
"आप यहाँ रोज आते हैं ना?" पीछे से आवाज आई।
अचानक उसका स्वप्न रुपी ध्यान टूटा, उसने देखा कि सूरज डूब चुका था, झील के किनारे की लाइटें जगमगाने लगी थी, हवा की गति भी पहले की अपेक्षया बढ़ गयी थी। किताब के पन्ने फडफडा रहे थे। अगस्त-सितम्बर महीनों की शामों में जब गर्मी की मार कम पढ़ जाती है तो अक्सर सुखमा में लोगों की भीड़ बढ़ जाती है जो की देर रात तक देखने को मिलती है। उसे कभी पता नहीं चल पता था कि कब सूरज की मद्धिम रौशनी की जगह रात की स्ट्रीट लाइट ले लेती है। उसे लगता है कि वो तो बरसों से यहीं बैठा हुआ है। उसके बगल में बैठी लड़कियां जा चुकी थी जिसकी जगह एक बूढ़े आदमी ने ले ली थी पर प्रेमी जोड़ा अभी भी वहीँ अपनी ही जगह बैठा था, उसे लगा की ये प्रेमी जोड़ा भी उसी की तरह है अपने आप में खोया हुआ, जिसे दुनिया की कोई परवाह ही नहीं। बिलकुल उसी की तरह उनके लिए भी आस-पास कोई नहीं था।
"जी हाँ!"
उसने पीछे मुड़के देखा। सलेटी रंग के टॉप और नीली जींस में एक सुन्दर और सरल सी दिखने वाली लड़की खड़ी थी।
"मैं भी रोज शाम को यहाँ आती हूँ। आप से थोड़ी ही दूर बैठी रहती हूँ। वो सामने वाली बेंच में, क्या आपके साथ बैठ सकती हूँ?।" वो बोली।
"जी बिलकुल"
"बाय द वे आई अम वर्तिका" लड़की ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा।
"अम्बर" उसने हाथ मिलाया।
"आप को पढने का बहुत शौक है?" उसने पूछा।
"जी हाँ" उसके चेहरे पर हलकी सी मुस्कान बिखरी। उसे हमेशा ही किताबों के बारे में बातें अच्छी लगती थी।
"मुझे भी, लस्ट फॉर लाइफ मैंने भी कई बार पढ़ी है" वो किताब की ओर देख कर बोली।
"आप बहुत कम बोलते हैं" लड़की ने मजाक में कहा।
वह मुस्कुराया। वह किसी भी अनजान व्यक्ति से बात करने में झिझकता था। और लड़की ने उसकी उसी नब्ज पर हाथ रख दिया था।
उसने घडी में टाइम देखा। रात के करीब 9 बज चुके थे।
"अब मुझे चलना चाहिए, आज समय बहुत हो गया है।" उसने झिझकते हुए कहा।
"जी। क्या कल आप यहाँ मिलेंगे ?" वर्तिका बोली
"जी हाँ कल मुलाकात होगी। गुड नाईट " उसने कहा।
उसने किताब और अपना झोला उठाया और झील से बाहर आ गया। रोड में पहुंचकर उसने ऑटो रिक्शा लिया।
"सेक्टर 23 चलोगे?"
"चलेंगे साब।"
वो ऑटो में बैठा. वो चंडीगढ़ के सेक्टर-23 में रहता था, पेइंग गेस्ट में। उसे हमेशा लगता था की चंडीगढ़ शहर में रोज़ ऑटो रिक्शा का खर्च वहन नहीं कर पायेगा पर सुखना जाये बिना वो रह भी नहीं पता था। कई बार एक स्कूटर लेने की सोची पर कभी भी उसके लिए पैसे इकट्ठे नहीं कर पाया। कई बार सोचा की सुखमा के पास ही कमरा ले ले पर वहां पेइंग गेस्ट बहुत मेहेंगे थे। पैसे की कमी होने के बावजूद उसमें कभी भी पैसे का लोभ नहीं जागा। रोक गार्डेन के पास उसने ऑटो रिक्शा रुकवाया और उतरकर एक डिब्बी सिगरेट ली। ऑटो में बैठकर सिगरेट जलाई, सिगरेट की हर एक कश दिन की सारी थकान उतार देती थी।
"आज बड़ी देर हो गयी तुम्हें कहीं और भी गए थे क्या?" आशीष बोला
"नहीं सुखना में ही था।"
"क्या तुमने डिनर किया?" आशीष ने पूछा।
उसने हाँ में सर हिलाया।
आज कुछ थक गया हूँ आराम करना चाहता हूँ।" अम्बर ने कहा।
"गुड नाइट ",
"गुड नाइट".
लेकिन आज देर रात तक उसे नीद नहीं आई। एक अजीब सा डर उसे सता रहा था, उसे कुछ समझ नहीं आया। कल उसे उस लड़की से फिर मिलना था।
क्रमश:--------
बहुत खूब.....जारी रखो......!
ReplyDeleteशुक्रिया. अगली किस्त भी तकरीबन तैयार है..
ReplyDeletebahut khoob..kisi jaan pehchan vale ki dairy hai..par vartika???
ReplyDeleteha ha ha.. kalpanik correcter hai bhai
ReplyDeletemza aa gya pathak ji...
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