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जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर |
- जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर
अनुवादः रोहित, मोहन और सुनील
जॉन बेलेमी फ़ॉस्टर मंथली
रिव्यू के संपादक हैं। वे, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑरेगोन में समाजशास्त्र के
प्रवक्ता और चर्चित पुस्तक ‘द ग्रेट फाइनेंसियल क्राइसिस’(फ्रैड मैग्डोफ़
के साथ) के लेखक हैं। उक्त आलेख 11अप्रैल 2011 को फ्रैडरल यूनिवर्सिटी ऑफ़
सेंटा कैटेरिना, फ्लोरिआनोपोलिस, ब्राजील में शिक्षा एवं मार्क्सवाद पर
पांचवे ब्राजीलियन सम्मेलन (ईबीईएम) में उनके द्वारा दिए गए आधार वक्तव्य
का विस्तार है। इस लम्बे आलेख को हम ४ किस्तों में यहाँ दे रहे हैं. यह
दूसरी क़िस्त है...
(पहली क़िस्त के लिए यहाँ और दूसरी क़िस्त के लिए यहाँ क्लिक करें)
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Capitalism never solves it's crisis |
दूसरी क़िस्त से आगे...
2005 में हरीकेन कैटरीना की तबाही के बाद न्यू आर्लियेंस तुरता-फुर्ती सार्वजनिक स्कूलों का चार्टरीकरण कर दिया। जैसा कि 2010 में डैनी वेल ने 'आपदा पूंजीवाद : न्यू आर्लियेंस में शिक्षा के चार्टरीकरण तथा निजीकरण का पुनरीक्षण में स्पष्ट किया, '' 19 से भी कम महीनों के दौरान (कैटरीना के बाद) न्यू आर्लियेंस में ज्यादातर सार्वजनिक स्कूलों का चार्टरीकरण कर दिया गया था और न सिर्फ सभी सार्वजनिक स्कूलों के शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया था बल्कि सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार अथवा अन्य किसी भी अनुबंध को चिन्दी-चिन्दी कर दिया गया। 2008 तक चार्टरीकृत स्कूलों में आधे से ज्यादा विद्यार्थियों का नामांकन हुआ, जबकि कैटरीना हादसे से पहले यह अनुपात मात्र 2 फीसदी था। इनमें से ज्यादातर स्कूल मुनाफाकांक्षी र्इएमओज द्वारा चलाए जाते हैं।
पिछले कुछ सालों में गेटस फाउण्डेशन-
जो कि इन परोपकारी फाउण्डेशनों में अब तक सबसे बड़ा निकाय है- ने ब्रोड फाउण्डेशन
के समरूप एजेन्डा अपनाना शुरू कर दिया है, ये दोनों अक्सर मिलकर कार्य करते हैं।
बिल गेटस ने तो घोषित भी कर दिया है कि प्रमाण-पत्र, अनुभव, ऊँची
डिग्री अथवा किसी विषय के विषद ज्ञान तथा शैक्षणिक योग्यता में कोर्इ सीधा-सीधा
संबंध नहीं है। गेटस फाउण्डेशन ने ऐसे समूहों के समर्थन में अरबों डालर खर्च किए
हैं जिनका कार्य है सार्वजनिक नीतियों पर दबाव बनाना, ताकि सार्वजनिक
शिक्षा की पुनर्संरचना हो सके, चार्टर स्कूलों को बढ़ावा मिले,
निजीकरण
की खुली वकालत हो तथा यूनियनों को खत्म किया जाए, इसने टीचर प्लस
को अरबों डालर दिए हैं यह शिक्षा के पुनर्संरचनन का हिमायती है तथा कहता है कि अध्यापकों
की सेवावधि मूल्यांकन (अंक प्रापित) के आधार पर तय की जानी चाहिए न कि वरिष्ठता के
आधार पर, जैसा कि यूनियनें इसरार करती है। गेटस फाउण्डेशन टीच फार अमेरिका,
नामक
एक कार्यक्रम की भी मदद करती है जिसके अंतर्गत प्रत्याशियों को कालेज से सीधे
