Saturday, 24 August 2013

जेएनयु छात्र हेम मिश्रा की गिरफ़्तारी के विरोध में..

Condemn arrest of Hem Mishra, a JNU student and a cultural activist by Maharashtra Police





हाथ में एक डफली, और झोले में जनगीतों की किताब।गिरदा से लेकर बल्ली सिंह चीमा तक शलभ श्रीराम से लेकर गदर के जनगीतों को गाने वाला हेम मिश्रा,मजदूर,किसानों के आदोंलनों में खड़ा होने वाला हेम,लाखों करोड़ो मेहनतकशों के खून से दमकते सुर्ख झंडे को आसमान में ऊंचा उड़ते देखने का ख्वाब देखने वाला हेम,इस खून पीने वाले तंत्र के लिए वाकई खतरनाक है।
समझदार लोग तो यही कहेंगे- “दिमाग खराब था इसका ?जे एन यू में चुपचाप पढ़ता, कैरियर बनाता! अरे जाना ही था तो हरिद्वार जाता,काशी जाता,अयोध्या 84कोसी परिक्रमा करने जाता।अब महाराष्ट्र के संघर्षों की तपती धरती गढ़चिरोली में क्यूं गया?
जहाँ पे लफ़्जे अमन एक खौफनाक राज हो,
जहाँ कबूतरों का सरपरस्त एक बाज हो।
उन्हीं की सरहदों में कैद हैं हमारी बोलियाँ,
वही हमारी थाल पर परस रहे हैं गोलियाँ।

साथी हेम की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए।
-
दीप पाठक

 


“यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना ज़मीर होना ज़िंदगी के लिए शर्त बन जाए
आँख की पुतली में हाँ के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।”कल Hem Mishra की गिरफ़्तारी की खबर सुनकर पाश की यही पंक्तियाँ याद आईं। अगर सरकार को हेम जैसे लोगों से खतरा है तो हमें यह कहने से नहीं डरना चाहिए कि सरकार हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। ऐसा हमारे प्रजातंत्र में ही हो सकता है कि तमाम कुकर्म करने वाला आसाराम आज़ाद घूमता है और जनता के अधिकारों के लिए आंदोलन कर रहे लोगों को जेल में तमाम कष्टों का सामना करना पड़ता है। बलात्कारियों को हर किस्म की सुविधा देने वाले  प्रजातंत्र में जिस घुटन का एहसास हो सकता है उसी घुटन के साथ मैं यहाँ अपनी बात लिख रहा हूँ। मैं इस बात को ध्यान में रखते हुए आपसे हेम को बचाने की अपील कर रहा हूँ कि संसद पर जिन करोड़पतियों का कब्ज़ा हो गया है उन्होंने हम सभी को अपने-अपने घर में ही कैदी बना रखा है। लेकिन जेल की यातना की बात अलग होती है। समाज की भलाई के लिए तमाम कष्ट सहने वाले लोगों को ऐसी यातना से गुज़रते देखना अंदर तक उदास कर देने वाला अनुभव होता है।

-सुयश सुप्रभ 




हेम मिश्रा को पुलिस ने पकड़ लिया .
आप अगर आदिवासी इलाके में जायेंगे तो आप भी पकड़े जा सकते हैं .
आखिर आदिवासी इलाके में जाना क्यों खतरनाक है ?
क्योंकि आदिवासी इलाके में नक्सलवादी रहते हैं .
और हो सकता है आप आदिवासी इलाके में जाकर नक्सलवादियों को कोई मदद पहुंचा दें .
यूँ तो मुंबई में भी भाई लोग रहते हैं लेकिन मुंबई जाना तो मना नहीं है ?
इसलिये सच्चाई यह नहीं है कि नक्सलियों के कारण आपके लिये आदिवासियों के इलाके में जाना खतरनाक बात है .
असल में सरकार चाहती ही नहीं है कि आदिवासी इलाके में कोई जाकर सच्चाई की छानबीन करे .
इसलिये सरकार सच बोलने पर बिनायक सेन को जेल में डाल देती है , जीतेन मरांडी ,अपर्णा मरांडी , आरती मांझी , सोनी सोरी , लिंगा कोडोपी , दयामनी बरला, कोपा कुंजाम , सुखनाथ ,कर्तम जोगा और हजारों दूसरे लोगों को जेल में डाल देती है .ताकि जुबान खोलने वाले लोग डर कर चुप रहें .
सरकार आदिवासी इलाके की किस सच्चाई को छिपाना चाहती है .
क्या सच में आप नहीं जानते ?
क्या आपको नहीं पता कि आज हमारे सुरक्षा बलों के सबसे ज़्यादा सैनिक कहाँ गये हुए हैं और क्या कर रहे हैं ?
हमारे सैनिक आदिवासी इलाकों में भेज दिये गये हैं .
आदिवासी इलाकों में हमारे सैनिक क्यों भेज दिये गये हैं ?
हमारे सैनिक आदिवासी इलाकों में क्या कर रहे हैं ?
अगर आपने आज तक यह नहीं जानने की कोशिश ही नहीं करी
तो अब पूछना शुरू कीजिये .
अरे आपके सैनिक इस देश के ही लोगों के गाँव जला रहे हैं
और आप कह्ते हैं आपको पता नहीं है ?
खैर आप इस सबको शायद बदलना नहीं चाहते
लेकिन कुछ लोग इस सब को बर्दाश्त नहीं कर पाते
वो आपसे ज्यादा देशभक्त होते हैं
वो आपसे ज़्यादा धार्मिक होते हैं
इसलिये वो दूसरों के कष्टों से विचलित हो जाते हैं
इसलिये वो इन अपने देश के आदिवासियों की हालत जानने के लिये जाते हैं
और आपकी पुलिस उन्हें जेल में डाल देती है
पर वो फिर भी जाते रहेंगे
अगर आप जैसे लोग इस समाज में हैं
तो उन जैसे भी होते रहेंगे
हेम मिश्रा आदिवासी इलाके में गया
उसे आपकी पुलिस ने जेल में डाल दिया
ये मेरी पुलिस नहीं है
ये आदिवासी की पुलिस नहीं है
ये देशभक्त पुलिस नहीं है
ये भ्रष्ट नेताओं की गुलाम पुलिस है

मैं हेम मिश्रा की गिरफ्तारी का विरोध करूँगा .

- हिमांशु कुमार

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