Tuesday, 26 November 2013

तहलका का साहस अब कहाँ है? : अरुंधती रॉय

Arundhati Roy...support for Maoist guerillas.
अरुंधती रॉय

-अरुंधती रॉय

तहलका के संस्थापक और प्रधान संपादक तरुण तेजपाल द्वारा गोवा में पत्रिका की एक युवा पत्रकार पर किए गए गंभीर यौन हमले के मामले पर  लेखिका और एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय की टिप्पणी 

हाशिया से साभार


रुण तेजपाल उस इंडिया इंक प्रकाशन घराने के पार्टनरों में से एक थे, जिसने शुरू में मेरे उपन्यास गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स को छापा था. मुझसे पत्रकारों ने हालिया घटनाओं पर मेरी प्रतिक्रिया जाननी चाही है. मैं मीडिया के शोरशराबे से भरे सर्कस के कारण कुछ कहने से हिचकती रही हूं. एक ऐसे इंसान पर हमला करना गैरमुनासिब लगा, जो ढलान पर है, खास कर जब यह साफ साफ लग रहा था कि वह आसानी से नहीं छूटेगा और उसने जो किया है उसकी सजा उसकी राह में खड़ी है. लेकिन अब मुझे इसका उतना भरोसा नहीं है. अब वकील मैदान में आ खड़े हुए हैं और बड़े राजनीतिक पहिए घूमने लगे हैं. अब मेरा चुप रहना बेकार ही होगा, और इसके बेतुके मतलब निकाले जाएंगे.

तरुण कई बरसों से मेरे एक दोस्त थे. मेरे साथ वे हमेशा उदार और मददगार रहे थे. मैं तहलका की भी प्रशंसक रही हूं, लेकिन मुद्दों के आधार पर. मेरे लिए तहलका के सुनहरे पल वे थे जब इसने आशीष खेतान द्वारा गुजरात 2002 जनसंहार के कुछ गुनहगारों पर किया गया स्टिंग ऑपरेशन और अजित साही की सिमी के ट्रायलों पर की गई रिपोर्टिंग को प्रकाशित किया. हालांकि तरुण और मैं अलग अलग दुनियाओं में रहते हैं और हमारे नजरिए (राजनीति भी और साहित्यिक भी) भी हमें एक साथ नहीं लाते और जिससे हम और दूर चले गए. अब जो हुआ है, उसने मुझे कोई झटका नहीं दिया, लेकिन इसने मेरा दिल तोड़ दिया है. तरुण के खिलाफ सबूत यह साफ करते हैं कि उन्होंने ‘थिंकफेस्ट’ के दौरान अपनी एक युवा सहकर्मी पर गंभीर यौन हमला किया. ‘थिंकफेस्ट’ उनके द्वारा गोवा में कराया जाने वाला ‘साहित्यिक’ उत्सव है. थिंकफेस्ट को खनन कॉरपोरेशनों की स्पॉन्सरशिप हासिल है, जिनमें से कइयों के खिलाफ भारी पैमाने पर बुरी कारगुजारियों के आरोप हैं. 
विडंबना यह है कि देश के दूसरे हिस्सों में ‘थिंकफेस्ट’ के प्रायोजक एक ऐसा माहौल बना रहे हैं जिसमें अनगिनत आदिवासी औरतों का बलात्कार हो रहा है, उनकी हत्याएं हो रही हैं और हजारों लोग जेलों में डाले जा रहे हैं या मार दिए जा रहे हैं. अनेक वकीलों का कहना है कि नए कानून के मुताबिक तरुण का यौन हमला बलात्कार के बराबर है. तरुण ने खुद अपने ईमेलों में और उस महिला को भेजे गए टेक्स्ट मैसेजों में, जिनके खिलाफ उन्होंने जुर्म किया है, अपने अपराध को कबूल किया है. फिर बॉस होने की अपनी अबाध ताकत का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने उससे पूरे गुरूर से माफी मांगी, और खुद अपने लिए सजा का एलान कर दिया-अपनी  ‘बखिया उधेड़ने’ के लिए छह महीने की छुट्टी की घोषणा-यह एक ऐसा काम है जिसे केवल धोखा देने वाला ही कहा जा सकता है. 
अब जब यह पुलिस का मामला बन गया है, तब अमीर वकीलों की सलाह पर, जिनकी सेवाएं सिर्फ अमीर ही उठा सकते हैं, तरुण वह करने लगे हैं जो बलात्कार के अधिकतर आरोपी मर्द करते हैं-उस औरत को बदनाम करना, जिसे उन्होंने शिकार बनाया है और उसे झूठा कहना. अपमानजनक तरीके से यह कहा जा रहा है कि तरुण को राजनीतिक वजहों से ‘फंसाया’ जा रहा है- शायद दक्षिणपंथी हिंदुत्व ब्रिगेड द्वारा. तो अब एक नौजवान महिला, जिसे उन्होंने हाल ही में काम देने लायक समझा था, अब सिर्फ एक बदचलन ही नहीं है बल्कि फासीवादियों की एजेंट हो गई? यह एक और बलात्कार है- उन मूल्यों और राजनीति का बलात्कार जिनके लिए खड़े होने का दावा तहलका करता है. यह उन लोगों की तौहीन भी है, जो वहां काम कर रहे हैं और जिन्होंने अतीत में इसको सहारा दिया था. यह राजनीतिक और निजी, ईमानदारियों की आखिरी निशानों को भी खत्म करना है. मुक्त, निष्पक्ष, निर्भीक. तहलका खुद को यह बताता है. तो साहस अब कहां है?
अनुवाद: रेयाज

Monday, 25 November 2013

एक मार्क्सवादी कथा वाचक का जीवन दर्शन !

जब मैं छोटा बच्चा था स्कूल जाने में कतराता था हमेशा सोचता था कि सब तो बड़े भाई लोग पढ़ चुके मेरे लिए अब क्या बचा है?पर स्कूल तो जाना ही पड़ता था। घाटी में पाला पड़ता था ना तन भर कपड़े थे ना पेट भर भात। घर में मैं सबसे छोटा था बुढ़ापे की औलाद "बूढ़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल" तब अधिकतर होता यूं था कि बड़े और छोटे में 22 साल का फरक होता बड़ा भाई या बहन छोटे की देखरेख कर लेता कभी कभी तो इधर नाती पहले पैदा हो जाता उधर चाचा बाद में पैदा होता ।

मेरे पिता शराबी नं० वन थे हमेशा चिढ़े रहते कमाई बेहद कम थी और पांच बच्चे थे हमेशा घर में कलह रहती उपर से झगड़ा होता और पूरे परिवार से होता हुआ मुझ तक पहुँचता मैं रोता रहता और चिढ़े भाई मुझे मारते मैं और जोर से रोता वे और चिढ़ जाते। बड़ा गजब पगलों का परिवार था हर घड़ी लोग भुनभुनाते बड़बड़ाते रहते। हाय पैसा ! हाय पैसा ! घर क्या था नरक जानो !

मेरे पिता बीमार पड़े शराब ने किडनी लीवर सब खतम कर दिया था चव्यनप्राश और बैद्य की गोलियां कब तक उनको बचातीँ ? सो टैम पर निकल लिए जब पिता मरे तो घर में मेहमानों का तांता लग गया मरनी भोज देना होता है जीते जी खुद के खाने के लाले थे मरने के बाद इतनों को खिलाना ठैरा ! मेरे लिए तो ये उत्सव सा माहौल था इन दिनों मुझे पेट भर खाना मिलता था । तब मैं सोचता कि घर के और भाई लोग भी मर जायें।

खैर ठंड पाले कुपोषण से बचपन निकला तो हल्द्वानी आ गये यहां मौसम गरम था टैम पर धूप आती स्कूल छूट गया भैंस थी दूध बेचते थे तब तक एक बड़ा भाई मर गया था एक लापता हो गया आज तक लापता है (एक जो है वो मनाता है मैं मर जाउं) बड़ी बहन तो पिता ही ब्याह कर गये थे ।

यहां लकड़ियां बिक जाती तब 10 रुपये गठ्ठा था आज 150 रुपये गठ्ठा है मेरी बचपन की दोस्त मेरी कुल्हाड़ी आज भी मेरे पास है जब भी पैसे की कमी पड़े मैं गौला नदी के जंगल निकल लेता हूं आज मुझे लगता है कि अब तक बच गया तो आगे भी कुछ साल बचूंगा ही तब तक फेसबुक पे लिखूंगा अपने गांव और गंवारपने से आप लोगों को जोड़े रखूंगा।

जिंदगी जब तक आपको मौका दे धूप हवा पानी खाना कपड़े मिलते रहें तब तक इस जिंदगी का शुक्रिया अदा करो! हम सब अभागे लोग हैं सो किसी अभागे अधूरे को कभी परेशान न करें ये अधूरी दुनियां कभी तो पूरी होगी इसके लिए जरुरी है मार्क्सवाद! जो उच्चतम अधिकतम गरिमामय जीवन का रास्ता है।
हमें कोई मोदी या राहुल आकर नहीं खिलायेगा कोई सांसद या विधायक नहीं जिलायेगा।हमारी दुनियां एक अंधेरी गुफा है जिसमें खुद को जला के रोशनी करनी है। अंधकार की इस सुरंग में फंसे लोग कभी तो इसके पार निकलेंगे ही सो चलते रहो।

मुझे नदी जंगल एकांत अच्छे लगते हैं जब तक ये हैं तब तक रोटी पानी चलती रहेगी आजकल मजदूरी250रुपये हो गयी चार दिन कमाओ 15 दिन की खिचड़ी रोटी चल जाती है।दुनियां में भले लोग बहुत हैं सब लोग कामकाजी स्वस्थ होते पर कमबख्त ये ढेर सारा पैसा लोगों को लालची बना देता है ये जरुरत भर मिले हरेक को रोटी रोजगार पढ़ाई इलाज मिले यही तो मार्क्सवाद है कितना आसान और सरल है।

