Saturday, 31 August 2013

हेम की गिरफ्तारी के निहितार्थ

-अभिनव श्रीवास्तव 
अभिनव श्रीवास्तव

"...दरअसल हम हेम की गिरफ्तारी को एक प्रतीक मान सकते हैं, अनवरत चलने वाली उन गिरफ्तारियों का प्रतीक जिनको अंजाम देते समय अक्सर पुलिस द्वारा माओवाद, नक्सलवाद और मुस्लिम आतंकवाद के फैलने का डर और भय खड़ा किया जाता है। जिसके दायरे में कभी जीतन मरांडी, सुधीर ढवले, सीमा आजाद और विनायक सेन आते हैं तो कभी राज्य दमन के खिलाफ आवाज उठाने वाले वे निर्दोष और अनाम चेहरे आते हैं जिनकी जिंदगी और कभी-कभी तो मौत तक चर्चा का विषय नहीं बन पाते।।.."

 

Photo: ...अभी तक तो हेम से डफली बरामद कर ली होगी महाराष्ट्र पोलिस ने और जनगीतों की किताब भी, मोबाइल बंद है, 10 दिन की पुलिस रिमांड शायद चीन रुस से संबंध कबूलवाने होंगे।चीनी भाषा पढ़ रहा था है Hem जेएनयू में आखिर चीनी ही क्यों?अमरीकन इंगलिश क्यूँ ना पढ़ी ?अपराध तो गंभीर है।..
वाया- Deep Pathak
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र हेम मिश्रा की पांडु पोरा और महेश टिर्की के साथ कथित तौर पर माओवादियों की मदद करने के आरोप में गिरफ्तारी की खबर अब सोशल साइटों से होती हुयी मुख्य धारा मीडिया में भी जगह बना चुकी है। खबरों के अनुसार गढ़चिरौली पुलिस ने हेम सहित पांडु पोरा और महेश टिर्की को ‘नक्सल कुरियर’ होने के आरोप में अहेरी बस स्टेशन से गिरफ्तार किया। वहीं हेम की गिरफ्तारी पर पहले-पहल सोशल साइटों पर चल रहा विरोध कमोबेश अब एक अभियान की शक्ल ले चुका है। 
 
बीते 24 अगस्त को राजधानी दिल्ली के वाम संगठनों और संस्कृतकर्मियों ने महाराष्ट्र सदन के सामने हेम की गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन किया। देश भर के कई वाम संगठनों ने भी हेम, पांडु और महेश की गिरफ्तारी की कड़े शब्दों में निंदा की है। दिल्ली और देश के अन्य वाम संगठनों में हेम की गिरफ्तारी को लेकर जिस बेचैनी और विरोध का माहौल है, वो सिर्फ इसलिये नहीं है कि हेम ‘जेएनयू’ का छात्र था। निस्संदेह, हेम की पहचान जेएनयू में चाइनीज स्टडीज के छात्र और वाम छात्र संगठन डीएसयू के सक्रिय संस्कृतकर्मी की तरह थी, लेकिन सिर्फ इस पहचान के आस-पास बुने गये विश्लेषण और रिपोर्टों से हेम की गिरफ्तारी के विरोध में उठ रही आवाजों की वास्तविक वजहों को नहीं समझा जा सकता। सिर्फ इस पहचान के आधार पर हेम की गिरफ्तारी को नाजायज बताने वाली आवाजों को हमें सहानुभूति से नहीं, बल्कि संदेह की नजर देखना होगा। 
 
दरअसल हम हेम की गिरफ्तारी को एक प्रतीक मान सकते हैं, अनवरत चलने वाली उन गिरफ्तारियों का प्रतीक जिनको अंजाम देते समय अक्सर पुलिस द्वारा माओवाद, नक्सलवाद और मुस्लिम आतंकवाद के फैलने का डर और भय खड़ा किया जाता है। जिसके दायरे में कभी जीतन मरांडी, सुधीर ढवले, सीमा आजाद और विनायक सेन आते हैं तो कभी राज्य दमन के खिलाफ आवाज उठाने वाले वे निर्दोष और अनाम चेहरे आते हैं जिनकी जिंदगी और कभी-कभी तो मौत तक चर्चा का विषय नहीं बन पाते। ये सभी मामले अपने आप में। कहा जा सकता है कि हेम की गिरफ्तारी के मामले में भी जो बेचैनी दिखायी पड़ रही है उसका आधार भी ये पुराने अनुभव ही हैं। 
 
इन सभी मामलों में पुलिस की गिरफ्तारी प्रक्रिया, उसके आरोपों और उसके तमाम दावों में जो गहरे सुराख दिखायी पड़े, उससे यह शक और संदेह और गहरा जाता है कि हेम की गिरफ्तारी के मामले में भी यही सब कुछ दोहराया जा रहा हो। बल्कि हेम की गिरफ्तारी की आधिकारिक सूचना जिस अंदाज और जितनी अस्पष्टता के साथ शुरुआत में सार्वजनिक हुयी, उसने बहुत हद तक इस संदेह पर मुहर लगाने का ही काम किया है। गढ़चिरौली पुलिस की ओर से पहली बार 24 अगस्त को आधिकारिक रूप से प्रेस नोट जारी कर बताया गया कि उसने हेम मिश्रा, पांडु पोरा और महेश टिर्की को 23 अगस्त को अहेरी बस स्टाप से देर शाम गिरफ्तार किया। इसी नोट में पुलिस ने यह भी दावा किया है कि तीनों के पास से एक माइक्रो चिप और खुफिया दस्तावेज मिले हैं जिन्हें वे माओवादी नेता नर्मदा को सौंपने जा रहे थे।
 
