जब मैं छोटा बच्चा था स्कूल जाने में कतराता था हमेशा सोचता था कि सब तो
बड़े भाई लोग पढ़ चुके मेरे लिए अब क्या बचा है?पर स्कूल तो जाना ही पड़ता था।
घाटी में पाला पड़ता था ना तन भर कपड़े थे ना पेट भर भात। घर में मैं सबसे
छोटा था बुढ़ापे की औलाद "बूढ़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल" तब अधिकतर होता
यूं था कि बड़े और छोटे में 22 साल का फरक होता बड़ा भाई या बहन छोटे की
देखरेख कर लेता कभी कभी तो इधर नाती पहले पैदा हो जाता उधर चाचा बाद में
पैदा होता ।
मेरे पिता शराबी नं० वन थे हमेशा चिढ़े रहते कमाई बेहद कम थी और पांच बच्चे थे हमेशा घर में कलह रहती उपर से झगड़ा होता और पूरे परिवार से होता हुआ मुझ तक पहुँचता मैं रोता रहता और चिढ़े भाई मुझे मारते मैं और जोर से रोता वे और चिढ़ जाते। बड़ा गजब पगलों का परिवार था हर घड़ी लोग भुनभुनाते बड़बड़ाते रहते। हाय पैसा ! हाय पैसा ! घर क्या था नरक जानो !
मेरे पिता बीमार पड़े शराब ने किडनी लीवर सब खतम कर दिया था चव्यनप्राश और बैद्य की गोलियां कब तक उनको बचातीँ ? सो टैम पर निकल लिए जब पिता मरे तो घर में मेहमानों का तांता लग गया मरनी भोज देना होता है जीते जी खुद के खाने के लाले थे मरने के बाद इतनों को खिलाना ठैरा ! मेरे लिए तो ये उत्सव सा माहौल था इन दिनों मुझे पेट भर खाना मिलता था । तब मैं सोचता कि घर के और भाई लोग भी मर जायें।
खैर ठंड पाले कुपोषण से बचपन निकला तो हल्द्वानी आ गये यहां मौसम गरम था टैम पर धूप आती स्कूल छूट गया भैंस थी दूध बेचते थे तब तक एक बड़ा भाई मर गया था एक लापता हो गया आज तक लापता है (एक जो है वो मनाता है मैं मर जाउं) बड़ी बहन तो पिता ही ब्याह कर गये थे ।
यहां लकड़ियां बिक जाती तब 10 रुपये गठ्ठा था आज 150 रुपये गठ्ठा है मेरी बचपन की दोस्त मेरी कुल्हाड़ी आज भी मेरे पास है जब भी पैसे की कमी पड़े मैं गौला नदी के जंगल निकल लेता हूं आज मुझे लगता है कि अब तक बच गया तो आगे भी कुछ साल बचूंगा ही तब तक फेसबुक पे लिखूंगा अपने गांव और गंवारपने से आप लोगों को जोड़े रखूंगा।
जिंदगी जब तक आपको मौका दे धूप हवा पानी खाना कपड़े मिलते रहें तब तक इस जिंदगी का शुक्रिया अदा करो! हम सब अभागे लोग हैं सो किसी अभागे अधूरे को कभी परेशान न करें ये अधूरी दुनियां कभी तो पूरी होगी इसके लिए जरुरी है मार्क्सवाद! जो उच्चतम अधिकतम गरिमामय जीवन का रास्ता है।
हमें कोई मोदी या राहुल आकर नहीं खिलायेगा कोई सांसद या विधायक नहीं जिलायेगा।हमारी दुनियां एक अंधेरी गुफा है जिसमें खुद को जला के रोशनी करनी है। अंधकार की इस सुरंग में फंसे लोग कभी तो इसके पार निकलेंगे ही सो चलते रहो।
मुझे नदी जंगल एकांत अच्छे लगते हैं जब तक ये हैं तब तक रोटी पानी चलती रहेगी आजकल मजदूरी250रुपये हो गयी चार दिन कमाओ 15 दिन की खिचड़ी रोटी चल जाती है।दुनियां में भले लोग बहुत हैं सब लोग कामकाजी स्वस्थ होते पर कमबख्त ये ढेर सारा पैसा लोगों को लालची बना देता है ये जरुरत भर मिले हरेक को रोटी रोजगार पढ़ाई इलाज मिले यही तो मार्क्सवाद है कितना आसान और सरल है।
कोई भी कम्युनिष्ट आज तक भ्रष्ट या बलात्कारी नहीं हुआ।मानिक सरकार त्रिपुरा का मुख्यमंत्री 5हजार में महीना काटता है बाकी तो आप रोज देखते हैं इन भाजपा कांग्रेस के नेताओं को चोर लंपट उचक्के बलात्कारी अपराधी फिर भी इनको ही जिताना ठैरा काहे को भला?ना इनको वोट दो ना इनकी सभाओं में जाओ ।
मेरे पिता शराबी नं० वन थे हमेशा चिढ़े रहते कमाई बेहद कम थी और पांच बच्चे थे हमेशा घर में कलह रहती उपर से झगड़ा होता और पूरे परिवार से होता हुआ मुझ तक पहुँचता मैं रोता रहता और चिढ़े भाई मुझे मारते मैं और जोर से रोता वे और चिढ़ जाते। बड़ा गजब पगलों का परिवार था हर घड़ी लोग भुनभुनाते बड़बड़ाते रहते। हाय पैसा ! हाय पैसा ! घर क्या था नरक जानो !