कोई भी कम्युनिष्ट आज तक भ्रष्ट या बलात्कारी नहीं हुआ।मानिक सरकार त्रिपुरा का मुख्यमंत्री 5हजार में महीना काटता है बाकी तो आप रोज देखते हैं इन भाजपा कांग्रेस के नेताओं को चोर लंपट उचक्के बलात्कारी अपराधी फिर भी इनको ही जिताना ठैरा काहे को भला?ना इनको वोट दो ना इनकी सभाओं में जाओ ।


deep-pathak
दीप पाठक 
 दीप पाठक सामानांतर के साहित्यिक संपादक है. इनसे deeppathak421@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

Sunday, 27 October 2013

पूंजी का संरचनात्मक संकट और शिक्षा : यूएस परिघटना : चौथी/अंतिम क़िस्त

http://www.laika-verlag.de/sites/default/files/JohnBellamyFoster.png
जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर
 - जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर
अनुवादः रोहित, मोहन  और सुनील

जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर मंथली रिव्यू के संपादक हैं। वे, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑरेगोन में समाजशास्त्र के प्रवक्ता और चर्चित पुस्तक ‘द ग्रेट फाइनेंसियल क्राइसिस’(फ्रैड मैग्डोफ़ के साथ) के लेखक हैं। उक्त आलेख 11अप्रैल 2011 को फ्रैडरल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सेंटा कैटेरिना, फ्लोरिआनोपोलिस, ब्राजील में शिक्षा एवं मार्क्सवाद पर पांचवे ब्राजीलियन सम्मेलन (ईबीईएम) में उनके द्वारा दिए गए आधार वक्तव्य का विस्तार है।  इस लम्बे आलेख को हम ४ किस्तों में यहाँ दे रहे हैं. यह दूसरी क़िस्त है... 
क्लिक करें)
-सं.

शिक्षा-उदयोग संकुल

स्कूलों की पुनर्संरचना की प्रक्रिया ने निजी शिक्षा उदयोग को बढ़ावा दियाइसे भारी मुनाफ़ा कमाने वाले विकासमान क्षेत्र के तौर पर देखा जा रहा है। CNNMoney.com ने अपनी 16 मर्इ 2011 की रिपोर्ट में कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र के बाद शिक्षा क्षेत्र, 2007 की महान मंदी के उपरांतसर्वाधिक रोज़गार उपलब्ध करवाने वाला क्षेत्र रहा है। शैक्षणिक सेवा क्षेत्र तथा सार्वजनिक कालेजों में 303000 नौकरियां उपलब्ध करवार्इ गई।
2000 में ब्लूमबर्ग बिजनेस वीक ने शिक्षा क्षेत्र में निवेश संबंधी रिपोर्ट में स्कूलों के बाज़ारीकरण तथा निजीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति की ओर इंगित किया। लेग्ग मेसन (एक वैशिवक परिसंपत्ति प्रबंधन फर्म) से जुड़े शिक्षा अन्वेषक स्काट साफेन ने अभिव्यक्त किया कि ''निजी शिक्षा की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी है सरकारऔर वक्त के साथ मुनाफ़ा-अर्जक क्षेत्र इस व्यवसाय में सरकार को पीछे छोड़ देगा।

निजी शिक्षा उद्योग स्वभावत: ही मूल्यांकन तथा परीक्षण की नर्इ पद्धतियों का समर्थक है। 2005 में थिकइविटी पार्टनर्स एलसीसी  ने 'नया उद्योगनए स्कूलनया बाज़ार : के-12 शिक्षा उद्योग आउटलुक, 2005 शीर्षक से एज्यूकेशन इंडस्ट्री एसोसिएशन के लिए एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इसने पाया कि 2005 में ''500 बिलियन डालर के के-12घरेलू बाज़ार में निजी शिक्षा उद्योग का हिस्सा 75 बिलियन डालर (या कुल व्यय का 15 फ़ीसद) था। राजकीय एवं संघीय सरकारों द्वारा अपनाए जा रहे नए पैमानोंपरीक्षण तथा उत्तरदायित्व के मानदण्डों तथा चार्टर स्कूलों की वृद्धि के परिणामस्वरूप अगले 10 सालों में निजी शिक्षा उद्योग का हिस्सा 163 बिलियन डालर; के-12  शैक्षणिक बाज़ार का 20 फीसद तक बढ़ जाने का अनुमान लगाया गया। 2005 में के-12 ने शिक्षा उद्योग से 6.6 बिलियन डालर का संरचनात्मक तथा हार्डवेयर का सामान ख़रीदा, 8 बिलियन डालर की निर्देशात्मक सामग्री तथा 2 बिलियन डालर का मूल्यांकन (परीक्षण व्यवस्था) संबंधी सामान ख़रीदा। तकनीक पर किया गया ख़र्च (चूंकि साफ्टवेयर को निर्देशात्मक सामग्री में शामिल किया गया था) अनुमानत: 8 बिलियन डालर था। शिक्षा उद्योग की रिपोर्ट निष्कर्षत: कहती है कि यह प्रवृत्ति ''शिक्षा और उद्योग के गहराते समन्वयन को दर्शाती है। पैसा बनाने के ''बहुत से रास्ते” खुल रहे थे।

वृद्धिमान शिक्षा-उद्योग से अर्जित मुनाफ़े का बड़ा हिस्सा विशाल निगमों के पास जाने की संभावना हैख़ासतौर से एप्पलडेलआर्इबीएमएचपी काम्पैकपाम और टेक्सस इन्स्ट्रूमेन्टस (तकनीक)पीयर्सनहारकार्टमैक्ग्रा-हिलथामसन और हाटन मिफिलन (निर्देशात्मक सामग्री)सीटीबी मैक्ग्राहारकार्ट असेसमेन्टथामसनप्लेटो और रिनेसां (मूल्यांकन)और स्कोलेसिटकप्लेटोरिनेसांसाइंटिफिक लर्निंग और लीपफ्राग (परिशिष्ट निर्देशात्मक सामग्री) को बड़ा हिस्सा मिलने की संभावना है। थिंकइकिवटी के-12 रिपोर्ट में छोटी तकनीकी कंपनियों तथा नव्य-स्थापित परिशिष्ट निर्देशात्मक सामग्री उपलब्ध करवाने वाली फर्मों के हस्तगन की प्रक्रिया की ओर इंगित किया गया था। दरअस्लनिर्देशात्मक सामग्री बनाने वाली बड़ी कंपनियों द्वारा छोटी कंपनियों के अर्जन की प्रक्रिया पहले से ही शुरू हो चुकी थी। 9 कंपनियों के पास परीक्षण बाज़ार का 87 फ़ीसद हिस्सा था। कंप्यूटर हार्डवेयर तथा परीक्षणदोनों ही द्रुत वृद्धि वाले क्षेत्र माने गए।

जाने-माने शिक्षा अनुसंधानकर्ता तथा आलोचक जेराल्ड डब्ल्यू ब्रेसी ने 2005 में 'नो चाइल्ड लैफ्ट बिहाइंड : पैसा जाता कहा है? शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित करवार्इ थीउन्होंने बड़ी पूंजीभ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोरी पर ख़ास ध्यान दिया था। निजी शिक्षा क्षेत्र के प्रभाव को स्पष्ट करने वाला तथ्य यह है कि जार्ज डब्ल्यू बुश ने व्हाइट हाऊस में अपने प्रवेश के पहले दिन ही (एनसीएलबी के उदघाटन से कुछेक दिन पहले) अपने नज़दीक पारिवारिक मित्र तथा अपनी संक्रमणकालीन टीम के सदस्य मैक्ग्रा तृतीय के साथ मीटिंग की थी। ये मैक्ग्रा हिल के सीर्इओ हैं। बिजनेस राउण्डटेबलजो कि यूएस के 200 सबसे बड़े निगमों का प्रतिनिधित्व करता हैने एनसीएलबी का दृढ़ समर्थन किया था। स्टेट फार्म इन्श्योरेन्स का सीर्इओ एडवर्ड रस्ट जूनियरजिसकी एनसीएलबी के लिए बिजनेस राउण्डटेबल का समर्थन जुटाने में महती भूमिका रही थीएक साथ कर्इ पदों पर कार्यरत था- वह बिजनेस राउण्डटेबल के एज्यूकेशन टास्क फोर्स का चेयरमैन थामैक्ग्रा-हिल का बोर्ड सदस्य था और बुश की संक्रमणकालीन टीम का भी सदस्य था। ब्रसी के मुताबिक एनसीएलबी के अंतर्गत मुनाफ़ा-केन्द्रित शैक्षणिक सेवाओं की वृद्धि की प्रक्रिया एक 'हैरानकुन दोगलापन दर्शाती है-' सार्वजनिक स्कूलों के ऊपर कमरतोड़ दबाव डाला गयाइसके विपरीत 'स्कूलों को सामग्री और सेवाएं मुहैया करवाने वाले निगमों के साथ शिथिलता बरती गर्इ।

पूंजी से परे शिक्षा

नवउदारवादी स्कूल संशोधन आंदोलन तथा कारपोरेट मीडिया द्वारा शिक्षकों और शिक्षक संघों की निरंतर दुर्भावनापूर्ण निंदा ही अमेरिका में शिक्षण के क्षेत्र संबंधी संघर्ष की वास्तविक प्रगति को उजागर कर देती है। रैविच (जिसने डब्ल्यू.एच.बुश और किलंटन दोनों ही प्रशासनों के अंतर्गत काम किया थावह एनसीएलबी का पक्का समर्थक है) ने घोषणा की:
''कारपोरेट स्कूल संशोधन तो असल मक़सद को ढकने का बहाना भर है उनका मक़सद है ट्रेड यूनियनों को उखाड़ फेंकना। कारपोरेट स्कूल संशोधन चाहता है कि सामूहिक सौदेबाजी की इस परंपरा को विधान द्वारा समाप्त कर दिया जाएताकि यूनियनों से छुटकारा पाया जाए। लेकिन यूनियानों के खत्म होते ही बच्चों और कार्य की दशा के बारे में बोलने वाला कोर्इ न रहेगा....”