हालांकि इस पूरे नोट में पुलिस की ओर से कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि उसने किन धाराओं के अंतर्गत इन तीनों को गिरफ्तार किया है? अगर पुलिस के पास माओवादियों से मदद के असंदिग्ध और प्रामाणिक सबूत हैं तो उसे ये बताने या जाहिर करने से परहेज क्यों होना चाहिये कि उसने किन धाराओं के अंतर्गत तीनों को अदालत में पेश किया है? ऐसे और भी कई सवाल हैं जो अनुत्तरित हैं और जिनके अनुत्तरित रहने का तात्पर्य है कि गढ़चिरौली पुलिस ने संभवतः आधे-अधूरे साक्ष्यों और जांच-पड़ताल के आधार पर हेम, पांडु और महेश को गिरफ्तार किया। दरअसल माओवादियों की मदद का आरोप इतना सपाट और सतही तरीके से लगाया जाता है कि इसके बाद गिरफ्तारी की जनतांत्रिक प्रक्रिया और उससे जुड़े सवाल पूछने की गुंजाइश ही खत्म हो जाती है। अपने वर्गीय और कारोबारी हितों के चलते मुख्य धारा मीडिया भी पलटकर पुलिस से ऐसे सवाल पूछने से हिचकता है। नतीजा ये होता है कि ऐसे मामलों में पुलिस किसी भी स्तर पर जवाबदेह नहीं रह जाती और उसके पास जांच-पड़ताल के नाम पर ऐसे असीमित अधिकार आ जाते हैं जिनका उपयोग वह पूरी वैधता के साथ करती है। 
 
लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। जनतांत्रिक प्रक्रियाओं की अनदेखी कर पुलिस को असीमित अधिकार देने जैसे स्थिति एक राज्य व्यवस्था के लिये तब आती है जब वह हर हाल में जनता से अपना आज्ञापालक होने की उम्मीद करती है। यह स्थिति तब आती है जब राज्य व्यवस्था के प्रतिनिधियों के पास जनता का भरोसा जीतने के लिये आवश्यक प्राधिकार और युक्तियों की कमी हो जाती है। ऐसी ही सूरत में एक व्यवस्था को ज्यादा से ज्यादा दमनात्मक होना पड़ता है। जल, जंगल, जमीन के आंदोलनों के साथ भारतीय राज्य व्यवस्था के टकराव की परिणीति ऐसी ही दमनात्मक कारर्वाइयों के रूप में हो रही है और इन कार्रवाइयों को अंजाम देने के लिये माओवाद और नक्सलवाद का भय पैदा करना एक ‘जरुरत’ सी बन गयी है। 
 
हेम, पांडु और महेश की गिरफ्तारियों से पहले भी ऐसी कई गिरफ्तारियां इस जरुरत को पूरा करने के लिये ही की जाती रही हैं। इसलिये तीनों की गिरफ्तारी को इन बड़े सन्दर्भों से अलग कर देखना मुश्किल है। अंत में ये दोहराना फिर जरूरी होगा कि सवाल ये नहीं है कि जेएनयू का छात्र होते हुये भी हेम गिरफ्तार हुआ, सवाल ये है कि गढ़चिरौली पुलिस ने हेम को जिन आरोपों में हिरासत में लिया है, क्या पुलिस के पास उन आरोपों में हेम को गिरफ्तार करने का ठोस और पर्याप्त आधार था या पुलिस किसी खास ‘मकसद’ के साथ उन सभी लोगों को कोई संदेश देना चाहती है जो विकास की बनी-बनायी समझदारी पर सवाल उठाने को तत्पर और तैयार दिखायी देते हैं?
                              अभिनव पत्रकार हैं. पत्रकारिता की शिक्षा आईआईएमसी से. 

                                                     राजस्थान पत्रिका (जयपुर) में कुछ समय काम. अभी स्वतंत्र लेखन. 
                                                                  इन्टरनेट में इनका पता  abhinavas30@gmail.com है.



Wednesday, 28 August 2013

राज्य प्रायोजित साजिश का शिकार हेम

हाथ में दर्द बढ़ने के कारण हेम महाराष्ट्र में डॉ.प्रकाश आम्टे के अस्पताल में इलाज कराने के लिये जा रहे थे, परन्तु महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें रास्ते से बलारशाह स्टेशन से उठाकर 350 किलोमीटर दूर अहेरी थाना क्षेत्र (गढचिरोली) में झूठे मुकदमे में गिरफ्तार दिखाया है...