मेरे पिता बीमार पड़े शराब ने किडनी लीवर सब खतम कर दिया था चव्यनप्राश और बैद्य की गोलियां कब तक उनको बचातीँ ? सो टैम पर निकल लिए जब पिता मरे तो घर में मेहमानों का तांता लग गया मरनी भोज देना होता है जीते जी खुद के खाने के लाले थे मरने के बाद इतनों को खिलाना ठैरा ! मेरे लिए तो ये उत्सव सा माहौल था इन दिनों मुझे पेट भर खाना मिलता था । तब मैं सोचता कि घर के और भाई लोग भी मर जायें।
खैर ठंड पाले कुपोषण से बचपन निकला तो हल्द्वानी आ गये यहां मौसम गरम था टैम पर धूप आती स्कूल छूट गया भैंस थी दूध बेचते थे तब तक एक बड़ा भाई मर गया था एक लापता हो गया आज तक लापता है (एक जो है वो मनाता है मैं मर जाउं) बड़ी बहन तो पिता ही ब्याह कर गये थे ।
यहां लकड़ियां बिक जाती तब 10 रुपये गठ्ठा था आज 150 रुपये गठ्ठा है मेरी बचपन की दोस्त मेरी कुल्हाड़ी आज भी मेरे पास है जब भी पैसे की कमी पड़े मैं गौला नदी के जंगल निकल लेता हूं आज मुझे लगता है कि अब तक बच गया तो आगे भी कुछ साल बचूंगा ही तब तक फेसबुक पे लिखूंगा अपने गांव और गंवारपने से आप लोगों को जोड़े रखूंगा।
जिंदगी जब तक आपको मौका दे धूप हवा पानी खाना कपड़े मिलते रहें तब तक इस जिंदगी का शुक्रिया अदा करो! हम सब अभागे लोग हैं सो किसी अभागे अधूरे को कभी परेशान न करें ये अधूरी दुनियां कभी तो पूरी होगी इसके लिए जरुरी है मार्क्सवाद! जो उच्चतम अधिकतम गरिमामय जीवन का रास्ता है।
हमें कोई मोदी या राहुल आकर नहीं खिलायेगा कोई सांसद या विधायक नहीं जिलायेगा।हमारी दुनियां एक अंधेरी गुफा है जिसमें खुद को जला के रोशनी करनी है। अंधकार की इस सुरंग में फंसे लोग कभी तो इसके पार निकलेंगे ही सो चलते रहो।
मुझे नदी जंगल एकांत अच्छे लगते हैं जब तक ये हैं तब तक रोटी पानी चलती रहेगी आजकल मजदूरी250रुपये हो गयी चार दिन कमाओ 15 दिन की खिचड़ी रोटी चल जाती है।दुनियां में भले लोग बहुत हैं सब लोग कामकाजी स्वस्थ होते पर कमबख्त ये ढेर सारा पैसा लोगों को लालची बना देता है ये जरुरत भर मिले हरेक को रोटी रोजगार पढ़ाई इलाज मिले यही तो मार्क्सवाद है कितना आसान और सरल है।
कोई भी कम्युनिष्ट आज तक भ्रष्ट या बलात्कारी नहीं हुआ।मानिक सरकार त्रिपुरा का मुख्यमंत्री 5हजार में महीना काटता है बाकी तो आप रोज देखते हैं इन भाजपा कांग्रेस के नेताओं को चोर लंपट उचक्के बलात्कारी अपराधी फिर भी इनको ही जिताना ठैरा काहे को भला?ना इनको वोट दो ना इनकी सभाओं में जाओ ।
![]() |
दीप पाठक |
दीप पाठक सामानांतर के साहित्यिक संपादक है. इनसे deeppathak421@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
No comments:
Post a Comment