Tuesday, 26 November 2013

तहलका का साहस अब कहाँ है? : अरुंधती रॉय

Arundhati Roy...support for Maoist guerillas.
अरुंधती रॉय

-अरुंधती रॉय

तहलका के संस्थापक और प्रधान संपादक तरुण तेजपाल द्वारा गोवा में पत्रिका की एक युवा पत्रकार पर किए गए गंभीर यौन हमले के मामले पर  लेखिका और एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय की टिप्पणी 

हाशिया से साभार


रुण तेजपाल उस इंडिया इंक प्रकाशन घराने के पार्टनरों में से एक थे, जिसने शुरू में मेरे उपन्यास गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स को छापा था. मुझसे पत्रकारों ने हालिया घटनाओं पर मेरी प्रतिक्रिया जाननी चाही है. मैं मीडिया के शोरशराबे से भरे सर्कस के कारण कुछ कहने से हिचकती रही हूं. एक ऐसे इंसान पर हमला करना गैरमुनासिब लगा, जो ढलान पर है, खास कर जब यह साफ साफ लग रहा था कि वह आसानी से नहीं छूटेगा और उसने जो किया है उसकी सजा उसकी राह में खड़ी है. लेकिन अब मुझे इसका उतना भरोसा नहीं है. अब वकील मैदान में आ खड़े हुए हैं और बड़े राजनीतिक पहिए घूमने लगे हैं. अब मेरा चुप रहना बेकार ही होगा, और इसके बेतुके मतलब निकाले जाएंगे.

तरुण कई बरसों से मेरे एक दोस्त थे. मेरे साथ वे हमेशा उदार और मददगार रहे थे. मैं तहलका की भी प्रशंसक रही हूं, लेकिन मुद्दों के आधार पर. मेरे लिए तहलका के सुनहरे पल वे थे जब इसने आशीष खेतान द्वारा गुजरात 2002 जनसंहार के कुछ गुनहगारों पर किया गया स्टिंग ऑपरेशन और अजित साही की सिमी के ट्रायलों पर की गई रिपोर्टिंग को प्रकाशित किया. हालांकि तरुण और मैं अलग अलग दुनियाओं में रहते हैं और हमारे नजरिए (राजनीति भी और साहित्यिक भी) भी हमें एक साथ नहीं लाते और जिससे हम और दूर चले गए. अब जो हुआ है, उसने मुझे कोई झटका नहीं दिया, लेकिन इसने मेरा दिल तोड़ दिया है. तरुण के खिलाफ सबूत यह साफ करते हैं कि उन्होंने ‘थिंकफेस्ट’ के दौरान अपनी एक युवा सहकर्मी पर गंभीर यौन हमला किया. ‘थिंकफेस्ट’ उनके द्वारा गोवा में कराया जाने वाला ‘साहित्यिक’ उत्सव है. थिंकफेस्ट को खनन कॉरपोरेशनों की स्पॉन्सरशिप हासिल है, जिनमें से कइयों के खिलाफ भारी पैमाने पर बुरी कारगुजारियों के आरोप हैं. 
विडंबना यह है कि देश के दूसरे हिस्सों में ‘थिंकफेस्ट’ के प्रायोजक एक ऐसा माहौल बना रहे हैं जिसमें अनगिनत आदिवासी औरतों का बलात्कार हो रहा है, उनकी हत्याएं हो रही हैं और हजारों लोग जेलों में डाले जा रहे हैं या मार दिए जा रहे हैं. अनेक वकीलों का कहना है कि नए कानून के मुताबिक तरुण का यौन हमला बलात्कार के बराबर है. तरुण ने खुद अपने ईमेलों में और उस महिला को भेजे गए टेक्स्ट मैसेजों में, जिनके खिलाफ उन्होंने जुर्म किया है, अपने अपराध को कबूल किया है. फिर बॉस होने की अपनी अबाध ताकत का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने उससे पूरे गुरूर से माफी मांगी, और खुद अपने लिए सजा का एलान कर दिया-अपनी  ‘बखिया उधेड़ने’ के लिए छह महीने की छुट्टी की घोषणा-यह एक ऐसा काम है जिसे केवल धोखा देने वाला ही कहा जा सकता है. 
अब जब यह पुलिस का मामला बन गया है, तब अमीर वकीलों की सलाह पर, जिनकी सेवाएं सिर्फ अमीर ही उठा सकते हैं, तरुण वह करने लगे हैं जो बलात्कार के अधिकतर आरोपी मर्द करते हैं-उस औरत को बदनाम करना, जिसे उन्होंने शिकार बनाया है और उसे झूठा कहना. अपमानजनक तरीके से यह कहा जा रहा है कि तरुण को राजनीतिक वजहों से ‘फंसाया’ जा रहा है- शायद दक्षिणपंथी हिंदुत्व ब्रिगेड द्वारा. तो अब एक नौजवान महिला, जिसे उन्होंने हाल ही में काम देने लायक समझा था, अब सिर्फ एक बदचलन ही नहीं है बल्कि फासीवादियों की एजेंट हो गई? यह एक और बलात्कार है- उन मूल्यों और राजनीति का बलात्कार जिनके लिए खड़े होने का दावा तहलका करता है. यह उन लोगों की तौहीन भी है, जो वहां काम कर रहे हैं और जिन्होंने अतीत में इसको सहारा दिया था. यह राजनीतिक और निजी, ईमानदारियों की आखिरी निशानों को भी खत्म करना है. मुक्त, निष्पक्ष, निर्भीक. तहलका खुद को यह बताता है. तो साहस अब कहां है?
अनुवाद: रेयाज

Monday, 25 November 2013

एक मार्क्सवादी कथा वाचक का जीवन दर्शन !