स्कूलों के बंद होने से आखिर खुशी किस को मिलती हैवाल स्ट्रीट हेज़ फण्डसडेमोक्रेटस फार एजुकेशनल रिफार्म (भेड़ की खाल में भेडि़ये)स्टैण्ड फार चिल्ड्रन (जिसे गेटस फाउण्डेशन से लाखों डालर मिलते हैं)द बिल्योनेयर क्लब (गेटसवाल्टनब्रोड)वाशिंगटन डी.सी. में बैठे रणनीतिकार जिनमें से लगभग सभी को गेटस फाउण्डेशन से पैसा मिलता है। ये बहुत से संपादकीय मण्डलों में पैठ रखते हैं। यह कारपोरेट संशोधन आंदोलन पूरा चकरघिन्नी है। और मैं ज़ोर देकर कहना चाहता हूँ कि हम सही ही इस पूरे शैक्षणिक संशोधन आंदोलन को कारपोरेट संशोधन का लेबल देते हैं।

पूंजीपति-निर्देशित ये नए स्कूल संशोधन ख़ासतौर से एक वजह से स्कूल शिक्षकों और उनकी यूनियनों को निशाना बनाते हैं : कि शिक्षकगण (हालांकि वे अक्सर राजनीतिक रूप से अक्रिय रहते हैं) अपने विधार्थियों पर थोपे जा रहे नए कारपोरेट शिक्षण तथा उनकी अपनी कार्यदशाओं के टेयलरवादीकरण (टेयलरार्इजे़शन) का विरोध करते हैं। शिक्षक खुद को शैक्षणिक व्यवसायिकों के तौर पर देखते हैंलेकिन अब तेज़ी से उनका सर्वहाराकरण किया जा रहा है। सोवे स्कूल पुनर्संरचना योजना तथा बच्चों के वस्तुकरण की प्रक्रिया के सर्वाधिक संभावनाशील विरोधी हैं। इसी वजह से नर्इ परीक्षण विधियां सबसे पहले शिक्षकों को ही निशाना बनाती हैं। वे मूल्यांकन करती हैंसिर्फ विधार्थियों का ही नहींबल्कि मुख्यतया इस बात का कि किस हद तक शिक्षकगण टेयलरवाद (टेयलरर्इज्म) के सामने झुके हैं- ये शिक्षण-विधि का नियंत्रण शिक्षकों से छीनने वाला प्रमुख हथियार है। डंकन ने बाज़ मौकों पर घोषित किया है कि 'रेस टू द टॉप’ की प्रमुख उपलबिध यह रही है कि इसने राज्यों पर दबाव बनाया है कि वे विधार्थी - मूल्यांकन परीक्षाओं के आधार पर शिक्षकों का मूल्यांकन करना तज दें।  जैसा कि रैविच ने 'महान अमेरिकी स्कूल व्यवस्था की मौत और जीवन’ में सुझाया है:
'शिक्षक संघों के बहुत से आलोचक हैं। इनमें उनके अंदर के लोग भी शामिल हैं जिनकी शिकायत है कि उनके नेता कारपोरेट सुधारों के विरूद्ध शिक्षकों का बचाव नहीं कर पाते... लेकिन मीडिया में छाए रहने वाले आलोचक यूनियनों को शैक्षणिक सुधारों की राह में मुख्य बाध के तौर पर देखते हैं। वे यूनियनों को दोषी ठहराते हैं क्योंकि यूनियनें परीक्षा-परिणामों के आधर पर शिक्षकों का मूल्यांकन नहीं होने देना चाहती। वे (आलोचक) चाहते हैं कि प्रशासनों को स्वतंत्रता हो कि वे उन शिक्षकों को नौकरी से हटा सकें जिनके विधार्थियों के अंक नहीं बढ़ रहे हैं तथा नए शिक्षकों की भर्ती कर सकें जो शायद परिणाम सुधार सकें। वे परीक्षा परिणामों को मूल्यांकन का अहम पैमाना बनाना चाहते हैं।

और अब उसी मूल बिन्दु की ओर लौटना मौजूं रहेगा जो कि 1970 में बोवेल्स और जिनटिस ने 'पूंजीवादी अमेरिका में शिक्षण में प्रतिपादित किया था- कि किसी भी ऐतिहासिक समय-काल में उत्पादन के सामाजिक संबंधों तथा शिक्षा के सामाजिक संबंधों में अनुरूपता पार्इ जा सकती है। इस राजनीतिक-आर्थिक नजरिये के हिसाब से वर्तमान में शिक्षा पर बढ़ रहे नवउदारवादी हमले के कारकों में एकाधिकारी-वित्तीय पूंजी के विशिष्ट द्योतक आर्थिक गतिरोधवित्तीयकरण तथा आर्थिक पुनर्संरचना को माना जा सकता है। आर्थिक वृद्धि में गिरावट नेजो कि 1970 के दशक में शुरू हुर्इसिर्फ़ आर्थिक मक़सदों तक सीमित रहने वाले संघर्षों (श्रमिकों के) को कमज़ोर किया। साथ ही समाज पर रूढि़वादियों तथा कारपोरेट ताकतों की प्रभुसत्ता बढ़ने से श्रमिकों के राजनीतिक केंद्र भी कमज़ोर पड़े। वित्तीय और सूचना पूंजी की सापेक्षिक बढ़त नेजिसे उत्पादन में ठहराव से प्रोत्साहन मिलास्कूलों में डिजिटल आधारित टेयलरवाद तथा कठोर वित्तीय प्रबंधन को और गतिशीलता प्रदान की। इसके साथ ही विषमतागरीबी तथा बेरोज़गारी भी बढ़ी क्योंकि पूंजी ने आर्थिक हानियों का बोझ श्रमिकों तथा ग़रीबों पर डाल दिया। अल्पवृद्धिबढ़ती विषमता तथा बढ़ती बाल-दरिद्रता से उत्पन्न दबावों के साथ-साथ जब राजकीय व्यय पर लगे नए प्रतिबंधों का भार भी जुड़ गया तो स्कूल एक भंवर में फंसते चले गए। सार्वजनिक स्कूलजो कि बहुत से समुदायों तथा बच्चों हेतु सामाजिक सुरक्षा का एक बड़ा सहारा थेढहते सामाजिक तथा आर्थिक ताने-बाने हेतु भरपार्इ करने के लिए ज़बरन इस्तेमाल किए गए।

इसी दौरान उभरे 'समृद्धों के विद्रोह’ की वजह से स्कूलों को मिलने वाली स्थानीय इमदाद भी जो कि संपत्तिगत कराधन पर आधारित थी- घटी। राज्य तथा संघीय सरकारें स्कूलों को इमदाद मुहैया करवाने पर मज़बूर हुईस्थानीय नियंत्रण घटा और अपने परंपरागत कारपोरेट प्रबंधन के लक्ष्यों के साथ कारपोरेट वित्तीयकरण माडल प्रभावी हो गया। सुधार हेतु शुरू की गर्इ परीक्षण एवं उत्तरदायित्व की विधियों की विफलता नेभले ही उनके मानदण्ड संकीर्ण होंसमस्या की जड़ के तौर पर शिक्षकों ओर शिक्षक संघों को इंगित किया और उन पर दबाव बनाया। 2007 में वित्तीय बुलबुले के फूटने से तथा इसके बाद आर्इ महान मंदी ने स्कूलों तथा शिक्षक संघों को और अधिक हानि पहुँचार्इ और शिक्षा के क्षेत्र में आपात-संकट की सी स्थिति ला दी।

हालांकि बजट मे के-12 शिक्षा का हिस्सा थोड़ा-सा बढ़ा भी, 2009 में यह 4.3 फ़ीसद तक पहुँचा। यह लेकिन शिक्षा के प्रति उत्तरदायिता की किसी भावना को नहीं दर्शाता है बल्कि महान मंदी के संदर्भ में सरकारी इमदाद के बरखि़लाफ निजी अर्थव्यवस्था की कमज़ोरी ज़ाहिर करता है। सरकारी ख़र्च की गिरती दशा के सूचक ये तथ्य हैं कि अमरीकी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर ख़र्च 2001 में कुल सरकारी व्यय का 22.7 फ़ीसद हो गया तथा 2009 में यह 21 फ़ीसद हुआ - यह साफ़ तौर पर इंगित करता है कि कुल सरकारी व्यय में इसका हिस्सा गिरता जा रहा है।

