Friday, 13 September 2013

उत्तराखंड पुर्ननिर्माण : 21 व 22 सितम्बर-2013 सम्मेलन



विगत कई वर्षों से आपदा की संभावनाएं बहुत तेजी से बढती रही है और आपदा के स्वरुप को देख कर आपदा को महा आपदा की संज्ञा में परिभाषित होने में भी देरी नहीं लगी है I सन 2010 में बाढ़ का कोहराम मचा, 2011 में थोडा सामान्य, 2012 के अगस्त के महीने में उत्तरकाशी, व ऊखीमठ में आये आपदा एक बड़ा स्वरुप देखने को मिला I लेकिन 2013 के जून के महीने में हुए प्रलयंकारी तांडव ने इन सब आंकड़ों को पीछे छोड़ दिया है व अभी तक आपदा का सिलसिला जारी है I

मूलत: कुछ वर्ष पहले तक आपदा को हम प्राकृतिक क्रिया की संज्ञा व उसके साथ जोड़ते थे और उनकी आने की संभावनाएं सालों में एक आध बार आती थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जब से मानव व सरकार द्वारा विकास का एक कमर्शियल मॉडल जहाँ प्रकृति को ताक में रखकर उसकी लूट-खसोट कर अपना विकास का निर्माण किया जा सके, तबसे आपदा तकरीबन हर साल आ रही है व आपदा की संज्ञा में बदलाव भी आता रहा है I आपदाओं की श्रंखला में इस साल आयी या हुई महा आपदा एक बहुत बड़ा उदाहरण है जहाँ इसे प्राकृतिक आपदा न कह कर मानव जडित आपदा कहा जा रहा है I बड़े- बड़े बाँध या जल विद्युत् परियोजना, बेतहाशा खनन, बड़े- बड़े अवेध ढंग से बनाये गए होटल (पहाड़ो के विपरीत), सड़क निर्माण, डंपिंग जोन और नंगे पहाड़, इत्यादि ऐसी आपदाओं के मुख्य कारण है I यह सब जो विकास के तथाकथित हथियार है उस विकास के मॉडल पर आज के हालात सवालिया निशान खड़े करते हैं जो पहाड़ की संस्कृती व सभ्यता के खिलाफ के साथ – साथ हिमालय राज्य के विपरीत भी हैं अत: यह आपदा मानव जडित आपदा की संज्ञा पाता है I

स विकास के मॉडल को लेके अनेक संघठनो ने अपने स्तर पर समय समय पर आन्दोलन किया है लेकिन सरकार व कॉर्पोरेट का नेक्सस जो है वो इतना हावी व प्रभावशाली है की इन छोटे आंदोलनों से उसको भेदना मुमकिन नहीं और ना ही ऐसे आंदोलनों के सामर्थ्य में है, अत: जिस प्रकार 16 जून के आपदा के बाद विभिन्न राज्यों के दवाब में राज्य सरकार ने अपनी सक्रियता दिखाने की कोशिश की और राज्यों की मदद से पीड़ित लोगों को यथास्थान पहुंचाया गया था उसी प्रकार सारे जन संघठन , सामाजिक कार्यकर्ता, जन सरोकारों से जुड़े लोग, इत्यादि एक दिशा तय करें और यह परम आवश्यक है I उत्तराखंड पुनर्निर्माण को लेके सरकार की जद्दो जहद में कहीं दोबारा कॉर्पोरेट हावी न हो इसी सिलसिले में श्रीनगर में २१ व २२ सितम्बर को दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया है, अत: आप सभी लोगों को आमंत्रण के साथ – साथ हिमालय व पर्वतीय राज्य की अस्तित्व की रक्षा के लिए आपकी उपस्तिथि अनिवार्य है I
सम्मेलन में स्थानीय व आपदा पीड़ित इलाके की पीड़ा को सुना व समझा जाएगा तत्पस्च्यात एक सामूहिक प्रयास व जन संघर्ष के लिए निति बनाई जायेगी I
 
आयोजक:

हिमालय बचाओ आन्दोलन, पहाड़, नैनीताल समाचार
दिनांक- 21-22 Sep. 2013
स्थान- हेप्रेक, हे.न.ब. गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर, गढ़वाल.
समय- 9:00 AM

निवेदक :

समीर रतूड़ी, (9536010510)
सदस्य : हिमालय बचाओ आन्दोलन
राजीव लोचन साह, (9458160523)
संपादक : नैनीताल समाचार
शेखर पाठक, (9412085775)
वरिष्ठ इतिहासकार
अरण्य रंजन (9412964003)
सदस्य: हिमालय बचाओ आन्दोलन
संपर्क सूत्र/ पत्र व्यवहार  : श्रीयंत्र टापू रिसोर्ट, निकट D.G.B.R. कैंप, कीर्तिनगर - श्रीनगर मार्ग, श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड - 246174

 समीर रतूड़ी, संयोजक-हिमालय बचाओ आन्दोलन द्वारा जारी. 

No comments:

Post a Comment