Saturday, 25 August 2012

कल आज और कल

कल आज और कल
फर्क बस इतना है कि
कल चले गया
आज चल रहा है और
कल आएगा
हमेशा की तरह वापस आएगा कल
क्या सच होगा इतिहास लौटने का मुहावरा?
तो क्या हम अपने
कल के वापस आने के इंतजार में
अपने कल को बेहतर बनाने के लिए कुछ नहीं करें
हम खुद को ढाल लें परिस्थितियों के अनुरूप
या कोशिश करें परिस्थितियों को बदलने की
समाज तो जैसा कल था वैसा ही आज भी है
लेकिन समाज कल कैसा होगा
ये फैसला केवल हम ही कर सकते हैं
और इस कल की तस्वीर को बदलने के लिए हमें बदलना होगा अपना आज
जब आज की तस्वीर बदलेगी तभी कर पाएंगे कल्पना
हम कल के बदलने की
और समाज के बदलाव की
बदलाव तो हमेशा से ही रही है जरूरत दुनिया की
पर हम तो ये सोचते आये हैं की
वक़्त फिर लौटेगा
कल फिर आयेगा
हमें क्यों जरूरत आन पढ़ती है कल के वापस आने की?
क्यों हम अपना आज नहीं संवार सकते?
इतना अच्छा भी कल नहीं रहा है हमारा कि
 उसके वापस आने का इंतज़ार किया जाये
जिस दिन हम बंद कर देंगे अपने
बीते कल कि पैरवी करना तो
हमारे आने वाले कल को सवारने से क्या कोई रोक सकेगा?
और आने वाला कल भी हमेशा
बीता हुआ कल ही बनता है.

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