निरंतर अधोगमन की इस सिथति में शिक्षकों पर बढ़ते दबाव और उनका मनोधैर्य तोड़ने की कोशिशें सार्वजनिक शिक्षण व्यवस्था पर सांघातिक प्रहार है क्योंकि पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षकगण शिक्षा-प्रसार (सिर्फ शिक्षण ही नहीं) को अपना उत्तरदायित्व समझकर इस दिशा में प्रयासरत रहे हैं- व्यवस्था के खि़लाफ़ जाकर भी। शिक्षक प्रभुत्ववाद के विरोध में खड़े हुए और वे उस ढ़हती स्कूली व्यवस्था को थामे हुए हैं जो कि उनके असाधारण संघर्ष की अनुपसिथति में अब तक ढह ही चुकी होती। स्टेटस आफ़ द अमेरिकन पब्लिक स्कूल टीचर के ताज़ा सर्वेक्षण के मुताबिक़ अधिकांश शिक्षक हर हफ़्ते 10 घंटे बिना भुगतान के अतिरिक्त कार्य करते हैं (40 घंटा हफ़्ता के इलावा) और औसतन सालाना 443 डालर कक्षा के बजट संसाधनों पर अपनी जेब से ख़र्च करते हैं। शिक्षकों के मज़बूत सामाजिक उत्तरदायिता भाव के बगै़र सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था बहुत पहले ही अपने अंतर्विरोधों का ग्रास बन चुकी होती।

पिछले कुछ दशकों में शिक्षकों की अधिसंख्या आर्थिक संकट तथा वर्गीय-नस्लीय समस्याओं द्वारा बच्चों पर डाले जाने वाले दुष्प्रभावों से निपटने हेतु चलने वाले प्रयासों में हिरावल की भूमिका में शामिल रही है। राष्ट्रीय मूल्यांकन की व्यवस्थाजो कि मुख्यत: शिक्षकों तथा शिक्षक संघों को निशाना बनाने हेतु तैयार की गर्इ हैचाहती है कि शिक्षा का निजीकरण कर दिया जाए तथा विदयार्थियों को नीरस कार्यशैली का मज़दूर-दास बना दिया जाए। इन सब चीज़ों ने शिक्षा को व्यवस्थागत संकट के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है। बहुत से शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गयाबहुत से खुद ही मरणासन्न सार्वजनिक स्कूलों को छोड़कर चले गए।

सार्वजनिक शिक्षा पर अवनतिशील समाजार्थिक परिस्थितियों के प्रभावों को मददेनज़र रखते हुएशैक्षणिक लक्ष्यों की प्रापित हेतु सुझार्इ गर्इ कोर्इ भी योजना जो विस्तृत सामाजिक समस्याओं और उनके प्रभावों को ध्यान में नहीं रखती हैएक भददा मज़ाक होगी। 1995 में 'टीचर्स कालेज रेकार्ड’ में जीन अनयन ने दशकों की अपनी गवेषणा का निष्कर्ष सार रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा था:

यह तो स्पष्ट हो चुका है कि पिछले कर्इ दशकों से चलता आ रहा स्कूली सुधार अमेरिका के अंदरूनी शहरों में कुछ खास हासिल नहीं कर पाया है। असफल स्कूली सुधार के हालिया अन्वेषण (तथा बदलाव के नुस्खे़) शैक्षणिकप्रबंधकीय या वित्तीय पहलुओं को अलग-थलग करते हैं तथा ये अंदरूनी शहरी स्कूलों को ग़रीबी तथा नस्ल आदि सामाजिक सन्दर्भों से भी काट देते हैं... अंदरूनी शहरों में शिक्षा व्यवस्था की असफलता के संरचनागत कारक राजनीतिकआर्थिक तथा सांस्कृतिक पहलू वाले हैं। इन समस्याओं को हल करने के बाद ही अर्थपूर्ण स्कूल संशोधन योजनाएं लागू की जा सकती हैं। समाज की ग़लतियों का ख़ामियाजा स्कूलों से नहीं भरवाया जाना चाहिए।

पिछले कुछ दशकों मेंसामाजिक पतन तथा इसके साथ ही स्कूलों पर बढ़ते हमलों का जवाब शिक्षकों ने विदयार्थियों का और बड़ा मददगार बनकर दिया है। साथ ही वे राजनीतिक गतिविधियों से भी बचते रहे हैं। लेकिन अब परिदृश्य बदल रहा है। आखि़रकार अमेरिका में शिक्षकोंअभिवावकोंविदयार्थियों तथा सामुदायिक सदस्यों का राजनीतिक प्रतिरोध उभार रहा है- हालांकि अभी से यह नहीं तय किया जा सकता कि यह इंगित क्या करता है।
2010 में एक हार्इस्कूल अध्यापिका तथा काकस आफ़ रैंक एण्ड फाइल एज्यूकेशन (कोर) की नेता कैरोन लुर्इस ने इससे पहले लगातार दो बार यह चुनाव जीत चुके अपने रूढि़वादी प्रतियोगी को हराकर शिकागो शिक्षक संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव जीता। यह शिकागो (जो कि डंकन का गृहनगर है) के शिक्षकों की अपनी नौकरीकार्यदशाओं तथा बच्चों के भविष्य के लिए लड़ने की अभिलाषा से ही संभव हुआ। यह संगठन (कोर) शिकागों में डंकन की स्कूलबंदी तथा स्कूलों को राजपत्रित करने वाली ''कायापलटकारी परंपरा के विरूद्ध एक तृणमूल प्रतिरोध के रूप में उभरा।

अप्रैल 2011 में डेट्रायट में विदयार्थियों ने पुरस्कृत तथा सम्मानित कैथरीन फग्यर्ुसन अकादमी की तालाबंदी रुकवाने हेतु विरोध प्रदर्शन किया। यह अकादमी गर्भवती माताओं और कुमारियों के लिया बना एक राजकीय स्कूल है तथा उस जिले में 100 फ़ीसद कालेज दाखि़ले का रेकार्ड रखता है जहाँ एक-तिहार्इ विदयार्थी स्नातक कर ही नहीं पाते। जब शांतिपूर्वक धरने पर बैठे हुए विदयार्थियों तथा उनके समर्थकों को गिरफ़्तार कर लिया गया तो इसे पूरे राष्ट्र की तवज्जह मिली। डेट्रायट पब्लिक स्कूल के आपातकालीन मैनेज़र राबर्ट बाब के आदेश से बड़ी संख्या में स्कूल बंद किए जा रहे हैं। बाब ब्रोड सुपरिन्टेन्डेन्टस अकादमी से 2005 में स्नातक हुआ था। उसे ब्रोड और केलोग्ग फाउण्डेशन से 1.45 लाख डालर का वेतन मिलता है। यह हैरत की बात नहीं है कि बाब की प्रबंधन रणनीति को कुछेक लोग वित्तीय मार्शल ला भी कहते हैं। अप्रैल 2011 में डेट्रायट के सभी 5,466 शिक्षकों को निलंबन के नोटिस थमा दिए गए।
2011 में विस्कानिसन के गवर्नर स्काट वाकर द्वारा उस राज्य में सार्वजनिक क्षेत्र से यूनियनों का खात्मा करने की कोशिश ने वर्ग संघर्ष को और अधिक गहन कर दिया। यह श्रमिक-समुदाय और पूंजी के बीच संघर्ष को एक नया आयाम दे सकता है। वाकर की कार्यपद्धति के विरुद्ध एक आम विरोध के रूप में मर्इ 2011 में बाब पीटरसन को 8,000 सदस्यी मिलवाउकी शिक्षक शिक्षा संघ का अध्यक्ष चुना गया। बाब पांचवीं श्रेणी के अध्यापक हैं और 'रिथिंकिंग स्कूल्स’ के संस्थापक संपादक हैं।

पूरे मर्इ 2011 के दौरान राजकीय स्कूलों के सफ़ाए की प्रक्रिया के विरोध में चले राष्ट्रव्यापी गतिरोधों में अध्यापकोंविधार्थियों तथा अभिभावकों ने शिरकत की। 9 मर्इ 2011 को हज़ारों अध्यापकोंविधार्थियों तथा उनके समर्थकों ने सार्वजनिक शिक्षा के बचाव हेतु हफ़्ते भर चलने वाले 'आपद-काल की शुरूआत की। 9 मर्इ को कैलिफार्निया की राजधानी सैक्रामेन्टों में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में शामिल 65 शिक्षकोंविधार्थियों तथा उनके समर्थकों को गिरफ़्तार कर लिया गया। 12 मर्इ को कैलिफार्निया शिक्षक संघ के अèयक्ष समेत 27 और लोगों को गिरफ़्तार किया गया। ये विरोध प्रदर्शन विदयार्थियों और शिक्षकों (जो कि खुद को कर्मचारी समझते हैं) के बीच एक गठजोड़ की ओर इशारा करते हैं जो कि सत्ता के लिए ख़तरे की घण्टी है।

कैलिफार्निया के गवर्नर जैरी बाऊन ने स्कूलों पर बढ़ते हमलों के विरोध में हुए इन प्रदर्शनों का संज्ञान लेते हुए मर्इ 2011 के बजटीय खाके में एक दूसरी ही राह पकड़ी तथा इंगित किया कि वह बेलगाम राजकीय परीक्षण पद्धति पर नियंत्रण लगाएगा ब्राउन ने कहा: ''शिक्षकों को टैस्ट हेतु पढ़ाने पर ज्यादा ध्यान लगाना पड़ता हैइस तरह से उनकी रचनाशीलता तथा विदयार्थियों के साथ उनका मेलजोल दब जाते हैं। राजकीय और संघीय प्रशासक क्लासरूम से बाहर रहकर ही शिक्षण पर अपने प्रभुत्व का केन्द्रीयकरण करते रहते हैं। ब्राउन का कहना है कि वह ''स्कूलों में राजकीय परीक्षण को दिए जाने वाले समय को घटाना चाहता है तथा ''नियंत्रण स्कूल प्रबंधकोंशिक्षकों तथा अभिभावकों को लौटाना चाहता है। ब्राउन स्टेट लांगिटयूडिनल डाटा फार एजयूकेशन (मौजूदा डाटाबेस को समाहित करते हुए विदयार्थी मूल्यांकन डाटा को लंबे समय तक एकत्रित करने की योजना) की फंडिंग स्थगित करने में प्रयासरत हैसाथ ही इसी तजऱ् पर बनने वाले शिक्षक डाटाबेस सिस्टम को भी ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी में है। उसने कैलिफार्निया के अटार्नी जनरल के तौर पर पहले भी कहा हे कि ''नतीज़ों की निम्नतर गुणवत्ता से ग्रसित स्कूलों की समस्याएं समुदायों की सामाजिक और आर्थिक परिसिथतियों में अवसिथत हैं।