दिनांक 27 अगस्त 2013 को विभिन्न जन संगठनों व बुद्धिजीवियों द्वारा जेएनयू छात्र हेम मिश्रा की गिरफ्तारी के विरोध में संयुक्त रूप से एक प्रेस वार्ता का आयोजन उत्तराखण्ड के हल्द्वानी स्थित एक रेस्टोरेंट में किया गया. प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुये वक्ताओं ने कहा कि संस्कृतिकर्मी, राजनैतिक कार्यकर्ता व जेएनयू के छात्र हेम मिश्रा को महाराष्ट्र पुलिस द्वारा झूठे और फर्जी मुकदमे में फंसाकर गिरफ्तार किया गया है. हम हेम मिश्रा की गिरफ्तारी की कड़े शब्दों में निन्दा करते हैं तथा बिना शर्त रिहाई की मांग करते हैं.
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प्रेस को सम्बोधित करते हुये वक्ताओं ने कहा कि अल्मोड़ा निवासी हेम मिश्रा 1996 से ही उत्तराखण्ड में प्रगतिशील छात्र मंच (पीएसएफ) से जुड़कर अपने गीतों व नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से छात्र, मजदूर, किसानों के हितों के लिये अपनी आवाज बुलन्द करते रहे हैं. 2009 से 2011 तक क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा (आरडीएफ) की राज्य कमेटी के सदस्य के रूप में जनता के मुद्दों पर संघर्षरत रहे.
वर्ष 2009 में पीयूडीआर और पीयूसीएल की संयुक्त टीम के साथ मिलकर उन्होंने उत्तराखण्ड में पुलिस दमन पर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के माध्यम से पुलिस दमन को उजागर किया. हेम मिश्रा राजनीतिक बंदी रिहाई कमेटी (सीआरपीपी) के साथ मिलकर देशभर में जेलों में बन्द राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिये भी काम करते रहे हैं.
वर्तमान में हेम जेएनयू में चायनीज लैंग्वेज के छात्र हैं तथा डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन (डीएसयू) की कार्यकारिणी सदस्य के रूप में छात्रहितों व मेहनतकश जनता के शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ अपने गीतों के माध्यम से आवाज उठाते रहे हैं. वामपंथी विचारधारा के हेम मिश्रा पिछले डेढ दशक से अपने राजनीतिक कार्यों व सास्ंकृतिक कर्म से समाज की विषमता, मेहनतकश जनता की तकलीफों व जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं.
प्रेस को सम्बोधित करते हुये वक्ताओं ने कहा कि हेम मिश्रा के बांये हाथ में जन्मजात आंशिक विकलांगता है, जिसके कारण पैदा होने के छह दिन बाद से ही एम्स में उनका इलाज चला और बाद में चेन्नई सहित दक्षिण भारत के विभिन्न जगहों पर उन्होंने अपने हाथ का इलाज करवाया.
इस बीच उनके हाथ में पुनः दर्द बढ़ने के कारण वे महाराष्ट्र में डॉ.प्रकाश आम्टे के अस्पताल में इलाज कराने के लिये जा रहे थे, परन्तु महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें रास्ते से ही उठाकर (बलारशाह स्टेशन से उठाकर 350 किलोमीटर दूर) अहेरी थाना क्षेत्र (गढचिरोली) में झूठे मुकदमे में गिरफ्तार दिखाया है. महाराष्ट्र पुलिस ने हेम मिश्रा को दो स्थानीय युवकों महेश तिर्की और पांडु नरोटे के साथ माओवादी कुरियर होने का झूठा आरोप लगाकर गिरफ्तार किया है.
प्रेस को संबोधित करते हुये वक्ताओं ने कहा कि आज पूरे देश में जनता प्राकृतिक सम्पदा (जल, जंगल, जमीन, खनिज) की लूट के खिलाफ विरोध-प्रतिरोध कर रही है. प्राकृतिक सम्पदा की लूट के खिलाफ व शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ जनता के आक्रोश को कुचलने के लिये सरकारें दमनचक्र चला रही हैं.
जनता की आवाज को अपनी कलम के द्वारा, गीतों के द्वारा, कला के माध्यम से उठाने वालों को साजिशन झूठे-फर्जी मुकदमों में फंसाकर जेलों में डाला जा रहा है. हेम मिश्रा भी इसी साजिश का शिकार हैं. वक्ताओं ने हेम मिश्रा की बिना शर्त रिहाई की मांग करते हुये सभी जनवाद पसन्द व्यक्तियों व संगठनों से गिरफ्तारी के खिलाफ एकजुटता के साथ विरोध का आह्वान किया.
प्रेस को क्रांतिकारी जनवादी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष जीवन चन्द्र जेसी, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के पीपी आर्या, राजनीतिक बन्दी रिहाई कमेटी के पान सिंह बोरा, रिटायर्ड प्रोफेसर प्रभात उप्रेती, पूजा भट्ट, चन्द्रकला तिवारी आदि ने संबोधित किया.

Monday, 26 August 2013

हेम की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल होने की अपील


मशीन नौजवानों पर मुकदमे थोपती है: वह उन्हें कैद करती है, यातनाएं देती है, मार डालती है. ये नौजवान इसके नाकारेपन के जीते जागते सबूत हैं...निकम्मी मशीन हर उस चीज से नफरत करती है, जो फलफूल रही है और हरकत कर रही है. यह सिर्फ जेलों और कब्रिस्तानों की तादाद ही बढ़ाने के काबिल है. यह और कुछ नहीं बल्कि कैदियों और लाशों, जासूसों और पुलिस, भिखारियों और जलावतनों को ही पैदा कर सकती है. नौजवान होना एक जुर्म है. हर सुबह हकीकत  इसकी पुष्टि करती है, और इतिहास भी जो हर सुबह नए सिरे से जन्म लेता है. इसलिए हकीकत और इतिहास दोनों पर पाबंदी है.           -एदुआर्दो गालेआनो