भर्ती किया जाता है, उन्हें 5 हफ़्ते के लिए
प्रशिक्षण शिविर में रखा जाता है और उन्हें कम आय वाले स्कूलों में भेज दिया जाता
है- अक्सर 2 या 3 साल के लिए- उन्हें अध्यापन-प्रशिक्षण
के लाभ से या व्यवसायिक प्रमाण पत्र दिलवाने वाले प्रशिक्षण से महरूम करते हुए।
गेट्स फाउण्डेशन ने शिकागो 'रिनेसां
2010 को 90 मिलियन डालर की माली इमदाद दी थी। तब इस 'कायापलटकारी
रणनीति का अध्यक्ष शिकागो सार्वजनिक स्कूल का सीर्इओ आर्ने डंकन था। डंकन का
शिकागो झटका सिद्धांत पहलकदमी को गेटस फाउण्डेशन द्वारा वित्तपोषित 'कायापलटकारी
चुनौती के अनुरूप व्यवसिथत किया गया था। डंकन अब अमेरीकी सेक्रेटरी आफ एज्युकेशन
है तथा 'कायापलटकारी चुनौती को स्कूल पुनसंरचना की' बाइबिल बताता है। उसने इसे संघीय नीति
के साथ समाकलित कर के इसे ओबामा की रेस टू द टाप नीति की बुनियाद बना दिया है।
अपनी 2009-2010 की
वार्षिक रिपोर्ट में ब्रोड फाउण्डेशन ने घोषित किया कि ''ओबामा के
राष्ट्रपति पद पर चुनाव तथा उनके द्वारा शिकागो सार्वजनिक स्कूल्स के भूतपूर्व
सीर्इओ आर्ने डंकन को अमेरिकी सेक्रेटरी आफ एज्युकेशन बनाए जाने से शैक्षणिक
संशोधन संबंधी हमारी आशाएं एक नर्इ ऊँचार्इ पर पहुँच गर्इ है। आखिरकार नक्षत्र
हमारे पक्ष में आ गए हैं। डंकन तथा ओबामा के भूतपूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार लारेंस
सम्मटर्स फरवरी 2009 तक ब्रोड फाउण्डेशन के शैक्षणिक निकाय के
निदेशक मण्डल में शामिल थे।
पद संभालते ही डंकन ने सेक्रेटरी आफ
एज्युकेशन दफ़्तर में परोपकारितापूर्ण कार्यकलापों हेतु निदेशक का एक पद स्थापित
किया तथा घोषित किया कि शिक्षा विभाग, अक्षरश:, 'व्यवसाय’ हेतु
खुला है। उसने विभाग में वरिष्ठ पदों पर गेटस तथा ब्रोड कर्मचारियों को भर दिया। जोआन वेइस्स अब डंकन का विभागीय प्रमुख हैं। वह
ओबामा के रेस टू द टाप कम्पीटिशन का निदेशक था। साथ ही वह न्यूस्कल्स वेंचर फण्ड
का भी निदेशक रह चुका है- शिक्षा पुनर्संरचना संबंधी इस संगठन को ब्रोड तथा गेटस
फाउण्डेशन से भारी मात्रा में धन मिलता है।
रेस टू द टाप के अंतर्गत ओबामा प्रशासन
ने चुनिंदा राज्यों को अतिरिक्त वित्तीय राशि उपलब्ध करवार्इ (11
राज्य तथा कोलमिबया जिला वियजी घोषित किए गए)। यहां सिर्फ उन्हीं राज्यों को चुना
गया जिन्होंने मूल्यांकन, चार्टर, निजीकरण तथा अध्यापकों
के सेवाकाल संबंधी प्रावधानों को निरस्त करने संबंधी पुनर्संरचनन योजना को स्वीकार
कर लिया था। चयन प्रक्रिया के दौरान गेटस फाउण्डेशन ने हर राज्य में प्राथमिक
सुधार योजना का मूल्यांकन किया तथा 15 राज्यों को चुना, उनमें
से प्रत्येक को इसने 250 मिलियन डालर दिए ताकि ये रेस टू द टाप के लिए
प्रस्ताव लिखवाने हेतु सलाहकार नियुक्त कर सकें। नतीज़तन शिक्षा प्रदाताओं ने
शिकायत की कि गेटस संघीय योजना हेतु स्वयं विजेताओं और हारने वालों का चुनाव कर
रहा है। तब गेटस फाउण्डेशन ने अपनी रणनीति बदली तथा कहा कि यह हर उस राज्य को
इमदाद मुहैया करवाएगी जो इसके द्वारा निर्धारित आठों मानदण्डों पर खरा उतरता हो।