सार्वजनिक स्कूलों के निजीकरण की प्रक्रिया की मुख़ालफ़त करने वाले प्रतिरोध आंदोलनों का रणनीतिक लक्ष्य सिर्फ़ मौजूदा स्कूल व्यवस्था को बचाना भर नहीं होना चाहिए। बल्कि इस आपातकाल का उपयोग शिक्षा के प्रति एक क्रांतिकारी नज़रिये की बुनियाद डालने के लिए किया जाना चाहिए- ऐसी शिक्षा व्यवस्था जो सामुदायिक स्कूलों पर आधारित हो। यह जेम्स और ग्रेस ली बोगस के 'डेट्रायट केंद्र’  के ''वैकलिपक शिक्षा संभव है” में प्रतिपादित लक्ष्यों के अनुसार किया जा सकता है। ग्रेस ली बोग्स के अनुसार हमें अपने बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ सामुदायिक प्रतिभागिता की प्रक्रिया में लगाना चाहिएउसी तरह जिस तरह नागरिक अधिकार आंदोलन ने उन्हें अलगाववाद-विरोध में लगाया था। रैडिकल शिक्षा सिद्धांतकार बिल आयर्स में एनसीएलबी तथा रेस टू द टाप की मुख़ालफ़त में ''हर इंसान अतिशय महत्वपूर्ण है के सिद्धांत के आधार पर ''स्वतंत्रवादी शिक्षा तथा स्वतंत्र स्कूलों के पुनर्निर्माण के माडल का आहवान किया है। रैडिकल शिक्षाशास्त्री आत्म-समावेशी शिक्षण की प्रक्रिया का महत्व इंगित करते रहे हैं। मार्क्स और पाआलो फ्रेयरे की लाइन में वे स्वतंत्रतामूल अध्यापन का बुनियादी सवाल इस प्रश्न को मानते हैं कि ''शिक्षक को कौन शिक्षित करता हैइस पद्धति में विदयार्थियों को केन्द्रीय पात्र के तौर पर देखा जाता है।

हमें इसे एक रैडिकल संघर्ष के तौर पर लेना चाहिए। इसी तरह के कारपोरेट स्कूली सुधार की पूरी दुनिया में लागू किए जा रहे हैंब्राज़ील भी उन्हीं में से एक उदाहरण है।

बहुत कुछ दांव पर लगा है। मर्इ 1949 में मन्थली रिव्यू के पहले अंक में प्रकाशित अपने लेख 'समाजवाद क्यों’ में अल्बर्ट आइंस्टीन ने लिखा था:

“...व्यकित को पंगु बना डालना मेरे तईं पूंजीवाद का सबसे बदनुमा पहलू है। हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था इसी बुरार्इ से निकली है। विदयार्थियों में अतिशय प्रतिस्पर्धा की भावना भर दी जाती हैउन्हें कैरियर के तौर पर लालसा मूलक सफलता की पूजा करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। मेरे ख़्याल मेंएक समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक लक्ष्यों द्वारा अनुप्राणित शिक्षा व्यवस्था की स्थापना के द्वारा ही इन बुराइयों को खत्म किया जा सकता है। ऐसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों का नियोजन समाज द्वारा किया जाता है तथा योजनाबद्ध तरीके से उनका इस्तेमाल किया जाता है। एक नियोजित अर्थव्यवस्था उत्पादन को समाज की जरूरतों के हिसाब से व्यवसिथत करेगीकार्य का सभी सक्षम लोगों के बीच बंटवारा करेगी तथा सभी मर्दोंऔरतों तथा बच्चों की जीविका की गारण्टी दे सकेगी। तब शिक्षा- हमारे वर्तमान समाज में सत्ता और सफलता के गुणगान के विपरीत-व्यकित की सहज योग्यताओं के विकसन के साथ-साथ उसमें अपने साथी मानवों के प्रति उत्तरदायिता की भावना का भी विकास करेगी।...”
आइंस्टीन के लिए शिक्षा तथा समाजवाद अंतरंग तथा द्वंदात्मक रूप से जुड़े हुए थे। सामाजिक परिवर्तन तथा नियोजन संबंधी यह नज़रिया मानता है कि शिक्षा हमारी जीवन-पद्धति का हिस्सा होनी चाहिएउसे सिर्फ शिक्षण तक महदूद न कर दिया जाना चाहिए।

मेरा मानना है कि हमें एक लंबे संघर्ष के लिए खुद को तैयार करना चाहिए जो अन्य चीज़ों के साथ-साथ समुदाय-सम्बद्ध शिक्षा की स्थापना करे तथा जो लोगों की असल तथा बुनियादी जरूरतों से पैदा हो। इस तरह की 'समुदाय-केन्द्रित तथा व्यकित आधरित शिक्षा- जिसकी शुरूआत तो स्कूल से हो किन्तु उसका विस्तार बृहत्तर समाज तक किया गया हो- शिक्षा के प्रति गहनतम सम्मान-भाव के द्वारा ही पार्इ जा सकती है। ऐसा सम्मान-भाव जो कि एक जीवन-पद्धति हो और स्थार्इ समता पर आधारित समाज के निर्माण की अपरित्याज्य पूर्व शर्त हो।

समाप्त.

अंग्रेजी में इस आलेख को मंथली रिव्यू की वेबसाईट में पढ़ा जा सकता है.

Friday, 25 October 2013

पूंजी का संरचनात्मक संकट और शिक्षा : यूएस परिघटना : तीसरी क़िस्त


http://www.laika-verlag.de/sites/default/files/JohnBellamyFoster.png
जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर
 - जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर
अनुवादः रोहित, मोहन  और सुनील

जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर मंथली रिव्यू के संपादक हैं। वे, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑरेगोन में समाजशास्त्र के प्रवक्ता और चर्चित पुस्तक ‘द ग्रेट फाइनेंसियल क्राइसिस’(फ्रैड मैग्डोफ़ के साथ) के लेखक हैं। उक्त आलेख 11अप्रैल 2011 को फ्रैडरल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सेंटा कैटेरिना, फ्लोरिआनोपोलिस, ब्राजील में शिक्षा एवं मार्क्सवाद पर पांचवे ब्राजीलियन सम्मेलन (ईबीईएम) में उनके द्वारा दिए गए आधार वक्तव्य का विस्तार है।  इस लम्बे आलेख को हम ४ किस्तों में यहाँ दे रहे हैं. यह दूसरी क़िस्त है...
(पहली क़िस्त के लिए यहाँ और दूसरी क़िस्त के लिए यहाँ क्लिक करें)

Capitalism never solves it's crisis
दूसरी क़िस्त से आगे...
पिछले कुछ सालों में गेटस फाउण्डेशन- जो कि इन परोपकारी फाउण्डेशनों में अब तक सबसे बड़ा निकाय है- ने ब्रोड फाउण्डेशन के समरूप एजेन्डा अपनाना शुरू कर दिया है, ये दोनों अक्सर मिलकर कार्य करते हैं। बिल गेटस ने तो घोषित भी कर दिया है कि प्रमाण-पत्र, अनुभव, ऊँची डिग्री अथवा किसी विषय के विषद ज्ञान तथा शैक्षणिक योग्यता में कोर्इ सीधा-सीधा संबंध नहीं है। गेटस फाउण्डेशन ने ऐसे समूहों के समर्थन में अरबों डालर खर्च किए हैं जिनका कार्य है सार्वजनिक नीतियों पर दबाव बनाना, ताकि सार्वजनिक शिक्षा की पुनर्संरचना हो सके, चार्टर स्कूलों को बढ़ावा मिले, निजीकरण की खुली वकालत हो तथा यूनियनों को खत्म किया जाए, इसने टीचर प्लस को अरबों डालर दिए हैं यह शिक्षा के पुनर्संरचनन का हिमायती है तथा कहता है कि अध्यापकों की सेवावधि मूल्यांकन (अंक प्रापित) के आधार पर तय की जानी चाहिए न कि वरिष्ठता के आधार पर, जैसा कि यूनियनें इसरार करती है। गेटस फाउण्डेशन टीच फार अमेरिका, नामक एक कार्यक्रम की भी मदद करती है जिसके अंतर्गत प्रत्याशियों को कालेज से सीधे भर्ती किया जाता है, उन्हें 5 हफ़्ते के लिए प्रशिक्षण शिविर में रखा जाता है और उन्हें कम आय वाले स्कूलों में भेज दिया जाता है- अक्सर 2 या 3 साल के लिए- उन्हें अध्यापन-प्रशिक्षण के लाभ से या व्यवसायिक प्रमाण पत्र दिलवाने वाले प्रशिक्षण से महरूम करते हुए।

