
उत्तराखंड में पिछली सरकार के पेयजल मंत्री भी गंगोलीहाट के ही मूल निवासी हैं. अपने कार्यकाल में उन्होंने क़स्बे के लिए कुछ नहीं किया. पानी कि परियोजना पिछले कई सालों से अधर में लटकी हुई है, पूरे क़स्बे में पानी के साधन केवल कुछ एक हैण्डपम्प ही हैं. औरतों को पानी के लिए सुबह-शाम कई कि मी. दूर तक हैण्डपम्प पर जाना पड़ता है. जाड़ों में ही लोगों का पानी के बिना बुरा हाल हो जाता है, तो गर्मियों के क्या कहने? कई बार तो रात-रात भर हैण्डपम्प के पास अपनी बारी का इंतजार करती महिलाएं दिखती हैं, फिर भी पानी मिले या न मिले इसका कोई भरोसा नहीं. दिन भर खेतों में काम करने वाली महिलाओं को रात में भी पानी के कारण दो घडी चैन नहीं मिल पता. हमारे मंत्रियों को इन समस्याओं से इतर लोगों की शादियों, बच्चों का नामकरण इत्यादि में जाने से फुर्सत नहीं मिलती. अगर कोई आम आदमी इनके पास अपने क्षेत्र से जुडी समस्याएँ लेकर जाता है तो ये जनाब घर से ही गायब हो जाते हैं. दोष विकल्फिनता का ही है, जिसने इन अराजकों को सत्ता के गलियारे तक पहुँचाया.
इन तेईस सालों में गंगोलीहाट का नाम केवल अवैध शराब तस्करी के लिए ही आगे आया. सन 2006 में शराब की दुकानें बंद करवाने को गंगोलीहाट में एक आन्दोलन हुआ, जनता का पूर्ण समर्थन आन्दोलन को था, एक महिला आन्दोलनकरी से बलात्कार की घटना ने इस आन्दोलन की आग में घी का काम किया और आन्दोलन सफल भी रहा जिसके फलस्वरूप गंगोलीहाट में शराब की दुकानें बंद करवा दी गयी. पर गंगोलीहाट में शराब की तस्करी अपने पैर फ़ैलाने लगी. पहले पिथोरागढ़ और बेरीनाग इत्यादि जगहों से शराब की तस्करी होने लगी. बाद में हरियाणा और पंजाब से तक अवैध शराब आने लगी. जिस शराब को आदमी 200 ₹ में पीता था, वोही शराब उसे 500 ₹ में मिलती थी. कुछ लोग कच्ची शराब बनाकर बेचने लगे. जो लोग कल तक २ वक़्त की रोटी खाने में असमर्थ थे, वो ही लोग शराब की तस्करी की बदोलत चोपहिया वाहनों में घुमने लगे. प्रशासन क्योँ अपने हाथ में हाथ धरे बैठा रहा? बात साफ़ जाहिर है की हमारे प्रशासन की नियत ही में कुछ खोट रहा होगा. ऐसा तो नहीं हो सकता की प्रशासन को इस बात की खबर ही नहीं थी की गंगोलीहाट जैसे छोटे से क़स्बे में तस्करी ने अपनी जडें जमा ली हैं. ऐसा कहने में मुझे कोई झिझक नहीं की प्रशासन की इन तस्करों से जरूर कोई सांठ-गांठ होगी. सच्चाई भी यही है. प्रशासन अगर कार्यवाही करता तो गंगोलीहाट में तस्कर कभी अपने पाँव नहीं फैला पाते. अब फिर से गंगोलीहाट में कुछ १ महीने पहले शराब के ठेके खुल गए हैं. कभी शराब की दुकानें बंद करने के लिए आन्दोलन किये गए बाद में वही आनदोलन दुकानें खुलवाने के लिए हुए. पिछले ६ सालों से तस्करी के जाल में फंसे गंगोलीहाट में दोबारा से ठेके खुलवाने को तो क्षेत्रीय लोग, जनप्रतिनिधि आन्दोलन करने लगे, पर कोई भी तस्करी को रुकवाने के प्रयासों में सामने नहीं आया. क्या फायदा ऐसे आन्दोलन का जो सफल होकर भी सफल नहीं हो पाया. अगर शराब का ठेका खुलवाना ही था तो बंद करवाने को आन्दोलन क्योँ किया?