इनमें से एक मानदण्ड था अध्यापकों के सेवाकाल को सीमित करना।
गेटस फाउण्डेशन की 'कायापलटकारी
चुनौती योजना, जो कि ओबामा प्रशासन की अद्र्ध-प्रशासनिक नीति
है, का केंद्रीय फलसफा है कि 'जनांकिकी तक़दीर का फ़ैसला नहीं करती
या ' विद्यालाई
गुणवत्ता जिपकोड को मात दे सकती है। 'कोर्इ बहाना नहीं’ के फलसफे वाली यह
दलील कारपोरेटीय शिक्षा आंदोलन द्वारा बार-बार दुहरार्इ जाती है। 1966
में आर्इ कालमन रिपोर्ट ने पाया कि जब सामाजिक कारकों पर नियंत्रण पा लिया जाता है
तो 'स्कूलों के बीच भिन्नता शिक्षार्थियों की उपलबिधयों पर बहुत कम असर
डालती है। इस अनुसंधान को चलते लगभग चार दशक हो चुके हैं और रूढि़वादी शिक्षा
सुधारक इसी तरह के तर्कों को हवा में
उछालते हुए 'औप्लाब्धिक असफलता से निवारण का पूरा
उत्तरदायित्व स्कूलों पर डाल देते हैं।
दसअसल, यूनिवर्सिटी आफ
नार्थ कैरोलाइना से संबद्ध रूढि़वादी सांखियकीविद विलियम सैन्डर्स, जो
कि विद्यालयों में 'वैल्यू आडिट मूल्यांकन का पक्षपोषक हैं,
ने
दो टूक कहा कि ''जितने भी आंकड़ों का हम अध्ययन करते हैं- कक्षा
का आकार नस्ल, स्थान, ग़रीबी- ये सब आध्यापकीय सक्षमता के
सामने फीके पड़ जाते हैं। अगर मुददा सिर्फ विद्यार्थियों की औसत उपलबिधयों को सुधारने
भर का होता, जो कि नि:संदेह अध्यापकों पर निर्भर है,
तो
ऐसे खयाल की महत्ता भी होती। इसके विपरीत मुददा है भिन्नतामूलक वर्ग-जातीय पृष्ठभूमियों
(वे विधार्थी भी शामिल है जो अतिनिर्धन और आवासविहीन हैं) से आने वाले विद्यार्थियों
के मध्य औसत उपलबिध संबंधी विभेदकों को कम करना। स्कूलों और अध्यापकों को सिर्फ
अपने बूते पर यह कार्य करने को कहना असंभव की मांग करने के समान है।
असल में औपलबिधक भिन्नता के संदर्भ में
रूढि़वादियों के 'बहानेबाज़ी नहीं’ वाले फलसफे को स्वीकारने का
मतलब है एक स्पष्ट यथार्थ की तरफ़ से आंखें बंद कर लेना- वह यथार्थ है बाल-गरीबी।
एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में शिक्षा के प्रोफेसर डेविड बर्लिनर का कहना है कि यह
बाल-गरीबी ही वह ''600 पाउण्ड का गोरिल्ला है जो अमेरिकी शिक्षा पर
बुरा असर डालता है। जैसा कि अर्थशास्त्री रिचर्ड रोथस्टीन ने 'वर्ग
तथा विद्यालय’ में लिखा है :
यह निष्कर्ष कि औपलबिधक भिन्नता 'अवनतिशील
विद्यालयों का कुसूर है... भ्रांत एवं ख़तरनाक है। यह इस तथ्य का नकार करती है कि
हमारे समाज जैसे वर्गित समाज में वर्गीय सामाजिक लक्षण किस प्रकार स्कूलों में
शिक्षण को प्रभावित कर सकते हैं... लगभग आधी सदी से अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों
तथा शिक्षाप्रदाताओं के मध्य यह तथ्य बिल्कुल स्पष्ट तौर पर मान्य है कि सामाजिक
तथा आर्थिक प्रतिकूलताओं तथा औपलबिधक असफलता में संबंध है। फिर भी ज्यादातर लोग
इसके स्पष्ट निहितार्थ से बचते रहते हैं- कि निम्नवर्गीय बच्चों की औपलबिधक
भिन्नता कम करने के लिए उनकी सामाजिक तथा आर्थिक दशा में सुधार करना अनिवार्य है,
स्कूल
सुधार मात्र से कुछ न होगा।
फिर भी रूढि़वादी शैक्षणिक मत यह जिद
