Saturday, 29 September 2012

पत्ते क्या झड़ते हैं पाकिस्तां में वैसे ही जैसे झड़ते यहाँ, होता उजाला क्या वैसा ही है जैसा होता हिन्दुस्तां यहाँ..

हितेश सोनिक ने पीयूष मिश्रा के इस गीत को 15 साल पहले सुना था और उसके बाद हाल ही में कोक स्टूडियो में हितेश सोनिक के संगीत में पीयूष मिश्रा ने इस गीत को नए रूप में पेश किया है। पीयूष मिश्रा द्वारा गाया गया यह गीत जावेद के एक पत्र से है जो विभाजन के दौरान अपनी प्रेमिका हुस्ना से बिछड़ गया है। पीछे छूट चूका सब कुछ अंततः उसके अंदर ही अंदर घूम रहा है, गीत में लाचारी और दु: ख के एक उभरते भावना है और विभाजन का दर्द भी। हितेश का संगीत दिलचस्प है और गिटार की धुन में भारतीय शेली साथ पाश्चात्य संगीत का प्रयोग किया गया है। उस समय की उथल-पुथल को ध्यान में रखते हुए विभाजन के उस युग पर विश्राम लगाने की भी कोशिश की है. 
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