           साथी हेम जुल्म और नाइंसाफियों के इस इतिहास से वाकिफ हैं और इस हकीकत को बदलने के सपने देखते हैं, इसलिए आज वे जेल में हैं. शुक्रवार को महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें महाराष्ट्र के गढ़चिरोली से तब गिरफ्तार कर लिया, जब वे प्रख्यात गांधीवादी कार्यकर्ता प्रकाश आम्टे के अस्पताल में अपने हाथ का इलाज कराने के मकसद से वहां जा रहे थे. पुलिस, मीडिया और दक्षिणपंथी गिरोहों के एक हिस्से ने फौरन यह प्रचार करना शुरू किया कि वे एक ‘जानेमाने नक्सली कूरियर’ हैं. यह भारतीय राज्य की झूठ फैलाने वाली दमनकारी मशीन का नया कारनामा है, जो लगातार जनता की हिमायत में लिखने, बोलने और काम करने वाले छात्रों, नौजवानों और कार्यकर्ताओं पर हमले कर रही है, उन्हें गिरफ्तार कर रही है, उन पर झूठे मुकदमे थोप रही है और दूसरे अनेक तरीकों से परेशान कर रही है. हेम इसके सबसे हालिया शिकार हैं. हम साथी हेम की गिरफ्तारी की तीखे शब्दों में निंदा करते हैं और उनके बारे में फैलाए जा रहे झूठे प्रचार का खंडन करते हैं.
सच यह है कि जेएनयू से पिछले सेमेस्टर तक चीनी भाषा से बी.ए. कर रहे हेम एक उत्साही संस्कृतिकर्मी और छात्र कार्यकर्ता हैं. उनके गाए हुए गीतों में दलितों, आदिवासियों, मुस्लिमों और मजदूरों की जिंदगी के बदतरीन हालात और उनके बहादुराना संघर्षों के किस्से हुआ करते हैं. वे बहुत अच्छी डफली बजाते हैं और नाटकों में अभिनय करते रहे हैं. जेएनयू आने से पहले वे उत्तराखंड में, जहां के वे रहने वाले हैं, उनकी पहचान राज्य के अग्रणी जनपक्षधर संस्कृतिकर्मियों में से एक की हुआ करती थी. पिछले तीन सालों से वे जेएनयू के रिवोल्यूशनरी कल्चरल फ्रंट के एक सक्रिय कार्यकर्ता थे और उन्होंने हमें गांवों, कस्बों और शहरों में उत्पीड़ित जनता द्वारा गाए जा रहे अनेक ऐसे गीत सिखाए, जिनमें इंसाफ और बराबरी की बुनियाद पर एक नए समाज के सपनों की गूंज है. साथ ही उन गीतों में मौजूदा शासक वर्ग के जनविरोधी, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक विरोधी चरित्र को भी उजागर किया जाता है. ये गीत साम्राज्यवाद, सामंतवाद और ब्राह्मणवाद के गठजोड़ को दिखाते हैं: चोर चीटर बैठे हैं भाई, होशियार-खबरदार, लड़ना है भाई ये तो लंबी लड़ाई है तथा दूसरे ऐसे ही दर्जनों गीत जनता के संघर्षों को आवाज देते हैं और उत्पीड़नकारी शासक वर्ग की असलियत को जनता के सामने उजागर करते हैं. हमें इसमें कोई भ्रम नहीं है कि कॉमरेड हेम अपने इन गीतों और जनता की जुझारू संस्कृति में अपने योगदान के कारण ही राज्य द्वारा निशाना बनाए गए हैं.
यह राज्य उन सभी आवाजों को कुचल देना चाहता है, जो लोकतंत्र और विकास के इसके बहरे कर देने वाले शोर से ऊपर उठ कर जनता तक पहुंचती हैं और बताती हैं कि उनको जो कुछ बताया-सुनाया जा रहा है वह झूठ का पुलिंदा है. यह उन सारी निगाहों को जेल की अंधेरी कोठरियों में कैद कर देना चाहता है, जो गहराई तक धंसे हुए इसके बदसूरत चेहरे को देखने की कोशिश करती हैं और अवाम की निगाहें बन जाती हैं. यह राज्य उन सारे दिमागों को अपने खरीदे हुए गुलामों में बदल देना चाहता है, जो जुल्म और नाइंसाफी के इस जाल को काट कर एक नई दुनिया का सपना देखने की काबिलियत रखते हैं. इससे इन्कार करने पर उनके सपनों पर पाबंदी लगा दी जाती है. पिछले दिनों में हमने देखा कि किस तरह महाराष्ट्र में सक्रिय राजनीतिक-सांस्कृतिक संगठन कबीर कला मंच के साथियों को कैद किया गया, विद्रोही पत्रिका के संपादक सुधीर ढवले, कलाकार अरुण फरेरा, जन गायक जीतन मरांडी और उत्पल बास्के को गिरफ्तार किया गया, लेखक-चिंतक कंवल भारती गिरफ्तार किए गए, सीमा आजाद और विश्वविजय को ढाई वर्षों तक जेल में रख गया, स्वीडेन के पत्रकार यान मिर्डल के भारत आने पर पाबंदी लगा दी गई और अमेरिकी पत्रकार डेविड बार्सामियन को भारत में उतरने नहीं दिया गया. इन कदमों से भारत का खौफजदा निजाम इस गलतफहमी में है कि वह जनता की हिमायत में उठने वाली आवाजों को खामोश कर सकता है. लेकिन एक निजाम तभी खौफजदा होता है जब जनता उसकी बुनियादें पहले ही खोखली कर चुकी होती है. संघर्षरत जनता के गीत, उसकी कविताएं, उसके नाटक इस निजाम की खोखली बुनियाद वाले किले की दीवारों पर दस्तक दे रहे हैं. चाहे तो वह अपने कान बंद कर सकता है, ये गीत कभी बंद नहीं होंगे. 
हम अपने प्यारे साथी हेम की फौरन बिना शर्त रिहाई की मांग करते हैं और यह भी मांग करते हैं कि उनके ऊपर लगाए गए फर्जी केसों को रद्द किया जाए.