जब मैं छोटा बच्चा था स्कूल जाने में कतराता था हमेशा सोचता था कि सब तो बड़े भाई लोग पढ़ चुके मेरे लिए अब क्या बचा है?पर स्कूल तो जाना ही पड़ता था। घाटी में पाला पड़ता था ना तन भर कपड़े थे ना पेट भर भात। घर में मैं सबसे छोटा था बुढ़ापे की औलाद "बूढ़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल" तब अधिकतर होता यूं था कि बड़े और छोटे में 22 साल का फरक होता बड़ा भाई या बहन छोटे की देखरेख कर लेता कभी कभी तो इधर नाती पहले पैदा हो जाता उधर चाचा बाद में पैदा होता ।

मेरे पिता शराबी नं० वन थे हमेशा चिढ़े रहते कमाई बेहद कम थी और पांच बच्चे थे हमेशा घर में कलह रहती उपर से झगड़ा होता और पूरे परिवार से होता हुआ मुझ तक पहुँचता मैं रोता रहता और चिढ़े भाई मुझे मारते मैं और जोर से रोता वे और चिढ़ जाते। बड़ा गजब पगलों का परिवार था हर घड़ी लोग भुनभुनाते बड़बड़ाते रहते। हाय पैसा ! हाय पैसा ! घर क्या था नरक जानो !

मेरे पिता बीमार पड़े शराब ने किडनी लीवर सब खतम कर दिया था चव्यनप्राश और बैद्य की गोलियां कब तक उनको बचातीँ ? सो टैम पर निकल लिए जब पिता मरे तो घर में मेहमानों का तांता लग गया मरनी भोज देना होता है जीते जी खुद के खाने के लाले थे मरने के बाद इतनों को खिलाना ठैरा ! मेरे लिए तो ये उत्सव सा माहौल था इन दिनों मुझे पेट भर खाना मिलता था । तब मैं सोचता कि घर के और भाई लोग भी मर जायें।

खैर ठंड पाले कुपोषण से बचपन निकला तो हल्द्वानी आ गये यहां मौसम गरम था टैम पर धूप आती स्कूल छूट गया भैंस थी दूध बेचते थे तब तक एक बड़ा भाई मर गया था एक लापता हो गया आज तक लापता है (एक जो है वो मनाता है मैं मर जाउं) बड़ी बहन तो पिता ही ब्याह कर गये थे ।

यहां लकड़ियां बिक जाती तब 10 रुपये गठ्ठा था आज 150 रुपये गठ्ठा है मेरी बचपन की दोस्त मेरी कुल्हाड़ी आज भी मेरे पास है जब भी पैसे की कमी पड़े मैं गौला नदी के जंगल निकल लेता हूं आज मुझे लगता है कि अब तक बच गया तो आगे भी कुछ साल बचूंगा ही तब तक फेसबुक पे लिखूंगा अपने गांव और गंवारपने से आप लोगों को जोड़े रखूंगा।

जिंदगी जब तक आपको मौका दे धूप हवा पानी खाना कपड़े मिलते रहें तब तक इस जिंदगी का शुक्रिया अदा करो! हम सब अभागे लोग हैं सो किसी अभागे अधूरे को कभी परेशान न करें ये अधूरी दुनियां कभी तो पूरी होगी इसके लिए जरुरी है मार्क्सवाद! जो उच्चतम अधिकतम गरिमामय जीवन का रास्ता है।
हमें कोई मोदी या राहुल आकर नहीं खिलायेगा कोई सांसद या विधायक नहीं जिलायेगा।हमारी दुनियां एक अंधेरी गुफा है जिसमें खुद को जला के रोशनी करनी है। अंधकार की इस सुरंग में फंसे लोग कभी तो इसके पार निकलेंगे ही सो चलते रहो।

मुझे नदी जंगल एकांत अच्छे लगते हैं जब तक ये हैं तब तक रोटी पानी चलती रहेगी आजकल मजदूरी250रुपये हो गयी चार दिन कमाओ 15 दिन की खिचड़ी रोटी चल जाती है।दुनियां में भले लोग बहुत हैं सब लोग कामकाजी स्वस्थ होते पर कमबख्त ये ढेर सारा पैसा लोगों को लालची बना देता है ये जरुरत भर मिले हरेक को रोटी रोजगार पढ़ाई इलाज मिले यही तो मार्क्सवाद है कितना आसान और सरल है।

कोई भी कम्युनिष्ट आज तक भ्रष्ट या बलात्कारी नहीं हुआ।मानिक सरकार त्रिपुरा का मुख्यमंत्री 5हजार में महीना काटता है बाकी तो आप रोज देखते हैं इन भाजपा कांग्रेस के नेताओं को चोर लंपट उचक्के बलात्कारी अपराधी फिर भी इनको ही जिताना ठैरा काहे को भला?ना इनको वोट दो ना इनकी सभाओं में जाओ ।


deep-pathak
दीप पाठक 
 दीप पाठक सामानांतर के साहित्यिक संपादक है. इनसे deeppathak421@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.