दीप पाठक जी की तीन चुनिन्दा कवितायें
(१)
तंग हल्द्वानी शहर
मोटर ,कर ,बाइकों का बेलगाम रेला
हर एक को
कहीं पहुँचने की जल्दी
गाड़ी के भीतर
से गरियाता चालक
हर दुसरे पर झल्लाता
पर एक चोराहे पर
दिन भर-
इस प्रवाह को
कभी दायें ,कभी बाएं
एक लाठी ,एक सीटी
दो हाथों से
थामता,प्रवाहित करता ,
ट्रेफिक का सिपाही
तल्लीन है
अपनी ड्यूटी पे
निकल जाती है
साहबों की गाड़ी भी
सेल्यूट
करना भी .
नहीं भूलता
वो अपनी दिन भर
की मेहनत में खरा है
चिलचिलाती धूप में
उसकी मेहनत को
सेल्यूट.
मोटर ,कर ,बाइकों का बेलगाम रेला
हर एक को
कहीं पहुँचने की जल्दी
गाड़ी के भीतर
से गरियाता चालक
हर दुसरे पर झल्लाता
पर एक चोराहे पर
दिन भर-
इस प्रवाह को
कभी दायें ,कभी बाएं
एक लाठी ,एक सीटी
दो हाथों से
थामता,प्रवाहित करता ,
ट्रेफिक का सिपाही
तल्लीन है
अपनी ड्यूटी पे
निकल जाती है
साहबों की गाड़ी भी
सेल्यूट
करना भी .
नहीं भूलता
वो अपनी दिन भर
की मेहनत में खरा है
चिलचिलाती धूप में
उसकी मेहनत को
सेल्यूट.
(२)
शब्द रहेंगे साक्षी।
लिखने वाला
गुमनाम!
जब उतरे काले अक्षर
किसी ने कान में कहा नहीं
बस कुछ लकीरों में
बस कुछ पंक्तियों में
बांधा मनसब
दिल की बात बन गयी!
पहुँच गयी दिल तक।
है न?
शब्द रहेंगे साक्षी।
लिखने वाला
गुमनाम!
जब उतरे काले अक्षर
किसी ने कान में कहा नहीं
बस कुछ लकीरों में
बस कुछ पंक्तियों में
बांधा मनसब
दिल की बात बन गयी!
पहुँच गयी दिल तक।
है न?
शब्द रहेंगे साक्षी।
(३)
अब वक्त है ताजा हवा चले
राह-की सफर की गर्द धुले
उदासियों के बरगद के तले
थकी- बोझिल सी धूप ढ़ले
अब वक्त है ताजा हवा चले
मौजूद है,ये मालूम है भले
अब ठहरे नहीं,बहती चले
कुछ जो थमे तो हाथ मले
रगों में ताजा दौरा ए खूँ चले
अब वक्त है ताजा हवा चले
माना भारी है जिंदगी भले
तो चले? चले-चले-चले!
अब वक्त है ताजा हवा चले
राह-की सफर की गर्द धुले
उदासियों के बरगद के तले
थकी- बोझिल सी धूप ढ़ले
अब वक्त है ताजा हवा चले
मौजूद है,ये मालूम है भले
अब ठहरे नहीं,बहती चले
कुछ जो थमे तो हाथ मले
रगों में ताजा दौरा ए खूँ चले
अब वक्त है ताजा हवा चले
माना भारी है जिंदगी भले
तो चले? चले-चले-चले!
अब वक्त है ताजा हवा चले
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दीप पाठक |
दीप पाठक सामानांतर के साहित्यिक संपादक है. इनसे deeppathak421@facebook.com पर संपर्क किया जा सकता है.
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