Sunday, 25 August 2013

फासीवाद की धमक तेज हो रही है, मुखर प्रतिरोध के लिए एकजुट हों ! - जन संस्कृति मंच

                                                 प्रेस विज्ञप्ति


संस्कृति मंच गढ़चिरौली में जेएनयू के छात्र और संस्कृतिकर्मी हेम मिश्रा को गिरफ्तार कर पुलिस रिमांड पर लेने और पुणे में पुलिस की मौजूदगी में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा एफटीआईआइ्र्र के छात्रों पर हमले और हमले के बाद पुलिस द्वारा घायल छात्रों पर ही अनलॉफुल एक्टिविटी का आरोप लगा देने तथा बलात्कार के आरोपी आशाराम बापू की अब तक गिरफ्तारी न होने की कठोर शब्दों में निंदा करता है। जसम साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शोषण-उत्पीड़न-भेदभाव के खिलाफ लड़ने वाले तमाम वाम-लोकतांत्रिक संगठनों से अपील करता है कि सांप्रदायिक फासीवादी संगठनों, काले धन की सुरक्षा, यौनहिंसा व हत्या समेत तमाम किस्म के अपराधों में संलिप्त पाखंडी धर्मगुरुओं तथा उनकी गुंडागर्दी को शह देने वाली सरकारों और पुलिस तंत्र के खिलाफ पूरे देश में व्यापक स्तर प्रतिवाद संगठित करें।  

हे मिश्रा एक वामपंथी संस्कृतिकर्मी हैं। वे उन परिवर्तनकामी नौजवानों में से हैं, जो इस देश में जारी प्राकृतिक संसाधनों की लूट और भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहते हैं। रोहित जोशी के साथ मिलकर उन्होंने उत्तराखंड के संदर्भ में सत्ताधारी विकास मॉडल के विनाशकारी प्रभावों पर सवाल खड़े करने वाली फिल्म ‘इंद्रधनुष उदास है’ बनाई है। उत्तराखंड के भीषण त्रासदी से पहले बनाई गई यह फिल्म हेम मिश्रा के विचारों और चिंताओं की बानगी है। सूचना यह है कि वे पिछले माह नक्सल बताकर फर्जी मुठभेड़ में पुलिस द्वारा मार दी गई महिलाओं से संबंधित मामले के तथ्यों की जांच के लिए गए थे और पुलिस ने उन्हें नक्सलियों का संदेशवाहक बताकर गिरफ्तार कर लिया है। सवाल यह है कि क्या दुनिया का सबसे बड़े लोकतंत्र का दम भरने वाले इस देश में पुलिसिया आतंकराज ही चलेगा? क्या उनके आपराधिक कृत्य की जांच करने का अधिकार इस देश का संविधान नहीं देता?

पहली घटना नहीं है, जब कारपोरेट लूट, दमन-शोषण और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर होने वाले बुद्धिजीवियों और संस्कृतिकर्मियों को नक्सलियों का संदेशवाहक बताकर गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किया गया है? डॉ.विनायक सेन और कबीर कला मंच के कलाकारों पर लादे गए फर्जी मुकदमे इसका उदाहरण हैं। खासकर आदिवासी इलाकों में कारपोरेट और उनकी पालतू सरकारें निर्बाध लूट जारी रखने के लिए मानवाधिकार हनन का रिकार्ड बना रही हैं। सोनी सोरी, लिंगा कोडोपी, दयामनी बरला, जीतन मरांडी, अर्पणा मरांडी जैसे लोग पुलिस और न्याय व्यवस्था की क्रुरताओं के जीते जागते गवाह हैं। दूसरी ओर गैरआदिवासी इलाकों में भी पुलिस नागरिकों की आजादी और अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन कर रही है और अंधराष्ट्रवादी-सामंती-सांप्रदायिक गिरोहों को खुलकर तांडव मचाने की छूट दे रखी है। न केवल भाजपा शासित सरकारों की पुलिस ऐसा कर रही है, बल्कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की सरकारों की पुलिस भी इसी तरह का व्यवहार कर रही है। फेसबुक पर की गई टिप्पणी के लिए दलित मुक्ति के विचारों के लिए चर्चित लेखक कंवल भारती पर सपा सरकार का रवैया इसी का नमूना है।




संपरिवार, भाजपा, कांग्रेस और उनके सहयोगी दल जिस तरह की बर्बर प्रतिक्रियावादी प्रवृत्तियों और धुव्रीकरण को समाज में बढ़ावा दे रहे हैं, उसके परिणाम बेहद खतरनाक होंगे। विगत 20 अगस्त को मशहूर अंधविश्वास-विरोधी, तर्कनिष्ठ और विवेकवादी आंदोलनकर्ता डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की नृशंस हत्या को अंजाम देने वाले हों या डॉ.दाभोलकर की याद में आयोजित कार्यक्रम में एफटीआईआई के छात्रों द्वारा आनंद पटवर्धन की फिल्म ‘जय भीम कामरेड’ के प्रदर्शन और कबीर कला मंच के कलाकारों की प्रस्तुति के बाद आयोजकों पर नक्सलवादी आरोप लगाकर हमला करने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता, जो उनसे नरेंद्र मोदी की जय बोलने को कह रहे थे, सख्त कानूनी कार्रवाई तो इनके खिलाफ होना चाहिए। लेकिन पुलिस ने उल्टे घायल छात्रों पर ही अनलाफुल एक्टिविटी का आरोप लगा दिया है। ठीक इसी तरह अंधआस्था और श्रद्धा की आड़ में बच्चों और बच्चियों को शिकार बनाने वाले आशाराम बापू जैसे भेडि़ये को अविलंब कठोर सजा मिलनी चाहिए, लेकिन वह अभी भी मीडिया पर आकर अपने दंभ का प्रदर्शन कर रहा है। 