गेट्स फाउण्डेशन ने शिकागो 'रिनेसां 2010 को 90 मिलियन डालर की माली इमदाद दी थी। तब इस 'कायापलटकारी रणनीति का अध्यक्ष शिकागो सार्वजनिक स्कूल का सीर्इओ आर्ने डंकन था। डंकन का शिकागो झटका सिद्धांत पहलकदमी को गेटस फाउण्डेशन द्वारा वित्तपोषित 'कायापलटकारी चुनौती के अनुरूप व्यवसिथत किया गया था। डंकन अब अमेरीकी सेक्रेटरी आफ एज्युकेशन है तथा 'कायापलटकारी चुनौती को स्कूल पुनसंरचना की' बाइबिल बताता है। उसने इसे संघीय नीति के साथ समाकलित कर के इसे ओबामा की रेस टू द टाप नीति की बुनियाद बना दिया है। अपनी 2009-2010 की वार्षिक रिपोर्ट में ब्रोड फाउण्डेशन ने घोषित किया कि ''ओबामा के राष्ट्रपति पद पर चुनाव तथा उनके द्वारा शिकागो सार्वजनिक स्कूल्स के भूतपूर्व सीर्इओ आर्ने डंकन को अमेरिकी सेक्रेटरी आफ एज्युकेशन बनाए जाने से शैक्षणिक संशोधन संबंधी हमारी आशाएं एक नर्इ ऊँचार्इ पर पहुँच गर्इ है। आखिरकार नक्षत्र हमारे पक्ष में आ गए हैं। डंकन तथा ओबामा के भूतपूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार लारेंस सम्मटर्स फरवरी 2009 तक ब्रोड फाउण्डेशन के शैक्षणिक निकाय के निदेशक मण्डल में शामिल थे।

पद संभालते ही डंकन ने सेक्रेटरी आफ एज्युकेशन दफ़्तर में परोपकारितापूर्ण कार्यकलापों हेतु निदेशक का एक पद स्थापित किया तथा घोषित किया कि शिक्षा विभाग, अक्षरश:, 'व्यवसाय’ हेतु खुला है। उसने विभाग में वरिष्ठ पदों पर गेटस तथा ब्रोड कर्मचारियों को भर दिया।  जोआन वेइस्स अब डंकन का विभागीय प्रमुख हैं। वह ओबामा के रेस टू द टाप कम्पीटिशन का निदेशक था। साथ ही वह न्यूस्कल्स वेंचर फण्ड का भी निदेशक रह चुका है- शिक्षा पुनर्संरचना संबंधी इस संगठन को ब्रोड तथा गेटस फाउण्डेशन से भारी मात्रा में धन मिलता है।

रेस टू द टाप के अंतर्गत ओबामा प्रशासन ने चुनिंदा राज्यों को अतिरिक्त वित्तीय राशि उपलब्ध करवार्इ (11 राज्य तथा कोलमिबया जिला वियजी घोषित किए गए)। यहां सिर्फ उन्हीं राज्यों को चुना गया जिन्होंने मूल्यांकन, चार्टर, निजीकरण तथा अध्यापकों के सेवाकाल संबंधी प्रावधानों को निरस्त करने संबंधी पुनर्संरचनन योजना को स्वीकार कर लिया था। चयन प्रक्रिया के दौरान गेटस फाउण्डेशन ने हर राज्य में प्राथमिक सुधार योजना का मूल्यांकन किया तथा 15 राज्यों को चुना, उनमें से प्रत्येक को इसने 250 मिलियन डालर दिए ताकि ये रेस टू द टाप के लिए प्रस्ताव लिखवाने हेतु सलाहकार नियुक्त कर सकें। नतीज़तन शिक्षा प्रदाताओं ने शिकायत की कि गेटस संघीय योजना हेतु स्वयं विजेताओं और हारने वालों का चुनाव कर रहा है। तब गेटस फाउण्डेशन ने अपनी रणनीति बदली तथा कहा कि यह हर उस राज्य को इमदाद मुहैया करवाएगी जो इसके द्वारा निर्धारित आठों मानदण्डों पर खरा उतरता हो। इनमें से एक मानदण्ड था अध्यापकों के सेवाकाल को सीमित करना।

गेटस फाउण्डेशन की 'कायापलटकारी चुनौती योजना, जो कि ओबामा प्रशासन की अद्र्ध-प्रशासनिक नीति है, का केंद्रीय फलसफा है कि 'जनांकिकी तक़दीर का फ़ैसला नहीं करती या ' विद्यालाई गुणवत्ता जिपकोड को मात दे सकती है। 'कोर्इ बहाना नहीं’ के फलसफे वाली यह दलील कारपोरेटीय शिक्षा आंदोलन द्वारा बार-बार दुहरार्इ जाती है। 1966 में आर्इ कालमन रिपोर्ट ने पाया कि जब सामाजिक कारकों पर नियंत्रण पा लिया जाता है तो 'स्कूलों के बीच भिन्नता शिक्षार्थियों की उपलबिधयों पर बहुत कम असर डालती है। इस अनुसंधान को चलते लगभग चार दशक हो चुके हैं और रूढि़वादी शिक्षा सुधारक इसी तरह के तर्कों को हवा में उछालते हुए 'औप्लाब्धिक असफलता से निवारण का पूरा उत्तरदायित्व स्कूलों पर डाल देते हैं।

दसअसल, यूनिवर्सिटी आफ नार्थ कैरोलाइना से संबद्ध रूढि़वादी सांखियकीविद विलियम सैन्डर्स, जो कि विद्यालयों में 'वैल्यू आडिट मूल्यांकन का पक्षपोषक हैं, ने दो टूक कहा कि ''जितने भी आंकड़ों का हम अध्ययन करते हैं- कक्षा का आकार नस्ल, स्थान, ग़रीबी- ये सब आध्यापकीय सक्षमता के सामने फीके पड़ जाते हैं। अगर मुददा सिर्फ विद्यार्थियों की औसत उपलबिधयों को सुधारने भर का होता, जो कि नि:संदेह अध्यापकों पर निर्भर है, तो ऐसे खयाल की महत्ता भी होती। इसके विपरीत मुददा है भिन्नतामूलक वर्ग-जातीय पृष्ठभूमियों (वे विधार्थी भी शामिल है जो अतिनिर्धन और आवासविहीन हैं) से आने वाले विद्यार्थियों के मध्य औसत उपलबिध संबंधी विभेदकों को कम करना। स्कूलों और अध्यापकों को सिर्फ अपने बूते पर यह कार्य करने को कहना असंभव की मांग करने के समान है।

असल में औपलबिधक भिन्नता के संदर्भ में रूढि़वादियों के 'बहानेबाज़ी नहीं’ वाले फलसफे को स्वीकारने का मतलब है एक स्पष्ट यथार्थ की तरफ़ से आंखें बंद कर लेना- वह यथार्थ है बाल-गरीबी। एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में शिक्षा के प्रोफेसर डेविड बर्लिनर का कहना है कि यह बाल-गरीबी ही वह ''600 पाउण्ड का गोरिल्ला है जो अमेरिकी शिक्षा पर बुरा असर डालता है। जैसा कि अर्थशास्त्री रिचर्ड रोथस्टीन ने 'वर्ग तथा विद्यालय’ में लिखा है :

यह निष्कर्ष कि औपलबिधक भिन्नता 'अवनतिशील विद्यालयों का कुसूर है... भ्रांत एवं ख़तरनाक है। यह इस तथ्य का नकार करती है कि हमारे समाज जैसे वर्गित समाज में वर्गीय सामाजिक लक्षण किस प्रकार स्कूलों में शिक्षण को प्रभावित कर सकते हैं... लगभग आधी सदी से अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों तथा शिक्षाप्रदाताओं के मध्य यह तथ्य बिल्कुल स्पष्ट तौर पर मान्य है कि सामाजिक तथा आर्थिक प्रतिकूलताओं तथा औपलबिधक असफलता में संबंध है। फिर भी ज्यादातर लोग इसके स्पष्ट निहितार्थ से बचते रहते हैं- कि निम्नवर्गीय बच्चों की औपलबिधक भिन्नता कम करने के लिए उनकी सामाजिक तथा आर्थिक दशा में सुधार करना अनिवार्य है, स्कूल सुधार मात्र से कुछ न होगा।