पाले हुए है कि विद्यार्थियों के जीवन को प्रभावित करने वाले इन वृहत्तर सामाजिक
पहलुओं को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। हालांकि वे कभी-कभी स्वीकार तो करते हैं कि
गैर-बराबरी, नस्लीय भेदभाव तथा ग़रीबी शैक्षणिक उपलबिधयों
पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, लेकिन ये कारक, उनका अगला तर्क
होता है, उसके निर्धारक कारक नहीं हैं। इस मत के हिसाब से ऐसे स्कूलों की
स्थापना संभव है जो जरूरतमंद विद्यार्थियों की उपरोक्त समस्याओं का व्यवसिथत रूप
से खात्मा कर सकते हैं। इस तरह से विद्यार्थियों की उपलबिधयों संबंधी असल अवरोधकों
हेतु स्कूल खुद ही उत्तरदायी हैं: जैसे उत्तरदायिता तथा मूल्यांकन की कमी तथा
ख़राब शिक्षण। वर्गीय अक्षमता, बाल-गरीबी, नगरीय अवह्रसन,
नस्लीयता
आदि को 1960 के दशक के फलसफे 'अभाव की संस्कृति’
के अंतर्गत देखा जाना चाहिए: इसके अंतर्गत गरीब एवं अल्पसंख्यक विद्यार्थियों को 'श्रेष्ठ
मध्यवर्गीय श्वेत मूल्यों/संस्कृति को सफलता की कंजी के तौर पर अपनाने की सलाह दी
जाती थी। एक ठेठ पूंजीवादी मान्यता को अभिव्यक्त करते हुए गेटस फाउण्डेशन इसरार
करती है कि स्कूल सब विद्यार्थियों का 'उद्धार कर सकते हैं, इससे
फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें कैसी-कैसी असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
'कायापलटकारी चुनौती ने अपनी शुरुआत में
ही स्वीकार किया कि एनसीबीएल के अंतर्गत स्कूलों की एक बहुत बड़ी संख्या को पुनर्संगठन
की जरूरत है। 2009-10 में ही ऐसे स्कूलों की संख्या 5
हजार तक तय की गर्इ, यह देशभर में सिथत स्कूलों का 5
फीसदी है। बड़ी समस्या यह है कि देशभर में कुल विद्यार्थियों का 35
फीसदी तथा अल्पसंख्यक वर्ग के विद्यार्थियों का 2 तिहार्इ हिस्सा
निर्धन स्कूलों में पढ़ता है, इनका प्रदर्शन निम्न स्तर का रहा है।
रिपोर्ट का दावा है कि औपलबिधक भिन्नता को खत्म करने में गरीबी एक बड़ी बाधा तो है,
लेकिन
यह कोर्इ 'अलंघ्य अड़चन’ नहीं है। बहुत कम मुआमलों में ऐसा होता है, जैसा
कि प्रकीर्ण-आरेखों की एक श्रृंखला से स्पष्ट हुआ, कि अधिक गरीबी
वाले स्कूलों का प्रदर्शन भी ऊँचा रहा है (एचपीएचपी स्कूल)। 'कायापलटकारी
चुनौती’ के नज़रिये से ये एचपीएचपी स्कूल बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये ग़रीबी और
स्कूल की प्रगति के मध्य सादृश्यता को गलत साबित करते हैं। ऐसे बिरले एचपीएचपी
स्कूलों को गेटस फाऊण्डेशन चार्टर स्कूल या 'चार्टर जैसे
स्कूल मानती है: ये विद्यालयी परिषद, परंपरागत पाठयक्रम, प्रमाणित
शिक्षकों तथा शिक्षक संघों से मुक्त हैं तथा उच्च उत्पादकता वैल्यू एडिड वाले
व्यावसायिक सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करते हैं। जवाब साफ है : ''असफल
स्कूलों का चार्टरीकरण किया जाए। लेकिन चूंकि स्कूलों अथवा जिलों ने इस विकल्प को
तुरंत स्वीकार नहीं कर लिया था, अत: यह जरूरी हो गया था कि उन्हें ''चार्टर-संबंधी