मुंबई में महिला फोटोग्राफर के साथ हुए गैंगरेप ने साबित कर दिया है कि सरकारें और उनकी पुलिस स्त्रियों को सुरक्षित माहौल देने में विफल रही हैं, जहां अमीर और ताकतवर बलात्कारी जल्दी गिरफ्तार भी न किए जाएं और महिलाओं के जर्बदस्त आंदोलन के बाद भी पुलिस अभी भी बलात्कार और यौनहिंसा के मामलों में प्राथमिकी तक दर्ज करने में आनाकानी करती हो और अभी भी राजनेता बलत्कृत को उपदेश देने से बाज नहीं आ रहे हों, वहां तो बलात्कारियों का मनोबल बढ़ेगा ही। मुंबई समेत देश भर में इस तरह घटनाएं बदस्तुर जारी हैं। 

संस्कृति मंच का मानना है कि हेम मिश्रा को तत्काल बिना शर्त छोड़ा जाना चाहिए और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। छात्र भेषधारी जिन सांप्रदायिक गुंडों ने एफटीआईआई के छात्रों पर हमला किया है और जो पुलिसकर्मी उनका साथ दे रहे हैं, उनके खिलाफ अविलंब सख्त कार्रवाई करनी चाहिए तथा आशाराम बापू को तुरत गिरफ्तार करके उनके तमाम आपराधिक कृत्यों के लिए उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। जसम की यह भी मांग है कि महिलाएं जिन संस्थानों के लिए खतरा झेलकर काम करती हैं, उन संस्थानों को उनकी काम करने की स्वतंत्रता और सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.



 सुधीर सुमन द्वारा जन संस्कृति मंच की ओर से जारी

Condemn the arrest of Comrade Hem on fake charges by the Maharashtra police!

Resist the ongoing witch-hunt of students, intellectuals and activists who dare to stand up against systemic injustice, oppression and state repression! 

Immediately & Unconditionally release Hem who was on his way for medical treatment!


Democratic Students’ Union condemns in strongest possible terms the arbitrary arrest of Hem Mishra, one of our activists by the Maharshtra Police. Hem Mishra is from Almora, Uttarakhand. He is the son of K.D Mishra, a retired school teacher. Hem has done his diploma in Mass communication and B.Sc in Mathematics from Uttarakhand. In 2009 he joined BA programme in Center for Chinese Studies, in School of Language Literature and Cultural Studies. He is also a prominent cultural activist and singer. He is active in Democratic Students’ Union and Revolutionary Cultural Front. He is also an executive member of Committee for Release of Political Prisoners (CRPP). He is well known among the political circles in Delhi and Uttarakhand as a student and cultural activist.
Hem has been struggling over the years with certain physical challenges in his left hand. He has undergone repeated surgery and the ensuing complications left him in agonizing pain. He has had to undergo two rounds of expensive operations in the recent past from Vellore. He had on several occasions shared his wish to pay a visit to Prakash Amte’s People’s hospital in Bhamaragarh to enquire about the possibility of free treatment therein. Early this week he had left from Delhi with the same purpose and was picked up by the notorious Maharashtra police somewhere in Maharashtra on his way to the hospital.

It was on the 24th of August that the police finally admitted his arrest and said he has been sent to Police custody for 10 days. Hem is well known in Delhi and Uttarakhand as a mass activist. Yet the police are trying to frame him with bogus charges like, he is a ‘prominent Naxal courier!!’ Hem has played a major role in exposing as well as countering the anti-people designs of the state through songs, poetry, plays and street theaters in the capacity of a cultural activist lending his voice to that of the oppressed.

He, as part of an organized politics, shares the vision for a radical social transformation of the society towards a new democratic society and a new democratic culture – free of oppression, injustice and inequality. His arrest therefore doesn't come as a shock. The state right now is in a spree to clamp down on students and democratic rights activists and trying to stifle voices of dissent. We strongly condemn this witch-hunt of activists. We must unitedly and resolutely fight the fascist designs of the state and its targeting of political activists.

His arrest is in continuation of the ongoing clamp down on democratic rights activists that Hem has been framed with such false charges. We are witness to similar framing of Jayeeta Das a student and woman activist of Matangini Mahila Samity, the hounding and framing of Kabir Kala Manch activists and similar witch hunting of other democratic rights and cultural activists. We condemn this arbitrary arrest and demand his immediate and unconditional release.
---- DEMOCRATIC STUDENTS’UNION
Contact: dsuatjnu@gmail.com, 09711826861