फिर भी रूढि़वादी शैक्षणिक मत यह जिद पाले हुए है कि विद्यार्थियों के जीवन को प्रभावित करने वाले इन वृहत्तर सामाजिक पहलुओं को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। हालांकि वे कभी-कभी स्वीकार तो करते हैं कि गैर-बराबरी, नस्लीय भेदभाव तथा ग़रीबी शैक्षणिक उपलबिधयों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, लेकिन ये कारक, उनका अगला तर्क होता है, उसके निर्धारक कारक नहीं हैं। इस मत के हिसाब से ऐसे स्कूलों की स्थापना संभव है जो जरूरतमंद विद्यार्थियों की उपरोक्त समस्याओं का व्यवसिथत रूप से खात्मा कर सकते हैं। इस तरह से विद्यार्थियों की उपलबिधयों संबंधी असल अवरोधकों हेतु स्कूल खुद ही उत्तरदायी हैं: जैसे उत्तरदायिता तथा मूल्यांकन की कमी तथा ख़राब शिक्षण। वर्गीय अक्षमता, बाल-गरीबी, नगरीय अवह्रसन, नस्लीयता आदि को 1960 के दशक के फलसफे 'अभाव की संस्कृति’ के अंतर्गत देखा जाना चाहिए: इसके अंतर्गत गरीब एवं अल्पसंख्यक विद्यार्थियों को 'श्रेष्ठ मध्यवर्गीय श्वेत मूल्यों/संस्कृति को सफलता की कंजी के तौर पर अपनाने की सलाह दी जाती थी। एक ठेठ पूंजीवादी मान्यता को अभिव्यक्त करते हुए गेटस फाउण्डेशन इसरार करती है कि स्कूल सब विद्यार्थियों का 'उद्धार कर सकते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें कैसी-कैसी असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
'कायापलटकारी चुनौती ने अपनी शुरुआत में ही स्वीकार किया कि एनसीबीएल के अंतर्गत स्कूलों की एक बहुत बड़ी संख्या को पुनर्संगठन की जरूरत है। 2009-10 में ही ऐसे स्कूलों की संख्या 5 हजार तक तय की गर्इ, यह देशभर में सिथत स्कूलों का 5 फीसदी है। बड़ी समस्या यह है कि देशभर में कुल विद्यार्थियों का 35 फीसदी तथा अल्पसंख्यक वर्ग के विद्यार्थियों का 2 तिहार्इ हिस्सा निर्धन स्कूलों में पढ़ता है, इनका प्रदर्शन निम्न स्तर का रहा है। रिपोर्ट का दावा है कि औपलबिधक भिन्नता को खत्म करने में गरीबी एक बड़ी बाधा तो है, लेकिन यह कोर्इ 'अलंघ्य अड़चन’ नहीं है। बहुत कम मुआमलों में ऐसा होता है, जैसा कि प्रकीर्ण-आरेखों की एक श्रृंखला से स्पष्ट हुआ, कि अधिक गरीबी वाले स्कूलों का प्रदर्शन भी ऊँचा रहा है (एचपीएचपी स्कूल)। 'कायापलटकारी चुनौती’ के नज़रिये से ये एचपीएचपी स्कूल बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये ग़रीबी और स्कूल की प्रगति के मध्य सादृश्यता को गलत साबित करते हैं। ऐसे बिरले एचपीएचपी स्कूलों को गेटस फाऊण्डेशन चार्टर स्कूल या 'चार्टर जैसे स्कूल मानती है: ये विद्यालयी परिषद, परंपरागत पाठयक्रम, प्रमाणित शिक्षकों तथा शिक्षक संघों से मुक्त हैं तथा उच्च उत्पादकता वैल्यू एडिड वाले व्यावसायिक सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करते हैं। जवाब साफ है : ''असफल स्कूलों का चार्टरीकरण किया जाए। लेकिन चूंकि स्कूलों अथवा जिलों ने इस विकल्प को तुरंत स्वीकार नहीं कर लिया था, अत: यह जरूरी हो गया था कि उन्हें ''चार्टर-संबंधी प्रविषिट-अंक या जिला-प्रशासित स्कूलों में'' चार्टर जैसे नियमों और नियंत्रण में से चुनाव करने के लिए तैयार किया जाए। इस तरह से यह प्रक्रिया 'सार्वजनिक स्कूलों को चार्टर स्कूलों में उच्च प्रदर्शन दिखाने वाली प्रक्रिया के अनुकूल ढालने का बहुप्रतीक्षित साधन बन जाएगी- और अंतत: उनका चार्टरीकरण कर देगी।

ओबामा प्रशासन ने गेटस फाउण्डेशन के इस फलसफे का पालन किया है, जिला प्रशासित सार्वजनिक स्कूलों के मुकाबिल चार्टर स्कूलों को बढ़ावा दिया जा रहा है और जिला स्कूलों को चार्टर जैसे अभिलक्षणों को अपनाने के लिए तैयार किया जा रहा है। इससे संघीय वित्तीय मदद में कमी का ख़तरा पैदा हो गया है जबकि चार्टर स्कूलों की संख्या बढ़ती जा रही है।

चार्टर स्कूल बस नाममात्र के ही सार्वजनिक स्कूल हैं : वे सार्वजनिक वित्तपोषण पर निर्भर है और उन्हें अपने पास आए हर विधार्थी को दाखिल करना होता है। ये स्कूल एक 'चार्टर या अनुबन्ध के अनुसार चलते हैं, जो सार्वजनिक प्राधिकरण तथा स्कूल के संचालकों के मध्य उत्तरदायित्व की व्यवस्था करता है। इस तरह से ये स्कूल असल में संविदा द्वारा हस्तांतरित स्कूल है, निर्वाचित स्कूल परिषद तथा जिला प्रशासन से स्वतंत्र रहकर कार्य करते हैं, साथ ही सार्वजनिक स्कूलों पर लागू होने वाले बहुत से नियम भी इन पर लागू नहीं होते। सिद्धांतत: चार्टर की स्थापना कोर्इ भी कर सकता है (अभिभावकगण, शिक्षकगण, सामुदायिक सदस्य, गैर-मुनाफाकांक्षी संगठन या मुनाफाकांक्षी संगठन), व्यवहार में लेकिन यह प्रक्रिया कारपोरेटिया प्रबंधन शैली तथा 'निवेशक-हितार्थ’ प्रभुत्व की दिशा में बढ़ी है। यह या तो बड़े निजी निगमों के वित्तीय समर्थन तथा निर्देशन द्वारा घटित हुआ है, जैसा कि बहुत से गैर-मुनाफा चार्टर संघों के मुआमले में हुआ, या फिर मुनाफाधारित र्इएमओज द्वारा स्कूलों का सीधे ही नियंत्रण संभाल लेने की वजह से हुआ।

2005 में हरीकेन कैटरीना की तबाही के बाद न्यू आर्लियेंस तुरता-फुर्ती सार्वजनिक स्कूलों का चार्टरीकरण कर दिया। जैसा कि 2010 में डैनी वेल ने 'आपदा पूंजीवाद : न्यू आर्लियेंस में शिक्षा के चार्टरीकरण तथा निजीकरण का पुनरीक्षण में स्पष्ट किया, '' 19 से भी कम महीनों के दौरान (कैटरीना के बाद) न्यू आर्लियेंस में ज्यादातर सार्वजनिक स्कूलों का चार्टरीकरण कर दिया गया था और न सिर्फ सभी सार्वजनिक स्कूलों के शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया था बल्कि सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार अथवा अन्य किसी भी अनुबंध को चिन्दी-चिन्दी कर दिया गया। 2008 तक चार्टरीकृत स्कूलों में आधे से ज्यादा विद्यार्थियों का नामांकन हुआ, जबकि कैटरीना हादसे से पहले यह अनुपात मात्र 2 फीसदी था। इनमें से ज्यादातर स्कूल मुनाफाकांक्षी र्इएमओज द्वारा चलाए जाते हैं।
'रिथिंकिंग स्कूल्स की प्रबंधक संपादक बारबरा माइनर लिखती हैं कि हालांकि चार्टर स्कूल आंदोलन की शुरूआत प्रगतिशील थी लेकिन आज यह उन लोगों को आकर्षित करता है जो कि 'मुक्त बाजार, निजीकरण एजेंडे से संबंधित हैं। पिछले दशक के दौरान इन निजीकरण-लाभार्थियों का चार्टर स्कूल आंदोलन में प्रभुत्व बढ़ गया है।‘ या, जैसा कि प्रतिष्ठित शिक्षा-अन्वेषक डेबोरा मेर्इयर अपनी पुस्तक 'इन स्कूल्स वी ट्रस्ट’ में लिखते हैं ''चार्टर स्कूलों ने शुरू में जो उम्मीदें दिखार्इ थीं वे जल्द ही ध्वस्त हो गई, ये स्कूल एक जैसे चेन-स्टोर्स में बदल गए, इनका नियंत्रण स्वतंत्रमना 'मम्मी-पापा’ के हाथ में न था, जैसा कि हमने सोचा था, बलिक दुनिया के सबसे ताकतवर खरबपति इनके मालिक थे।

हारलेम चार्टर स्कूल्स- जिन्होंने 2010 में आर्इ प्रति-सार्वजनिक स्कूल, प्रति-शिक्षक संघ डाक्यूमेंट्री फिल्म 'वेटिंग फार सुपरमैन’ का कीर्तिगान किया था- कुछेक छत्र-चार्टर स्कूल निगमों द्वारा चलाए जा रहे हैं। इन्हीं में से एक, द सक्सेस चार्टर नेटवर्क के 9 सदस्यीय बोर्ड में से 7 हेज फण्ड तथा निवेशक कंपनियों के निदेशक हैं, 8वां न्यू स्कूल्स वेंचर फंड (इसे गेटस तथा ब्रोड फाउण्डेशन से भारी मात्रा में धन मिलता है) का प्रबंधकीय सहयोगी है और 9वां इंस्टीटयूट आफ स्टूडेण्ट अचीवमेन्ट (कारपोरेट प्रायोजित गैर मुनाफा सगठन जिसे एटी & टी से काफी धन मिलता है, स्कूल पुनर्संगठन विशेषज्ञ) का प्रतिनिधि है। इस बोर्ड में न तो कोर्इ अभिभावक शामिल है, न कोर्इ शिक्षक तथा न कोर्इ सामुदायिक सदस्य ही। जैसा कि न्यूयार्क टाइम्स ने अभिव्यक्त किया-न्यूयार्क में हेज़ फण्डस ही चार्टर आंदोलन का 'उत्केन्द्र है। वित्तीय पूंजी सहज ही चार्टर स्कूलों की ओर आकर्षित है क्योंकि ये (1) सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित है लेकिन इनका प्रबंधन निजिगत है तथा बड़े निकायों द्वारा इनकी स्थापना रणनीतिक रूप से अहम स्थलों पर की गर्इ है, (2) ज्यादातर यूनिहनहीन (और यूनियनद्वेषी) हैं, (3) मूल्यांकन, डाटा संग्रहण तथा तकनीकीकरण पोषी हैं, (4) कारपोरेट किस्म के प्रबंधन हेतु तत्पर हैं, और (5) वित्तीय प्रबंधनाधारित बड़ी इमदाद के संग्रहकोष हैं।