प्रविषिट-अंक या जिला-प्रशासित स्कूलों में'' चार्टर जैसे नियमों और नियंत्रण में से
चुनाव करने के लिए तैयार किया जाए। इस तरह से यह प्रक्रिया 'सार्वजनिक
स्कूलों को चार्टर स्कूलों में उच्च प्रदर्शन दिखाने वाली प्रक्रिया के अनुकूल
ढालने का बहुप्रतीक्षित साधन बन जाएगी- और अंतत: उनका चार्टरीकरण कर देगी।
ओबामा प्रशासन ने गेटस फाउण्डेशन के इस
फलसफे का पालन किया है, जिला प्रशासित सार्वजनिक स्कूलों के मुकाबिल
चार्टर स्कूलों को बढ़ावा दिया जा रहा है और जिला स्कूलों को चार्टर जैसे
अभिलक्षणों को अपनाने के लिए तैयार किया जा रहा है। इससे संघीय वित्तीय मदद में
कमी का ख़तरा पैदा हो गया है जबकि चार्टर स्कूलों की संख्या बढ़ती जा रही है।
चार्टर स्कूल बस नाममात्र के ही
सार्वजनिक स्कूल हैं : वे सार्वजनिक वित्तपोषण पर निर्भर है और उन्हें अपने पास आए
हर विधार्थी को दाखिल करना होता है। ये स्कूल एक 'चार्टर या
अनुबन्ध के अनुसार चलते हैं, जो सार्वजनिक प्राधिकरण तथा स्कूल के
संचालकों के मध्य उत्तरदायित्व की व्यवस्था करता है। इस तरह से ये स्कूल असल में
संविदा द्वारा हस्तांतरित स्कूल है, निर्वाचित स्कूल परिषद तथा जिला
प्रशासन से स्वतंत्र रहकर कार्य करते हैं, साथ ही सार्वजनिक स्कूलों पर लागू होने
वाले बहुत से नियम भी इन पर लागू नहीं होते। सिद्धांतत: चार्टर की स्थापना कोर्इ
भी कर सकता है (अभिभावकगण, शिक्षकगण, सामुदायिक सदस्य,
गैर-मुनाफाकांक्षी
संगठन या मुनाफाकांक्षी संगठन), व्यवहार में लेकिन यह प्रक्रिया
कारपोरेटिया प्रबंधन शैली तथा 'निवेशक-हितार्थ’ प्रभुत्व की दिशा में
बढ़ी है। यह या तो बड़े निजी निगमों के वित्तीय समर्थन तथा निर्देशन द्वारा घटित
हुआ है, जैसा कि बहुत से गैर-मुनाफा चार्टर संघों के मुआमले में हुआ, या
फिर मुनाफाधारित र्इएमओज द्वारा स्कूलों का सीधे ही नियंत्रण संभाल लेने की वजह से
हुआ।
2005 में हरीकेन कैटरीना की तबाही के बाद न्यू आर्लियेंस तुरता-फुर्ती सार्वजनिक स्कूलों का चार्टरीकरण कर दिया। जैसा कि 2010 में डैनी वेल ने 'आपदा पूंजीवाद : न्यू आर्लियेंस में शिक्षा के चार्टरीकरण तथा निजीकरण का पुनरीक्षण में स्पष्ट किया, '' 19 से भी कम महीनों के दौरान (कैटरीना के बाद) न्यू आर्लियेंस में ज्यादातर सार्वजनिक स्कूलों का चार्टरीकरण कर दिया गया था और न सिर्फ सभी सार्वजनिक स्कूलों के शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया था बल्कि सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार अथवा अन्य किसी भी अनुबंध को चिन्दी-चिन्दी कर दिया गया। 2008 तक चार्टरीकृत स्कूलों में आधे से ज्यादा विद्यार्थियों का नामांकन हुआ, जबकि कैटरीना हादसे से पहले यह अनुपात मात्र 2 फीसदी था। इनमें से ज्यादातर स्कूल मुनाफाकांक्षी र्इएमओज द्वारा चलाए जाते हैं।
'रिथिंकिंग स्कूल्स की प्रबंधक संपादक
बारबरा माइनर लिखती हैं कि हालांकि चार्टर स्कूल आंदोलन की शुरूआत प्रगतिशील थी
लेकिन आज यह उन लोगों को आकर्षित करता है जो कि 'मुक्त बाजार,
निजीकरण
एजेंडे से संबंधित हैं। पिछले दशक के दौरान इन निजीकरण-लाभार्थियों का चार्टर