Saturday, 24 August 2013

CRPP Statement on arrest of JNU student Hem Mishra

COMMITTEE FOR THE RELEASE OF POLITICAL PRISONERS
185/3, FOURTH FLOOR, ZAKIR NAGAR, NEW DELHI-110025
24/08/2013
Condemn the Arrest of Student and Cultural Activist Hem Mishra
by the Maharashtra Police!
Release Hem Mishra Unconditionally!
It was on the evening of 23rd August that we at the CRPP received a call from a common friend about the alleged arrest of Mr. Hem Mishra, a JNUite and cultural activist. It was disclosed from an anonymous number to Mr. Shamsher Singh Bisht that Hem Mishra has been arrested by the Gadchiroli police. Mr. Shamsher Singh Bisht was told by the caller to inform Hem’s family. Apart from this there was no information as to where he was arrested and in which police station he was kept.
After a whole day’s effort through lawyers and journalist friends finally in the evening of the 24th the DIG Rajendra Kadam admitted to the media that Hem Mishra was arrested on the 23rd morning and was produced before the court on the 24th evening to be remanded to police custody for 10 days. All these looks clean. But when one digs deeper it is evident that Hem Mishra has been incommunicado for the last four days or so. It is again self explanatory that he has been picked up much earlier by the Maharashtra police and has shown the arrest only on the 23rd to fit to the rule book. The possibility of Hem being tortured in these days cannot be ruled out given the track record of the police. While his friends and lawyers were trying to trace down the whereabouts of Hem, the local media was abuzz with the arrest of a Maoist/Naxalite with two alleged couriers of a certain Narmada, a Maoist leader. Except a few diligent journalists the media was taken in by the sensational news provided by the police. As usual the police officials were soon to tell the media, once they admitted his arrest, that they got incriminating stuff from Hem. But beyond that hyperbole of a statement the same officials kept mum on what this incriminating material that they had seized from him! The police further claims Hem to be a courier for the Maoists from Uttarakhand! And further to add meat to the story they claim that he was arrested at a very sensitive place between Aheri and Etapally which is a stronghold of the Maoists. Anyone who is conversant with the modus operandi of the police in these regions or for that matter anywhere given their illustrious record of impunity will vouch that the arrest has happened somewhere else and it has been shown in this region deliberately.
Given the sensation driven reporting in a sizeable section of the media the natural curiosity is that why Hem Mishra has in the first place been to this area? Anyone who knows Hem Mishra—as testified by his friends—recalls a person sensitive to the issues confronting the adivasis of Central and Eastern India as well as someone who would find himself on the side of the masses of the people. A cultural activist he has been active in JNU and outside singing for the cause of the adivasis, against Operation Green Hunt, against the increasing instances of impunity of the state. He has been active in the student politics on JNU campus and elsewhere as an activist of the Democratic Student’s Union. As an executive member, Hem Mishra has also been part of the efforts of the CRPP to provide legal aid and in the larger campaign for the release of the political prisoners.
Given his sensitivity to people’s issues, Hem has been an avid traveller often venturing into different regions of the subcontinent that normally don’t attract others. He has also been part of several fact finding missions to record the plight of the people under the scourge of the fascist violence of the state and other private business interests out to loot and plunder the land and resources of the people. He was very impressed with the work undertaken by Dr. Prakash Amte and his family in Gadchiroli and had often expressed his wish to visit the place. Perhaps he also had this wish to look for some alternate means of medication for the persisting pain in his left hand after two complicated surgeries, albeit huge financial difficulties, to get some relief for a physical disability. The arrest and then framing up of Hem Mishra is a tell tale case of any person in the subcontinent to find himself/herself at a potentially “sensitive” place to be incriminated by the security/intelligence agencies as per their whims. And it is difficult for any other common sense to prevail where one can still refuse to accept the hysteria and frenzy of the ideology of the so-called ‘war against terror’ and believe with conviction that a person can still go to these places and s/he has their right to not be incriminated or harassed. The lawlessness of the law in these regions comes out in the ugliest fashion when someone from the urban centre gets framed by the security agencies. Otherwise the everyday life of the people in these regions has several such untold stories to tell, abound with miseries.
The arrest and framing of Hem Mishra is a step further from the security forces/intelligence agencies to further trample on the rights of the people who have been raising their voices against the worst kinds of miseries they have been subjected to by the state and its forces in the name of growth and development. Perhaps Gadchiroli is the only district which is administered by no less than 40 plus IAS/IPS officers. All claims of the state to bring the government and the administration to the people have only resulted in more and more arrests, intimidation, torture, rape and loot. The arrest of Hem shown at such a “sensitive” area where the atrocities of the state on the people are the maximum is also an indicator of things to come. Anyone who raises their voice in support of the people in these regions will also be subjected to the same treatment. Only a massive mobilisation of public opinion against such vindictive and incriminating conduct of the state can push back this grand design of the Indian State to build a Garrison State.
We strongly demand the unconditional release of Hem Mishra.
In Solidarity,
SAR Geelani
President
Amit Bhattacharyya
Secretary General
Rona Wilson

Secretary, Public Relations  

जेएनयु छात्र हेम मिश्रा की गिरफ़्तारी के विरोध में..

