राहुल
गंभीरता से नये रोड मैप को चुनावों के ऐन पहले सामने लाकर एक बड़ा धमाका
करना चाहता था ताकि इस खबर के धमाके से पैदा हुई लहर पर सवार उसकी और उसके
दल की कशती ना सिर्फ पार हो जाय बल्कि तट के बाद भी दूर तक सूखी जमीन पर
घिसटती हुई जाय ताकि जल थल पर ये चमत्कार जनता देखे और अभिभूत हो जाय!
कटरीना की बाडी फिटनेस यहाँ और दुरुस्त हो गयी और गोरापन बढ़ गया और रीठे से धोते धोते बाल सुनहरे हो गये इस बदलाव व सादगी ने उसके दिमाग में कई नये विचार दिये उसने कई जेनुइन विषयों पर खुद स्टोरी स्क्रिप्ट लिखनी थीं जो बाद मेँ कटरीना को एक सफल लेखिका और इंटैलैक्टुल अभिनेत्री की नयी ख्याति दिलाने वाली थीँ और कला फिल्मों की एक अमर तारिका के रुप में उसे सालों साल चित्रपट पर अमर करने वाली थीं।
खड़कुआ जैसा गंभीर और सौम्य सब्जी वाला किसी भी बड़बोले चाय वाले से एक बेहतर पी एम साबित होता राहुल की ये अति आम जन को तराश कर संगठन में आगे बढ़ाकर देश की बागडोर संभालने लायक बना देना राहुल को त्यागी तपस्वी बाबा बना देने के लिए काफी था।एक अति पिछड़े जंगल के बीच बसे गाँव के अनपढ़ युवक को पी एम के लायक बना देना राहुल की काबिलियत और त्याग को गुणात्मक रुप से बढ़ाता और कजरीवाला मफलरिया की लहर को रोकने का बेहद कारगर तरीका बनने वाला था भारतीय राजनीति में ऐसा युगपुरुष जो भगवा सफेद को मीलों पीछे छोड़कर अमर नायक राष्ट्रयुवा बनकर अमर हो जाता।
इधर वो भचकती आँख वाला कपटी साधु रात के दो बजे जाग गया और अपनी चिलम- चिमटा लेकर बदन पे भभूत मलकर तैयार हुआ उसे खड़कुआ के गाँव की रेकी करनी थी। उसने अपने झोले में एक डमरु भी रख लिया ताकि जंगल की सुनसान राह पर बजाता चले और जानवर भाग जायें।कपटी साधु कि योजना थी कि सबेरे-सबेरे वो खड़कुआ के घर पहुँचकर उसे चौंका दे।सो उसने खड़कुआ के गाँव का रास्ता पकड़ा पूरे चांद की जुनली रात थी और गांजे की चिलम की मंद प्रमुदित लहर का असर था कपटी साधु लपालप खड़कुआ के गांव को चला जा रहा था।
इस जंगल में साबू और दाबू नाम के दो जिज्ञासु भालू रहते थे साबू और दाबू में खड़कुआ की सब्जियों कंद मूल फल चुराकर खाने को लेकर कई बार लड़ाई हो चुकी थी क्योंकि खड़कुवा के कुत्ते उनको खेतों से खदेड़ देते उनका मूड खराब हो जाता तब वे आपस मेँ लड़कर खार मिटाते फिर जाकर झाड़ियों में सो जाते।
आज भी साबू और दाबू का मूड आफ था खड़कुआ के कुत्तों ने उनको सब्जी के खेतों से भगाया था वे फिर इधर उधर से जिमीकंद खोद खाकर गाँव के बाहर झाड़ियों में सोये थे इस बीच चरस गांजे की लहर पर सवार भचकती आँख वाला कपटी साधु गाँव के पास पहुँचने ही वाला था सो उसने नारा लगाया-"काला सोना,काला धन,स्विस बैंक टनाटन,बम भोले तेरी माया, जब तक मिला हराम का खाया!"अलख निरंजन!