गैर-मुनाफाकांक्षी चार्टर स्कूल भी निजी मुनाफा-उत्सर्जक रणनीतियों में भागीदार बन सकते हैं। जैसा कि माइनर ने लिखा है: ''लोग हार्लेम्स चिल्ड्रन जोन से भी पैसा बनाएंगे (यह हार्लेम के दो सबसे बड़े चार्टर संगठनों में से एक है जिनकी ‘वेटिंग फार सुपरमैन’ में प्रशंसा की गर्इ है) :
संगठन की 2008 की गैर-मुनाफा कर रिपोर्ट के अनुसार इसके पास 194 मिलियन डालर की परिसंपत्ति है। लगभग 15 मिलियन डालर बचत अथवा अल्पकालिक निवेश में लगाए गए थे और 128 मिलियन डालर एक हेज़ फण्ड में निवेशित थे। अब चूंकि ज्यादातर हेज़ फण्ड 2-20 के फीस सिद्धांत पर काम करते हैं (2 फीसद प्रबंधन फीस तथा हर प्रकार के मुनाफे का 20 फीसद), कुछेक सौभाग्यशाली हेज़ फण्ड हार्लेम चिल्ड्रन्स जोन से हर साल लाखों डालर कमाएंगे।

औपलबिधक भिन्नता खत्म करने में चार्टर स्कूलों की भूमिका के बारे में चाहे जितनी ही हवा बांधी गर्इ हो, अनुमानित शैक्षणिक नतीजे हासिल नहीं हुए। 2003 में विद्यार्थियों के संघीय एनएर्इपी मूल्यांकन के अनुसार देश भर में चार्टर स्कूल विद्यार्थियों ने सार्वजनिक स्कूल के विद्यार्थियों के बरअक्स कोर्इ महत्वपूर्ण बढ़ोतरी नहीं दिखार्इ (एक समान जातिगतनस्लीय पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों की तुलना), जबकि गरीब चौथे दर्जे के सार्वजनिक स्कूलों के विद्यार्थियों ने पाठन तथा हिसाब में चार्टर विद्यार्थियों को पीछे छोड़ दिया। सो, प्रामाणिक मूल्यांकन के इसके अपने संकुचित पैमानों के हिसाब से भी चार्टर स्कूल आंदोलन असफल ही रहा है।

फिलाडेलिफया ने 2009 में घोषित किया कि वहाँ के चार्टर स्कूल असफल हो चुके हैं। हालांकि निजिगत प्रबंधन वाले 28 में से 6 प्राथमिक तथा माध्यमिक स्कूलों ने सार्वजनिक स्कूलों से बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन 10 का प्रदर्शन सार्वजनिक स्कूलों के मुकाबले कमतर रहा। कम-अज-कम चार चार्टर वित्तीय कुप्रबंधन, हितों के टकराव तथा भार्इ-भतीजावाद के मुआमलों में संघीय आपराधिक जांच के दायरे में थे। पेनिसलवेनिया के कुछेक चार्टरों के प्रबंधकों ने अपने चार्टरों के उत्पाद बेचने हेतु कम्पनियां खड़ी कर ली थीं।

अगर चार्टर स्कूल अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो भी उनके खिलाफ यह अभियोग तो रहता ही है कि वे जरूरतमंद बच्चों का तयशुदा संख्या तक नामांकन नहीं करते। यूएस शिक्षा विभाग के राष्ट्रीय शिक्षा सांखियकी केन्द्र के भूतपूर्व एवं वर्तमान कमिश्नर जैक बक्ली तथा मार्क श्नाइडर ने 2002-03 में एक अध्ययन द्वारा यह पाया कि वाशिंगटन डीसी के 37 चार्टरों में से 24 चार्टरों ने विशिष्ट शिक्षा विद्यार्थियों का कोटा पूरा नहीं किया था, जबकि 28 में अंग्रेजी सीखने वाले विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व न्यून पाया गया।

चार्टर स्कूलों का बहुप्रशस्त कार्यक्रम रहा है नालेज इज पावर प्रोग्राम (केआर्इपीपी) गेटस, वाल्टन तथा ब्रोड फाउण्डेशन्स से लगातार धन मिलता रहता है। बाकी सभी सफल चार्टरों की तरह ही केआर्इपीपी भी लाटरी द्वारा विद्यार्थियों का नामांकन करता है- इससे प्रोत्साहित परिवारों के प्रोत्साहित तथा बेहतर विधार्थी ही नामांकन पाते हैं। केआर्इपीपी चार्टरों के तकाजे भी ज्यादा रहते हैं, विशिष्ट तक़ाज़ों की पूर्ति हेतु विद्यार्थियों को यहां सार्वजनिक स्कूलों की अपेक्षा 60 फीसद अधिक वक्त बिताना होता है। ये भारी तकाजे जरूरतमन्द तथा निम्न-प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों को चार्टर छोड़ने तथा फिर से सार्वजनिक स्कूल में जाने पर मजबूर कर देते हैं। 2008 में सैन फैंसिस्को में केआर्इपीपी स्कूलों के बारे में किए गए शोध ने दर्शाया कि पांचवें दर्जे में चार्टर में आए विद्यार्थियों में 60 फीसद आठवें दर्जे में पहुँचने तक स्कूल छोड़ चुके थे। रैविच कहते हैं : ''सार्वजनिक स्कूलों को, केआर्इपीपी छोड़कर आए विद्यार्थियों समेत, प्रत्येक प्रार्थी को स्वीकार करना होता है। वे उन बच्चों को स्कूल से निकाल नहीं सकते जो मेहनत नहीं करते, या जिनकी गैर-हाजिरियां ज्यादा हैं, या जो सम्मान प्रदर्शित नहीं करते या जिनके अभिभावक या तो अनुपसिथत रहते हैं अथवा लापरवाह हैं। उन्हें तो उन विद्यार्थियों को भी पढ़ार्इ में रमाने की कोशिश करनी होती है जो स्कूल में आना भी नहीं चाहते। यही सार्वजनिक स्कूलों की दुविधा है।

न्यू आलियेन्स में चार्टर स्कूलों ने अपंग विद्यार्थियों की अवमानना की। नतीज़तन, सदर्न पावर्टी ला सेन्टर ने 4500 विकलांग विद्यार्थियों की तरफ से चार्टरों के खिलाफ वैधानिक प्रबंधकीय शिकायत दजऱ् करा दी। शिकायत में न्यू आर्लियेन्स के चार्टरों पर क्रमबद्ध तरीके से विकलांग शिक्षा कानून के प्रावधानों की अवहेलना का अभियोग लगाया गया है।

चार्टर स्कूलों की एक और लाक्षणिकता यह है कि न सिर्फ उनके विद्यार्थियों की ही जरूरत से ज्यादा रगड़ार्इ होती है (जैसा कि केआर्इपीपी स्कूलों में होता है), बलिक शिक्षकों की भी अधिक रगड़ार्इ होती है। वे अक्सर काम की अधिकता तथा कम तनख्वाह के विरोध में हड़ताल कर अपनी असहमति दर्ज कराते हैं। 1997 से 2006 के बीच राष्ट्रव्यापी स्तर पर हुए चार्टर स्कूल संबंधी एक अèययन में पाया कि नए चार्टर स्कूल शिक्षकों की सालाना 40 फीसदी अधिक रगड़ार्इ होती है, चार्टर स्कूलों में लगभग 25 फीसदी शिक्षक सालाना स्कूल छोड़ जाते हैं, यह सार्वजनिक स्कूलों के मुकाबले लगभग दो गुना है। सामान्यत: चार्टर स्कूल शिक्षकों को सार्वजनिक स्कूल शिक्षकों से कम तनख्वाह मिलती है, परवर्ती श्रेणी को मिलने वाली दूसरी सुविधाएं अलग से रहीं। मिशिगन सार्वजनिक स्कूल संबंधी एक शोध ने पाया कि जहां चार्टर स्कूलों के शिक्षकों को सालाना 31, 185 डालर मिलते हैं वहीं सार्वजनिक स्कूलों के शिक्षकों को 47,315 डालर मिलते हैं।

चार्टर स्कूलों की एक बहुत बड़ी संख्य र्इएमओज के हाथों में है। ये मुनाफाकांक्षी कंपनियां चार्टर स्कूलों का प्रबंधन पूंजी संचयन के मकसद से करती है। बहुत सी फर्में मुनाफा बढ़ाने हेतु कर्इ तरह की रणनीतियां अपना चुकी हैं, शुरूआत हुर्इ श्रम की दर घटाने से। चार्टर स्कूल सामान्यत: यूनियनहीन हैं तथा कम वेतन देते हैं। वहां कार्यरत शिक्षकों के पास, जैसे कि टीच फार अमेरिका द्वारा मुहैया करवाए गए शिक्षक, अक्सर व्यवसायिक अèयापकीय प्रशिक्षण नहीं होता है। र्इएमओज के लिए राजकीय सेवानिवृत्ति व्यवस्था को मानना जरूरी नहीं है। हालांकि वे प्रतिस्पर्धात्मक आय दरों के अनुसार नियुकितयां करते हैं, फिर भी लाभ बहुत कम हैं तथा वरिष्ठता के साथ वेतन में वृद्धि की संभावना तो दूर की कौड़ी है। कक्षा का आकार अक्सर ही बड़ा होता है। र्इएमओज विद्यार्थियों को मिलने वाली सहायक सेवाओं पर भी कैंची चलाने की कोशिश करते हैं, जैसे: स्कूल लंच कार्यक्रम, यातायात तथा पाठयक्रमेतर गतिविधियां। वे अधिक सीमाबद्ध पाठयक्रम निर्धारित करते हैं जिसका अधिक ध्यान बुनियादी-योग्यताओं के परीक्षण पर रहता है। ये सभी प्रावधान निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने की प्रामाणिक विधियाँ मानी जाती हैं। बहुत-से ताजा तथा विश्वसनीय अèययनों ने सुझाया है कि र्इएमओज चालित चार्टर स्कूल नस्लीय पृथक्करण की ओर भी प्रवृत्त हैं।

...अगली क़िस्त में जारी

अंग्रेजी में इस आलेख को मंथली रिव्यू की वेबसाईट में पढ़ा जा सकता है.