Condemn arrest of Hem Mishra, a JNU student and a cultural activist by Maharashtra Police





हाथ में एक डफली, और झोले में जनगीतों की किताब।गिरदा से लेकर बल्ली सिंह चीमा तक शलभ श्रीराम से लेकर गदर के जनगीतों को गाने वाला हेम मिश्रा,मजदूर,किसानों के आदोंलनों में खड़ा होने वाला हेम,लाखों करोड़ो मेहनतकशों के खून से दमकते सुर्ख झंडे को आसमान में ऊंचा उड़ते देखने का ख्वाब देखने वाला हेम,इस खून पीने वाले तंत्र के लिए वाकई खतरनाक है।
समझदार लोग तो यही कहेंगे- “दिमाग खराब था इसका ?जे एन यू में चुपचाप पढ़ता, कैरियर बनाता! अरे जाना ही था तो हरिद्वार जाता,काशी जाता,अयोध्या 84कोसी परिक्रमा करने जाता।अब महाराष्ट्र के संघर्षों की तपती धरती गढ़चिरोली में क्यूं गया?
जहाँ पे लफ़्जे अमन एक खौफनाक राज हो,
जहाँ कबूतरों का सरपरस्त एक बाज हो।
उन्हीं की सरहदों में कैद हैं हमारी बोलियाँ,
वही हमारी थाल पर परस रहे हैं गोलियाँ।

साथी हेम की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए।
-
दीप पाठक

 


“यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना ज़मीर होना ज़िंदगी के लिए शर्त बन जाए
आँख की पुतली में हाँ के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।”कल Hem Mishra की गिरफ़्तारी की खबर सुनकर पाश की यही पंक्तियाँ याद आईं। अगर सरकार को हेम जैसे लोगों से खतरा है तो हमें यह कहने से नहीं डरना चाहिए कि सरकार हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। ऐसा हमारे प्रजातंत्र में ही हो सकता है कि तमाम कुकर्म करने वाला आसाराम आज़ाद घूमता है और जनता के अधिकारों के लिए आंदोलन कर रहे लोगों को जेल में तमाम कष्टों का सामना करना पड़ता है। बलात्कारियों को हर किस्म की सुविधा देने वाले  प्रजातंत्र में जिस घुटन का एहसास हो सकता है उसी घुटन के साथ मैं यहाँ अपनी बात लिख रहा हूँ। मैं इस बात को ध्यान में रखते हुए आपसे हेम को बचाने की अपील कर रहा हूँ कि संसद पर जिन करोड़पतियों का कब्ज़ा हो गया है उन्होंने हम सभी को अपने-अपने घर में ही कैदी बना रखा है। लेकिन जेल की यातना की बात अलग होती है। समाज की भलाई के लिए तमाम कष्ट सहने वाले लोगों को ऐसी यातना से गुज़रते देखना अंदर तक उदास कर देने वाला अनुभव होता है।

-सुयश सुप्रभ 




हेम मिश्रा को पुलिस ने पकड़ लिया .
आप अगर आदिवासी इलाके में जायेंगे तो आप भी पकड़े जा सकते हैं .
आखिर आदिवासी इलाके में जाना क्यों खतरनाक है ?
क्योंकि आदिवासी इलाके में नक्सलवादी रहते हैं .
और हो सकता है आप आदिवासी इलाके में जाकर नक्सलवादियों को कोई मदद पहुंचा दें .
यूँ तो मुंबई में भी भाई लोग रहते हैं लेकिन मुंबई जाना तो मना नहीं है ?
इसलिये सच्चाई यह नहीं है कि नक्सलियों के कारण आपके लिये आदिवासियों के इलाके में जाना खतरनाक बात है .
असल में सरकार चाहती ही नहीं है कि आदिवासी इलाके में कोई जाकर सच्चाई की छानबीन करे .
इसलिये सरकार सच बोलने पर बिनायक सेन को जेल में डाल देती है , जीतेन मरांडी ,अपर्णा मरांडी , आरती मांझी , सोनी सोरी , लिंगा कोडोपी , दयामनी बरला, कोपा कुंजाम , सुखनाथ ,कर्तम जोगा और हजारों दूसरे लोगों को जेल में डाल देती है .ताकि जुबान खोलने वाले लोग डर कर चुप रहें .
सरकार आदिवासी इलाके की किस सच्चाई को छिपाना चाहती है .
क्या सच में आप नहीं जानते ?
क्या आपको नहीं पता कि आज हमारे सुरक्षा बलों के सबसे ज़्यादा सैनिक कहाँ गये हुए हैं और क्या कर रहे हैं ?
हमारे सैनिक आदिवासी इलाकों में भेज दिये गये हैं .
आदिवासी इलाकों में हमारे सैनिक क्यों भेज दिये गये हैं ?
हमारे सैनिक आदिवासी इलाकों में क्या कर रहे हैं ?
अगर आपने आज तक यह नहीं जानने की कोशिश ही नहीं करी
तो अब पूछना शुरू कीजिये .
अरे आपके सैनिक इस देश के ही लोगों के गाँव जला रहे हैं
और आप कह्ते हैं आपको पता नहीं है ?
खैर आप इस सबको शायद बदलना नहीं चाहते
लेकिन कुछ लोग इस सब को बर्दाश्त नहीं कर पाते
वो आपसे ज्यादा देशभक्त होते हैं
वो आपसे ज़्यादा धार्मिक होते हैं
इसलिये वो दूसरों के कष्टों से विचलित हो जाते हैं
इसलिये वो इन अपने देश के आदिवासियों की हालत जानने के लिये जाते हैं
और आपकी पुलिस उन्हें जेल में डाल देती है
पर वो फिर भी जाते रहेंगे
अगर आप जैसे लोग इस समाज में हैं
तो उन जैसे भी होते रहेंगे
हेम मिश्रा आदिवासी इलाके में गया
उसे आपकी पुलिस ने जेल में डाल दिया
ये मेरी पुलिस नहीं है
ये आदिवासी की पुलिस नहीं है
ये देशभक्त पुलिस नहीं है
ये भ्रष्ट नेताओं की गुलाम पुलिस है

मैं हेम मिश्रा की गिरफ्तारी का विरोध करूँगा .

- हिमांशु कुमार