स्कूल आंदोलन में प्रभुत्व बढ़ गया है।‘ या, जैसा कि प्रतिष्ठित
शिक्षा-अन्वेषक डेबोरा मेर्इयर अपनी पुस्तक 'इन स्कूल्स वी
ट्रस्ट’ में लिखते हैं ''चार्टर स्कूलों ने शुरू में जो
उम्मीदें दिखार्इ थीं वे जल्द ही ध्वस्त हो गई, ये स्कूल एक
जैसे चेन-स्टोर्स में बदल गए, इनका नियंत्रण स्वतंत्रमना 'मम्मी-पापा’
के हाथ में न था, जैसा कि हमने सोचा था, बलिक दुनिया के
सबसे ताकतवर खरबपति इनके मालिक थे।
द हारलेम चार्टर स्कूल्स- जिन्होंने 2010
में आर्इ प्रति-सार्वजनिक स्कूल, प्रति-शिक्षक संघ डाक्यूमेंट्री फिल्म 'वेटिंग
फार सुपरमैन’ का कीर्तिगान किया था- कुछेक छत्र-चार्टर स्कूल निगमों द्वारा चलाए
जा रहे हैं। इन्हीं में से एक, द सक्सेस चार्टर नेटवर्क के 9
सदस्यीय बोर्ड में से 7 हेज फण्ड तथा निवेशक कंपनियों के निदेशक हैं,
8वां
न्यू स्कूल्स वेंचर फंड (इसे गेटस तथा ब्रोड फाउण्डेशन से भारी मात्रा में धन
मिलता है) का प्रबंधकीय सहयोगी है और 9वां इंस्टीटयूट आफ स्टूडेण्ट अचीवमेन्ट
(कारपोरेट प्रायोजित गैर मुनाफा सगठन जिसे एटी & टी से काफी धन मिलता है,
स्कूल
पुनर्संगठन विशेषज्ञ) का प्रतिनिधि है। इस बोर्ड में न तो कोर्इ अभिभावक शामिल है,
न
कोर्इ शिक्षक तथा न कोर्इ सामुदायिक सदस्य ही। जैसा कि न्यूयार्क टाइम्स ने
अभिव्यक्त किया-न्यूयार्क में हेज़ फण्डस ही चार्टर आंदोलन का 'उत्केन्द्र
है। वित्तीय पूंजी सहज ही चार्टर स्कूलों की ओर आकर्षित है क्योंकि ये (1) सार्वजनिक
रूप से वित्तपोषित है लेकिन इनका प्रबंधन निजिगत है तथा बड़े निकायों द्वारा इनकी
स्थापना रणनीतिक रूप से अहम स्थलों पर की गर्इ है, (2) ज्यादातर
यूनिहनहीन (और यूनियनद्वेषी) हैं, (3) मूल्यांकन, डाटा संग्रहण
तथा तकनीकीकरण पोषी हैं, (4) कारपोरेट किस्म के प्रबंधन हेतु तत्पर
हैं, और (5) वित्तीय प्रबंधनाधारित बड़ी इमदाद के संग्रहकोष
हैं।
गैर-मुनाफाकांक्षी चार्टर स्कूल भी
निजी मुनाफा-उत्सर्जक रणनीतियों में भागीदार बन सकते हैं। जैसा कि माइनर ने लिखा
है: ''लोग हार्लेम्स चिल्ड्रन जोन से भी पैसा बनाएंगे (यह हार्लेम के दो
सबसे बड़े चार्टर संगठनों में से एक है जिनकी ‘वेटिंग फार सुपरमैन’ में प्रशंसा की
गर्इ है) :
संगठन की 2008 की गैर-मुनाफा
कर रिपोर्ट के अनुसार इसके पास 194 मिलियन डालर की परिसंपत्ति है। लगभग 15
मिलियन डालर बचत अथवा अल्पकालिक निवेश में लगाए गए थे और 128 मिलियन डालर एक
हेज़ फण्ड में निवेशित थे। अब चूंकि ज्यादातर हेज़ फण्ड 2-20 के फीस सिद्धांत
पर काम करते हैं (2 फीसद प्रबंधन फीस तथा हर प्रकार के मुनाफे का 20
फीसद), कुछेक सौभाग्यशाली हेज़ फण्ड हार्लेम चिल्ड्रन्स जोन से हर साल लाखों
डालर कमाएंगे।
औपलबिधक भिन्नता खत्म करने में चार्टर
स्कूलों की भूमिका के बारे में चाहे जितनी ही हवा बांधी गर्इ हो, अनुमानित
शैक्षणिक नतीजे हासिल नहीं हुए। 2003 में विद्यार्थियों के संघीय एनएर्इपी
मूल्यांकन के अनुसार देश भर में चार्टर स्कूल विद्यार्थियों ने सार्वजनिक स्कूल के
