Saturday, 6 July 2013

संथाल परगना में नक्सलियों की दस्तक


रमेश भगत
-रमेश भगत

  "...अगर सभी खनिज तत्वों का खनन करने का काम शुरू कर दिया गया तो इलाके में व्यापक पैमाने पर विस्थापन होगा जिससे ना सिर्फ सामाजिक असंतुलन बढ़ेगा बल्कि इस इलाके की प्राकृतिक सुंदरता और आदिवासी-गैरआदिवासी के बीच दशकों पुरानी समरसता की भी हत्या हो जाएगी। इस इलाके में मौजूद वर्तमान कोल माइन्स कंपनी से लोगों को जिस तरह का नुकसान उठाना पड़ रहा है। उससे तय है कि यहां के लोग किसी भी हालात में दुसरी कंपनियों को बरदास्त नहीं करेंगे।..."


त्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं को निशाना बनाने के बाद नक्सलियों ने मंगलवार को झारखंड में बड़ी घटना को अंजाम दिया। नक्सलियों ने घात लगाकर पाकुड़ जिला के एसपी अमरजीत बलिहार समेत 5 पुलिसवालों की हत्या कर दी। इस घटना को दुमका जिला के काठीकुंड प्रखंड में अंजाम दिया गया। यह ना सिर्फ संथाल परगना में अब तक की सबसे बड़ी नक्सली घटना है बल्कि झारखंड बनने के बाद यह पहला मौका है जब नक्सलियों ने एसपी को अपना निशाना बनाया है।

इससे पहले इसी इलाके में सिस्टर वाल्सा जॉन की हत्या की गई थी। उस समय भी यह एक बड़ी खबर बनी थी। सिर्फ खबर। उस पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। कार्रवाई के नाम पर बस खानापूर्ती हुई है। इस इलाके में नक्सलियों की सुगबुगाहट से लेकर एसपी की मौत तक जो बातें सामने आ रही है वो है कोल माइन्स कंपनियां। पाकुड़ जिला के अमड़ापाड़ा प्रखंड में कम से कम 41 वर्ग किलोमीटर में कोयला है। जिसे सरकार ने अपनी सुविधा के लिए कई ब्लॉक में बांट कर रखा है। इन्हीं में से एक ब्लॉक है पचुवाड़ा सेंट्रल ब्लॉक। 13 वर्ग किलोमीटर में फैले पचुवाड़ा सेंट्रल ब्लॉक से कोयला निकालने का काम पेनम नाम की कंपनी करती है, जो प्राइवेट माइनिंग कंपनी एम्टा और पंजाब सरकार का संयुक्त उपक्रम है। यहां से निकलने वाला कोयला पंजाब भेजा जाता है। पेनम ने इस कोल ब्लॉक से 2005 में कोयला निकालना शुरू किया।

पेनम के खुलने से पहले अमड़ापाड़ा में जमीन अधिग्रहण का व्यापक विरोध हुआ था। पेनम के खिलाफ प्रभावित इलाकों के ग्रामीण एकजुट हो गए, जिसका नेतृत्व सिस्टर वाल्सा जॉन ने किया था। इस एकजुटता को तोड़ने में पेनम को ज्यादा पसीना नहीं बहाना पड़ा। वाल्सा जॉन के नेतृत्व की असफलता से ग्रामीण मजबूर होकर कंपनी के रास्ते से हट गए। हालांकि कंपनी ने विस्थापित लोगों के पुर्नवास की व्यवस्था करने के साथ ही कई अन्य सुविधाएं देने का वादा किया था। लेकिन वादे हैं वादों का क्या की तर्ज पर वादा, वादा ही रह गया। कंपनी के वादों के बावजूद पचुवाड़ा सेंट्रल ब्लॉक के कुछ गांव वालों ने आगे भी कंपनी के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। इस दौरान संथाल बहुल इस इलाके के ग्रामीणों का विश्वास राजनेताओं ने खो दिया। ग्रामीणों का रोष इतना बढ़ गया कि उन्होंने एक चुनावी सभा में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन पर तीर से हमला कर दिया। इस घटना के बाद भी राजनेताओं का साथ ग्रामीणों को नहीं मिला। जिससे कोल कंपनी के खिलाफ ग्रामीणों का रोष बरकरार रहा।