अंधविश्वास गंगोलीहाट के बुजुर्गों से लेकर नयी पीढ़ी तक फैला है, क़स्बे का हर एक आदमी अंधविश्वास की चपेट में फंसा हुआ दिखाई देता है . बलि प्रथा अब तक गंगोलीहाट में अपने पैर फैलाये बैठी है. 21 वीं सदी में भी गंगोलीहाट जैसे कस्बों के लोगों में बलि प्रथा जैसी कुरीतियों का फैलाव इतना अधिक है कि मंदिरों में रोज आस्था के नाम पर न जाने कितने बेजुबान जानवरों की बलि दी जाती है. मदिरों के निर्माण के नाम पर जितना पैसा ये नेता और ठेकेदार खा जाते हैं उससे न जाने कितने विकास कार्य गंगोलीहाट में हो जाते, विकास के नाम पर केवल मंदिरों का अधूरा निर्माण ही गंगोलीहाट को मिल पाता है. क़स्बे में रोड ठीक नहीं, पानी नहीं, जीवन की मूलभूत आवश्यकतायें पूरी नहीं हो पाती, अच्छे स्कूल नहीं तो इन मंदिरों से लोग क्या करेंगे? जब हर जगह से तकरीबन बलि प्रथा का अंत होने को आया है तब गंगोलीहाट जैसी जगहों में इस प्रथा को ख़त्म करने को न ही सरकार द्वारा कोई कदम उठाए गए और न ही वहां के बुद्धिजीवियों द्वारा इस समस्या के बारे में सोचा गया. गंगोलीहाट में कई ऐसे बुद्धिजीवी भी है जिनका नाम काफी ऊँचा है, इतिहास से लेकर कई अन्य विषयों में कई किताबें लिख चुके हैं, पर गंगोलीहाट कि आम समस्याओं के बारे में इन्हें कभी न कुछ बोलते देखा गया और न ही इन्होने गंगोलीहाट कि समस्याओं को हल करने कि कोशिश की. कम से कम समाज में फैली इन कुरीतियों को ख़त्म करने के प्रयास तो इन बुद्धिजीवियों द्वारा करने चाहिए थे. इतिहास और कविताएँ लिखने से हालत नहीं सुधरते, जरूरत है आने वाले कल को बदलने की, विकास की जरूरत को समझने की.
आज से तकरीबन १२-१३ साल पहले बचपने में हम कुछ बच्चों के बीच अफवाह उड़ी थी कि गंगोलीहाट जिला बनने वाला है. एक ख़ुशी जहन में थी कि गंगोलीहाट जिला बनेगा. समझ नहीं थी तब. जरूरतों का कोई ज्ञान नहीं था. न ये पता था कि विकास क्या होता है? ये पता नहीं था कि जिला बनके गंगोलीहाट का क्या होगा? बस इतना पता था कि गंगोलीहाट भी अन्य जिलों कि तरह बढ़ा शहर बन जायेगा. उस समय पिथोरागढ़, अल्मोड़ा जैसे शहर हमारे लिए बहुत बड़े शहर हुआ करते थे, विकास के नाम पर समझ बस इतनी ही थी कि बड़ा शहर बनने पर गंगोलीहाट की समस्याएँ भी दूर हो जाएँगी. चाह बस इतनी ही थी कि गंगोलीहाट भी बड़ा बन जाये, पिथोरागढ़ और अल्मोड़ा कि तरह. बस बचपना था, आज युवा पीढ़ी में इस बात को लेकर कोई समझ नज़र नहीं आती कि उनका क्षेत्र भी तरक्की की ओर आगे बढे. गंगोलीहाट जैसी जगहों के लोगों में अभी भी समझ और जागरूकता का आभाव देखने को मिलता है. पहाड़ से पलायन कर चुके शहरी पहाड़ियों को भी केवल गर्मियों के दिनों पर पहाड़ कि याद आती है. अपनी लग्जरी गाड़ियों में जब ये पहाड़ आते हैं तो क्या रोडों कि हालत पर इन्हें तरस भी आता है? क्या पानी, बिजली कि समस्या इन्हें भी सताती है? जाते-जाते ये भी रो जाते हैं हर साल पहाड़ कि बदहाली का दिखावटी रोना पर कोई भी इन मसलों को सुलझाने कि बात करता दिखाई नहीं देता. कुछ फर्क नहीं पढता उन्हें, अब न वह पहाड़ में रहते हैं और न है कभी रहेंगे बस हर बार गर्मी में आके पहाड़ की बदहाली की लिए मगरमच्छ के आसूं बहा जायेंगे.
रोज मर्रा की समस्याओं का रोना रो रहे गंगोलीहाट ओर ऐसे कई कस्बों के आम लोगों को जरूरत है की जागरूकता का फैलाव उन तक हो. जब तक आम आदमी नहीं जागेगा तब तक किसी भी सामाजिक समस्या का निदान संभव नहीं है. सरकार के बंद कानों को पूरी जनता की एकजुट आवाज के बलबूते ही खोला जा सकता है. यही वक्त है सोये हुए हुक्मरानों को जगाने का. गंगोलीहाट के लोगों को समझना होगा इन भ्रस्टाचारी नेताओं और बुद्धिजीवियों के भरोसे गंगोलीहाट में विकास के नाम पर कुछ नहीं हो सकता. आम आदमी को इन सब बातों की समझ आ गयी तो उन्हें इन नेताओं के तलवे तो नहीं चाटने पड़ेंगे. क्षेत्र विकास के लिए चुने गए ये जनप्रतिनिधि ही विकास की राह में रोड़ा बन रहे है, इनको दरकिनार कर एक गंगोलीहाट जैसे कस्बों की जनता को सामने आना होगा. इन्हें इनकी असली औकात दिखानी होगी. केवल भाषडों और बहसों से ये काम संभव नहीं है, हुक्मरानों को जगाने के किये लोगों की बुलंद आवाज की दरकार है. गंगोलीहाट जैसे कस्बों के विकास के लिए आम आदमी को ही जागना पढ़ेगा, अगर नहीं तो न इन जगहों का विकास संभव है और न ही हालातों में कोई परिवर्तन आएगा.
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