इस आवाज से साबू और दाबू की नींद खराब हो गयी और आलरेडी वे चिढ़े हुए भी थे तो जिज्ञासावश कपटी साधु के आगे साबू आ गया मारे डर के वो कपटी पीछे कदम खींचता तो पीछे दाबू खड़ा था! मारे डर के कपटी साधु की आँख भचकनी बंद हो गयी क्या करे? भालू झपटने काटने को बड़े आते थे उसने डमरु बजाना शुरु कर दिया साबू दाबू रुक गये वे संगीत प्रेमी भालू थे डमरु की आवाज पर डांस करने लगे अब कपटी साधु की आफत डमरु बजाना रोके तो भालू काटने दौड़ते डमरु बजाये तो नाचने लगते, तो घंटों बीत गये लगातार डमरु बजता रहा दोनों भालू आनंदित होकर नाचते रहे। कोई दस बजे जब अपने खच्चर पर सब्जियां लादकर खड़कुआ बाजार को जा रहा था तब उसने भालू देखे डमरु की आवाज सुनी तो खड़कुआ ने भालू भगा दिये तब जा के कपटी साधु की जान में जान आयी। कपटी साधु का डमरु बजा बजा के हाथ सूज गया था।खड़कुआ ने साधु को बिठाया होंसला दिया और कहा कि "महाराज अब भालू नी आयेँगे आप मील भर आगे जाकर मेरे घर जाओ वहां आराम करो मैं बाजार से सब्जी बेचकर शाम तक लौट आउंगा" राहुल और कटरीना के बारे में खड़कुआ ने बात छिपा ली। पर कपटी साधु ने तौबा की वो बोला- "ना भाई मैं तो वापस बाजार जाउंगा तुम्हारे साथ में!" कपटी साधु लौट चला और खड़कुआ को लाख धन्यवाद दिया।और मन ही मन कभी खड़कुआ के गाँव न आने की कसम खायी..
उधर कटरीना को रणवीर और सलमान को अपनी कुशलता का पत्र भेजने का एक नायाब तरीका सूझा कि खत भी पहुंच जाये और उसका ठिकाना भी किसी को पता न चले...
तो कटरीना ने कैसे भेजा खत? अगले भाग में पता चलेगा प्रतीक्षा करें।
कटरीना की बाडी फिटनेस यहाँ और दुरुस्त हो गयी और गोरापन बढ़ गया और रीठे से धोते धोते बाल सुनहरे हो गये इस बदलाव व सादगी ने उसके दिमाग में कई नये विचार दिये उसने कई जेनुइन विषयों पर खुद स्टोरी स्क्रिप्ट लिखनी थीं जो बाद मेँ कटरीना को एक सफल लेखिका और इंटैलैक्टुल अभिनेत्री की नयी ख्याति दिलाने वाली थीँ और कला फिल्मों की एक अमर तारिका के रुप में उसे सालों साल चित्रपट पर अमर करने वाली थीं।
खड़कुआ जैसा गंभीर और सौम्य सब्जी वाला किसी भी बड़बोले चाय वाले से एक बेहतर पी एम साबित होता राहुल की ये अति आम जन को तराश कर संगठन में आगे बढ़ाकर देश की बागडोर संभालने लायक बना देना राहुल को त्यागी तपस्वी बाबा बना देने के लिए काफी था।एक अति पिछड़े जंगल के बीच बसे गाँव के अनपढ़ युवक को पी एम के लायक बना देना राहुल की काबिलियत और त्याग को गुणात्मक रुप से बढ़ाता और कजरीवाला मफलरिया की लहर को रोकने का बेहद कारगर तरीका बनने वाला था भारतीय राजनीति में ऐसा युगपुरुष जो भगवा सफेद को मीलों पीछे छोड़कर अमर नायक राष्ट्रयुवा बनकर अमर हो जाता।
