...वक्ताओं ने कहा कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद एक वैज्ञानिक दर्शन है, एक वैज्ञानिक विचारधारा है जो वर्तमान शोषण व दमन पर टिकी व्यवस्था के बजाय जनवादी व समानता पर आधारित वैज्ञानिक समाजवाद की बात करता है तथा वर्तमान शोषणकारी व्यवस्था से मुक्ति का रास्ता दिखाता है। चूंकि उक्त छात्र व किसान नेता इस विचारधारा को मानते हैं इसलिए उनको राजद्रोह के मुकदमों में जेल में रखा गया।
प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि सितम्बर 2005
में छात्र-किसान नेता व आर0डी0एफ0 के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष जीवन चन्द्र
(जे0सी0), छात्र नेता अनिल चैड़ाकोटी, मजदूर नेता नीलू बल्लभ को उत्तराखण्ड
की कथित मित्र पुलिस ने राजद्रोह के फर्जी मुकद्में में जेल भेज दिया था।
छात्र नेता गोपाल भट्ट, और राजेन्द्र फुलारा को जिन्हें अन्य फर्जी मुकदमों
में 2007 व 2008 में गिरफ्तार किया गया उन पर भी 2005 का दिनेशपुर थाने का
उक्त मुकदमा लगा दिया। 25 सितम्बर 2005 को जीवन चन्द्र व नीलू बल्लभ को
गदरपुर से तथा अनिल चैड़ाकोटी को खटिमा से पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर 3 दिन
अवैध हिरासत में रखकर 28 सितम्बर 2005 को 121 ए, 124 बी, 153 बी व 7
क्रिमिनल एमिडमेंट एक्ट की धारायें लगाकर राजद्रोह का फर्जी मुकदमा
दिनेशपुर थाने में दर्ज कर जेल भेज दिया गया। तीन-तीन, चार-चार साल जेल में
बिताने के बाद ये लोग जमानत पर बाहर आये तो उत्तराखण्ड की पुलिस द्वारा
तरह-तरह से उक्त नेताओं का उत्पीड़न व प्रताड़ना जारी रहा। 28 मई 2013 को
उक्त मुकदमें का फैसला सुनाकर ए.डी.जे. रुद्रपुर न्यायालय ने सभी आरोपियों
को बरी कर दिया। उक्त मुकदमें की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता ए0डी0 मैसी द्वारा
एवं सहयोग एडवोकेट निर्मल मजमूदार द्वारा किया गया।
न्यायालय के निर्णय से यह स्पष्ट हो जाता है कि उत्तराखण्ड की
सरकारें व उत्तराखण्ड की कथित मित्र पुलिस द्वारा प्रदेश के नौजवानों को
राजद्रोह के फर्जी मुकदमें में फंसाकर इस व्यवस्था की नाकामी व सरकार की
जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आम जनता का ध्यान भटकाना चाहती है। प्रदेश की
सरकारें जनविरोधी नीतियों व प्राकृतिक सम्पदा (जल, जंगल, जमीन व खनिज
सम्पदा) की लूट के खिलाफ जनता के विरोध व असहमति के स्वर को बर्दाश्त नहीं
करना चाहती। यदि कोई व्यक्ति सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ व
प्राकृति सम्पदा की लूट के खिलाफ विरोध-प्रतिरोध करता है तो वह सरकार की
नजर में राजद्रोही हो जाता है। प्रदेश की प्राकृतिक सम्पदा की लूट को रोकने
के लिए प्रदेश की संघर्षशील ताकतें, आंदोलनकारी शक्तियां, लगातार प्रतिरोध
कर रही हैं। उपरोक्त मुकदमें के सभी आरोपी इस संघर्ष का हिस्सा रहे हैं।
पिछले डेढ़-दो दशक से उक्त लोग संघर्षरत हैं। यही बात उत्तराखण्ड की
सरकारों व पुलिसिया तंत्रों को पसंद नहीं हैं। जिसके कारण उक्त लोगों पर
फर्जी मुकदमा लगाया गया।
वक्ताओं ने कहा कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद एक वैज्ञानिक दर्शन
है, एक वैज्ञानिक विचारधारा है जो वर्तमान शोषण व दमन पर टिकी व्यवस्था के
बजाय जनवादी व समानता पर आधारित वैज्ञानिक समाजवाद की बात करता है तथा
वर्तमान शोषणकारी व्यवस्था से मुक्ति का रास्ता दिखाता है। चूंकि उक्त
छात्र व किसान नेता इस विचारधारा को मानते हैं इसलिए उनको राजद्रोह के
मुकदमों में जेल में रखा गया। क्योंकि हमारी सरकारें व पुलिसिया तंत्र नहीं
चाहता की जनता को सही नजरियें से आंदोलन के लिए प्रेरित किया जाय। पूरे
उत्तराखण्ड में बड़े बांधों का विरोध, जल-जंगल-जमीन पर हक-हकूक की लडाई
सहित तमाम आंदोलनों में नेतृत्वकारी, आंदोलनकारियों पर उत्तारखण्ड की कथित
मित्र पुलिस द्वारा सन् 2004 से दर्जनों आंदोलनकारियों पर राजद्रोह के
फर्जी मुकद्में लगाये गये हैं। किंतु लगातार न्यायालय के निर्णयों द्वारा
यह स्पष्ट होता जा रहा है कि उत्तराखण्ड की पुलिस द्वारा आंदोलनकारियों पर
फर्जी मुकदमें लगाये गये थे। सन् 2004 में भी हसपूरखत्ता (ऊधमसिंह नगर) के
मुकदमें में 10 लोगों पर राजद्रोह के फर्जी मुकदमें लगाये गये थे। 14 जून
2012 को ए0डी0जे0 रुद्रपुर न्यायालय ने उक्त लोगों को बरी कर दिया गया था।
प्रेस वार्ता को आर0डी0एफ0 के प्रदेश अध्यक्ष जीवन चन्द्र (जे0सी0),
सी0आर0पी0पी0 के संयोजक पान सिंह बोरा, टी0आर0 पाण्डे, सेवानिवृत्त
प्रोफेसर प्रभात उप्रेती, छात्र नेता गोपाल भट्ट आदि ने सम्बोधित किया।
प्रेस वार्ता में चन्द्रकला तिवारी, पूजा भट्ट, दीप पाठक, डा0 उमेश चंदोला
सहित अनेक लोग उपस्थित थे।
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