम विकास आदि उत्तरदायित्वों की अलग-अलग जिम्मेदारियां इन्हें सौंपी गई। मीडिया में इतने महत्वपूर्ण लोगों की यह मीटिंग कहीं रिपोर्ट नहीं की गई। कई सरोकारी जनसंगठनों के दखल से उस बार यह गठजोड़ संभव नहीं हो सका लेकिन वर्तमान मनमोहन सरकार ने फिर इसे चालू कर दिया है। 

श्री वर्मा ने कहा कि कॉरपोरेटों की इस घुसपैठ और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ संभावित आंदोलनों के दमन के लिए माहौल बनाने के लिए इसके ठीक बाद देशभर में माओवाद का हल्ला खड़ा किया गया। अचानक से देश के 18 राज्यों को माओवाद प्रभावित घोषित कर दिया गया। इसी कॉरपोरेट लूट के खिलाफ प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न राज्यों के स्थानीय जन को लगातार निशाना बनाया गया और प्राकृतिक संसाधनों की भयंकर लूटपाट मची। उन्होंने कहा कि वर्तमान उत्तराखंड की आपदा भी इसी कॉरपोरेट लूट का परिणाम रही है। जिसमें उत्तराखंड की नदियों, पहाड़ों को जलविद्युत परियोजनाओं, खनन और संवेदनशील हिमालय में चैड़ी सड़कों के निर्माण आदि के लिए गैरजिम्मेदार कॉरपोरेटों को सौंप दिया गया है। 

उन्होंने आगे बोलते हुए पत्रकारिता के उत्तरदायित्वों पर बात की। उन्होंने कहा कि तकरीबन सारे ही मीडिया में कॉरपोरेट निवेश ने मीडियाकर्मीयों की चुनौतियों को बढ़ा दिया है। सरकार और कॉरपोरेटों का गठजोड़ जनता के बीच में जो गलत सूचनाओं के प्रसार से भ्रामक स्थिति बना रहा है, सरोकारी पत्रकारिता का यह उत्तरदायित्व है कि वह सही सूचनाओं से लोगों को वाकिफ कराने के प्रयत्नों में शामिल रहे।

इससे पहले हेमचंद्र पांडे मेमोरियल कमेटी की ओर से पत्रकार भूपेन सिंह ने हेम पांडे को याद करते हुए कहा कि हेम सतही पत्रकारिता के इतर प्रतिबद्ध पत्रकारों की उस परंपरा से आते थे जो कारपोरेट लूट और तबाही के खिलाफ विचारधारात्मक पत्रकारिता करते हैं। उन्होंने अपनी इसी प्रतिबद्धता के चलते अपनी जान भी कुरबान कर दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार पीसी जोशी ने की। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार शमशेर बिष्ट, राजीव लोचन साह, साहित्यकार बटरोही, कपिलेश भोज, दिवा भट्ट, हयात सिंह रावत, चंद्रशेखर भट्ट, भास्कर उप्रेती, शंभू राणा, जेएस मेहता, कुंडल चैहान, कौशल पंत, दीप पाठक, पान सिंह, रमाशंकर नैलवाल, पूजा भट्ट, कुंदन सिंह आदि मौजूद थे। यह व्याख्यान अल्मोड़ा के सेवॉय होटल के सभागार में आयोजित कराया गया।