इधर वो भचकती आँख वाला कपटी साधु रात के दो बजे जाग गया और अपनी चिलम- चिमटा लेकर बदन पे भभूत मलकर तैयार हुआ उसे खड़कुआ के गाँव की रेकी करनी थी। उसने अपने झोले में एक डमरु भी रख लिया ताकि जंगल की सुनसान राह पर बजाता चले और जानवर भाग जायें।कपटी साधु कि योजना थी कि सबेरे-सबेरे वो खड़कुआ के घर पहुँचकर उसे चौंका दे।सो उसने खड़कुआ के गाँव का रास्ता पकड़ा पूरे चांद की जुनली रात थी और गांजे की चिलम की मंद प्रमुदित लहर का असर था कपटी साधु लपालप खड़कुआ के गांव को चला जा रहा था।
इस जंगल में साबू और दाबू नाम के दो जिज्ञासु भालू रहते थे साबू और दाबू में खड़कुआ की सब्जियों कंद मूल फल चुराकर खाने को लेकर कई बार लड़ाई हो चुकी थी क्योंकि खड़कुवा के कुत्ते उनको खेतों से खदेड़ देते उनका मूड खराब हो जाता तब वे आपस मेँ लड़कर खार मिटाते फिर जाकर झाड़ियों में सो जाते।
आज भी साबू और दाबू का मूड आफ था खड़कुआ के कुत्तों ने उनको सब्जी के खेतों से भगाया था वे फिर इधर उधर से जिमीकंद खोद खाकर गाँव के बाहर झाड़ियों में सोये थे इस बीच चरस गांजे की लहर पर सवार भचकती आँख वाला कपटी साधु गाँव के पास पहुँचने ही वाला था सो उसने नारा लगाया-"काला सोना,काला धन,स्विस बैंक टनाटन,बम भोले तेरी माया, जब तक मिला हराम का खाया!"अलख निरंजन!इस आवाज से साबू और दाबू की नींद खराब हो गयी और आलरेडी वे चिढ़े हुए भी थे तो जिज्ञासावश कपटी साधु के आगे साबू आ गया मारे डर के वो कपटी पीछे कदम खींचता तो पीछे दाबू खड़ा था! मारे डर के कपटी साधु की आँख भचकनी बंद हो गयी क्या करे? भालू झपटने काटने को बड़े आते थे उसने डमरु बजाना शुरु कर दिया साबू दाबू रुक गये वे संगीत प्रेमी भालू थे डमरु की आवाज पर डांस करने लगे अब कपटी साधु की आफत डमरु बजाना रोके तो भालू काटने दौड़ते डमरु बजाये तो नाचने लगते, तो घंटों बीत गये लगातार डमरु बजता रहा दोनों भालू आनंदित होकर नाचते रहे। कोई दस बजे जब अपने खच्चर पर सब्जियां लादकर खड़कुआ बाजार को जा रहा था तब उसने भालू देखे डमरु की आवाज सुनी तो खड़कुआ ने भालू भगा दिये तब जा के कपटी साधु की जान में जान आयी। कपटी साधु का डमरु बजा बजा के हाथ सूज गया था।खड़कुआ ने साधु को बिठाया होंसला दिया और कहा कि "महाराज अब भालू नी आयेँगे आप मील भर आगे जाकर मेरे घर जाओ वहां आराम करो मैं बाजार से सब्जी बेचकर शाम तक लौट आउंगा" राहुल और कटरीना के बारे में खड़कुआ ने बात छिपा ली। पर कपटी साधु ने तौबा की वो बोला- "ना भाई मैं तो वापस बाजार जाउंगा तुम्हारे साथ में!" कपटी साधु लौट चला और खड़कुआ को लाख धन्यवाद दिया।और मन ही मन कभी खड़कुआ के गाँव न आने की कसम खायी..
उधर कटरीना को रणवीर और सलमान को अपनी कुशलता का पत्र भेजने का एक नायाब तरीका सूझा कि खत भी पहुंच जाये और उसका ठिकाना भी किसी को पता न चले...
तो कटरीना ने कैसे भेजा खत? अगले भाग में पता चलेगा प्रतीक्षा करें।
(जारी.....)
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दीप पाठक |
दीप पाठक सामानांतर के साहित्यिक संपादक है. इनसे deeppathak421@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.