विद्यार्थियों के बरअक्स कोर्इ महत्वपूर्ण बढ़ोतरी नहीं दिखार्इ (एक समान
जातिगतनस्लीय पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों की तुलना), जबकि गरीब चौथे
दर्जे के सार्वजनिक स्कूलों के विद्यार्थियों ने पाठन तथा हिसाब में चार्टर विद्यार्थियों
को पीछे छोड़ दिया। सो, प्रामाणिक मूल्यांकन के इसके अपने संकुचित
पैमानों के हिसाब से भी चार्टर स्कूल आंदोलन असफल ही रहा है।
फिलाडेलिफया ने 2009
में घोषित किया कि वहाँ के चार्टर स्कूल असफल हो चुके हैं। हालांकि निजिगत प्रबंधन
वाले 28 में से 6 प्राथमिक तथा माध्यमिक स्कूलों ने सार्वजनिक
स्कूलों से बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन 10 का प्रदर्शन
सार्वजनिक स्कूलों के मुकाबले कमतर रहा। कम-अज-कम चार चार्टर वित्तीय कुप्रबंधन,
हितों
के टकराव तथा भार्इ-भतीजावाद के मुआमलों में संघीय आपराधिक जांच के दायरे में थे।
पेनिसलवेनिया के कुछेक चार्टरों के प्रबंधकों ने अपने चार्टरों के उत्पाद बेचने
हेतु कम्पनियां खड़ी कर ली थीं।
अगर चार्टर स्कूल अच्छा प्रदर्शन करते
हैं तो भी उनके खिलाफ यह अभियोग तो रहता ही है कि वे जरूरतमंद बच्चों का तयशुदा
संख्या तक नामांकन नहीं करते। यूएस शिक्षा विभाग के राष्ट्रीय शिक्षा सांखियकी
केन्द्र के भूतपूर्व एवं वर्तमान कमिश्नर जैक बक्ली तथा मार्क श्नाइडर ने 2002-03
में एक अध्ययन द्वारा यह पाया कि वाशिंगटन डीसी के 37 चार्टरों में
से 24 चार्टरों ने विशिष्ट शिक्षा विद्यार्थियों का कोटा पूरा नहीं किया
था, जबकि 28 में अंग्रेजी सीखने वाले विद्यार्थियों का
प्रतिनिधित्व न्यून पाया गया।
चार्टर स्कूलों का बहुप्रशस्त
कार्यक्रम रहा है नालेज इज पावर प्रोग्राम (केआर्इपीपी) गेटस, वाल्टन
तथा ब्रोड फाउण्डेशन्स से लगातार धन मिलता रहता है। बाकी सभी सफल चार्टरों की तरह
ही केआर्इपीपी भी लाटरी द्वारा विद्यार्थियों का नामांकन करता है- इससे
प्रोत्साहित परिवारों के प्रोत्साहित तथा बेहतर विधार्थी ही नामांकन पाते हैं।
केआर्इपीपी चार्टरों के तकाजे भी ज्यादा रहते हैं, विशिष्ट
तक़ाज़ों की पूर्ति हेतु विद्यार्थियों को यहां सार्वजनिक स्कूलों की अपेक्षा 60
फीसद अधिक वक्त बिताना होता है। ये भारी तकाजे जरूरतमन्द तथा निम्न-प्रदर्शन करने
वाले विद्यार्थियों को चार्टर छोड़ने तथा फिर से सार्वजनिक स्कूल में जाने पर
मजबूर कर देते हैं। 2008 में सैन फैंसिस्को में केआर्इपीपी स्कूलों के
बारे में किए गए शोध ने दर्शाया कि पांचवें दर्जे में चार्टर में आए विद्यार्थियों
में 60 फीसद आठवें दर्जे में पहुँचने तक स्कूल छोड़ चुके थे। रैविच कहते
हैं : ''सार्वजनिक स्कूलों को, केआर्इपीपी छोड़कर आए विद्यार्थियों
समेत, प्रत्येक प्रार्थी को स्वीकार करना होता है। वे उन बच्चों को स्कूल
से निकाल नहीं सकते जो मेहनत नहीं करते, या जिनकी गैर-हाजिरियां ज्यादा हैं,
या
जो सम्मान प्रदर्शित नहीं करते या जिनके अभिभावक या तो अनुपसिथत रहते हैं अथवा
लापरवाह हैं। उन्हें तो उन विद्यार्थियों को भी पढ़ार्इ में रमाने की कोशिश करनी