ग्रामीणों का यही रोष नक्सलियों के लिए मददगार साबित हुआ। और काफी शांत माना जाने वाला संथाल परगना हिंसा और प्रतिहिंसा का केंद्र बन गया। दरअसल संथाल परगना में कई कोल ब्लॉक है जिनसे कोयला निकालने के लिए सरकार ने बड़ी-बड़ी कंपनियों से एमओयू साइन किया है। इन कंपनियों में पेनम, जिंदल, मित्तल, अभिजीत जैसी प्राइवेट कंपनी है। झारखंड और बिहार सरकार के संयुक्त उपक्रम झार-बिहार को भी पचुवाड़ा में एक कोल ब्लॉक आवंटित किया गया है। इसके अलावा इन इलाकों में मिथेन गैस भी प्रचुर मात्रा में है। अगर सभी खनिज तत्वों का खनन करने का काम शुरू कर दिया गया तो इलाके में व्यापक पैमाने पर विस्थापन होगा जिससे ना सिर्फ सामाजिक असंतुलन बढ़ेगा बल्कि इस इलाके की प्राकृतिक सुंदरता और आदिवासी-गैरआदिवासी के बीच दशकों पुरानी समरसता की भी हत्या हो जाएगी। इस इलाके में मौजूद वर्तमान कोल माइन्स कंपनी से लोगों को जिस तरह का नुकसान उठाना पड़ रहा है। उससे तय है कि यहां के लोग किसी भी हालात में दुसरी कंपनियों को बरदास्त नहीं करेंगे।

हालांकि कई कंपनियां कोल ब्लॉक खोलने के लिए प्रयासरत है। दुमका जिला के शिकारीपाड़ा प्रखंड में जिंदल कंपनी भी कोल ब्लॉक खोलने का प्रयास कर रही है। लेकिन ग्रामीणों के विरोध के कारण अब तक वह सफल नहीं हो सकी है। दुमका जिला के ही रामगढ़ प्रखंड में भी लोग जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। पचुवाड़ा सेंट्रल ब्लॉक में कोयला खनन कर रही पेनम कंपनी अब अपना विस्तार कर पचुवाड़ा नोर्थ ब्लॉक से भी कोयला खनन शुरू करने वाली है। इससे प्रभावित इलाकों के ग्रामीण काफी गुस्से में हैं। नक्सलियों ने उनके गुस्से को अपने पक्ष में करने के लिए ही कहीं ना कहीं पाकुड़ एसपी को अपना निशाना बनाया है। क्योंकि राजनेताओं और पुलिस-प्रशासन से भरोसा उठने के बाद इन इलाकों के युवा बड़े पैमाने पर नक्सली बन रहे हैं। इन्हें प्रशिक्षण भी इन्ही इलाकों के घने जंगलों में दिया जा रहा है। यह काम पिछले 4-5 सालों से हो रहा है। इस तरह नक्सलियों ने एक मजबूत नेटवर्क तैयार कर लिया है। इस नेटवर्क का पहला टारगेट ही एसपी के काफिले पर हमला रहा। अगर वक्त रहते कोल कंपनियों के मंसूबे को नजरअंदाज करते हुए सरकार सिर्फ खनन को ही विकास मानकर कोल कंपनियों को शह देती रही तो इस इलाके को दूसरा बस्तर बनने से कोई नहीं रोक  सकता है।


 रमेश पत्रकार हैं. अभी ईएमएमसी में कार्यरत. 
rameshbhagat11@gmail.com इनकी ई-मेल आईडी है.

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