होती है जो स्कूल में आना भी नहीं चाहते। यही सार्वजनिक स्कूलों की दुविधा है।
न्यू आलियेन्स में चार्टर स्कूलों ने
अपंग विद्यार्थियों की अवमानना की। नतीज़तन, सदर्न पावर्टी
ला सेन्टर ने 4500 विकलांग विद्यार्थियों की तरफ से चार्टरों के
खिलाफ वैधानिक प्रबंधकीय शिकायत दजऱ् करा दी। शिकायत में न्यू आर्लियेन्स के
चार्टरों पर क्रमबद्ध तरीके से विकलांग शिक्षा कानून के प्रावधानों की अवहेलना का
अभियोग लगाया गया है।
चार्टर स्कूलों की एक और लाक्षणिकता यह
है कि न सिर्फ उनके विद्यार्थियों की ही जरूरत से ज्यादा रगड़ार्इ होती है (जैसा
कि केआर्इपीपी स्कूलों में होता है), बलिक शिक्षकों की भी अधिक रगड़ार्इ
होती है। वे अक्सर काम की अधिकता तथा कम तनख्वाह के विरोध में हड़ताल कर अपनी
असहमति दर्ज कराते हैं। 1997 से 2006 के बीच
राष्ट्रव्यापी स्तर पर हुए चार्टर स्कूल संबंधी एक अèययन में पाया कि
नए चार्टर स्कूल शिक्षकों की सालाना 40 फीसदी अधिक रगड़ार्इ होती है, चार्टर
स्कूलों में लगभग 25 फीसदी शिक्षक सालाना स्कूल छोड़ जाते हैं,
यह
सार्वजनिक स्कूलों के मुकाबले लगभग दो गुना है। सामान्यत: चार्टर स्कूल शिक्षकों
को सार्वजनिक स्कूल शिक्षकों से कम तनख्वाह मिलती है, परवर्ती श्रेणी
को मिलने वाली दूसरी सुविधाएं अलग से रहीं। मिशिगन सार्वजनिक स्कूल संबंधी एक शोध
ने पाया कि जहां चार्टर स्कूलों के शिक्षकों को सालाना 31, 185 डालर
मिलते हैं वहीं सार्वजनिक स्कूलों के शिक्षकों को 47,315 डालर मिलते
हैं।
चार्टर स्कूलों की एक बहुत बड़ी संख्य
र्इएमओज के हाथों में है। ये मुनाफाकांक्षी कंपनियां चार्टर स्कूलों का प्रबंधन
पूंजी संचयन के मकसद से करती है। बहुत सी फर्में मुनाफा
बढ़ाने हेतु कर्इ तरह की रणनीतियां अपना चुकी हैं, शुरूआत हुर्इ
श्रम की दर घटाने से। चार्टर स्कूल सामान्यत: यूनियनहीन हैं तथा कम वेतन देते हैं।
वहां कार्यरत शिक्षकों के पास, जैसे कि टीच फार अमेरिका द्वारा मुहैया
करवाए गए शिक्षक, अक्सर व्यवसायिक अèयापकीय
प्रशिक्षण नहीं होता है। र्इएमओज के लिए राजकीय सेवानिवृत्ति व्यवस्था को मानना
जरूरी नहीं है। हालांकि वे प्रतिस्पर्धात्मक आय दरों के अनुसार नियुकितयां करते
हैं, फिर भी लाभ बहुत कम हैं तथा वरिष्ठता के साथ वेतन में वृद्धि की
संभावना तो दूर की कौड़ी है। कक्षा का आकार अक्सर ही बड़ा होता है। र्इएमओज विद्यार्थियों
को मिलने वाली सहायक सेवाओं पर भी कैंची चलाने की कोशिश करते हैं, जैसे:
स्कूल लंच कार्यक्रम, यातायात तथा पाठयक्रमेतर गतिविधियां। वे अधिक
सीमाबद्ध पाठयक्रम निर्धारित करते हैं जिसका अधिक ध्यान
बुनियादी-योग्यताओं के परीक्षण पर रहता है। ये सभी प्रावधान निर्धारित लक्ष्यों को
हासिल करने की प्रामाणिक विधियाँ मानी जाती हैं। बहुत-से
ताजा तथा विश्वसनीय अèययनों ने सुझाया है कि र्इएमओज चालित चार्टर
स्कूल नस्लीय पृथक्करण की ओर भी प्रवृत्त हैं।
...अगली क़िस्त में जारी
अंग्रेजी में इस आलेख को मंथली रिव्यू की वेबसाईट में पढ़ा जा सकता है.
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